नई दिल्ली- ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस (AILAJ) ने चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया डी वाई चंद्रचूड को भेजे एक पत्र में अपील की है कि हाशिये के समुदायों विशेषकर मुस्लिम नागरिकों के घरों और संपत्तियों को निशाना बनाकर हो रही बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ स्वत: संज्ञान याचिका दर्ज की जाए। AILAJ ने इस तरह की कार्रवाइयों को संविधानिक अधिकारों और कानून के शासन का उल्लंघन बताया है।
AILAJ ने 22 अगस्त 2024 को मध्य प्रदेश के छतरपुर में हुई घटना का हवाला दिया, जहां कांग्रेस नेता हाजी शहजाद का घर तोड़ दिया गया। बताया जा रहा है कि यह कार्रवाई पत्थरबाजी की घटना के बाद की गई, जब लोग कोतवाली पुलिस स्टेशन में रामगिरी महाराज के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे थे। पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया और 30 और घरों को तोड़ने की तैयारी की जा रही है।
यह घटना मध्य प्रदेश में पहली बार नहीं हुई है। अप्रैल 2022 में राम नवमी के दौरान हुए सांप्रदायिक झगड़ों के बाद कई मुस्लिम घरों और व्यवसायों को भी तोड़ा गया था। इन मामलों में कई पीड़ितों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई।
इसी तरह भाजपा नीत राजस्थान में उदयपुर में 17 अगस्त 2024 को एक अन्य घटना में राशिद खान का घर गिरा दिया गया। जब राशिद के किराएदार के बेटे ने स्कूल में एक साथी छात्र को चाकू मार दिया था, उसके अगले ही दिन बिना नोटिस दिए बुलडोजर कार्रवाई एक दिन बाद ही कर दी गई.
AILAJ का कहना है कि ये कार्रवाइयाँ एक चिंताजनक पैटर्न को दर्शाती हैं, जो कई राज्यों में देखी जा रही है। कानूनी विद्वान गौतम भाटिया ने अपने लेख में बताया है कि कैसे विरोध के बाद हिंसा होने पर कुछ व्यक्तियों को "मास्टरमाइंड" बताकर उनके घरों को अवैध घोषित कर दिया जाता है और फिर उन्हें 24 घंटों के भीतर गिरा दिया जाता है।
इस तरह की घटनाएं उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, असम और दिल्ली जैसे राज्यों में देखी गई हैं, जहां मुख्य रूप से मुस्लिम नागरिकों को निशाना बनाया जा रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने जनवरी 2024 में अपने लेख में बताया कि किस तरह से मुस्लिम नागरिकों के घरों को बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बुलडोजर से तोड़ा जा रहा है।
AILAJ का कहना है कि ये कार्रवाइयाँ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन करती हैं, जो समानता, भेदभाव से मुक्ति और सम्मानजनक जीवन का अधिकार सुनिश्चित करते हैं। संगठन ने इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राज नारायण और इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ जैसे मामलों का हवाला देते हुए कानून के शासन की महत्ता पर जोर दिया है।
कई मामलों में तोड़फोड़ से पहले उचित प्रक्रिया जैसे नोटिस जारी करना, सुनवाई का मौका देना और अपील का अधिकार प्रदान नहीं किया गया। इससे यह आशंका बढ़ रही है कि ये कार्रवाइयाँ केवल अवैध ही नहीं, बल्कि सांप्रदायिक पूर्वाग्रह से प्रेरित हैं, जो सांप्रदायिक सफाई जैसा प्रतीत होता है।
कई उच्च न्यायालयों ने इस तरह की कार्रवाइयों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। हाल ही में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने नूह और गुरुग्राम में सांप्रदायिक हिंसा के बाद की गई तोड़फोड़ को रोकते हुए पूछा कि क्या इन कार्रवाइयों के पीछे सांप्रदायिक सफाई की मंशा है। इसी तरह, गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने असम में की गई तोड़फोड़ के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए एक व्यक्ति आयोग की नियुक्ति की।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी अपनी रिपोर्ट "अगर आप बोलेंगे तो आपका घर तोड़ दिया जाएगा: भारत में बुलडोजर अन्याय" में अप्रैल से जून 2022 के बीच की गई तोड़फोड़ की घटनाओं को दर्ज किया है। रिपोर्ट में बताया गया कि असम, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में कम से कम 128 मुस्लिम संपत्तियों को निशाना बनाया गया।
AILAJ का मानना है कि इस व्यापक और व्यवस्थित अधिकार हनन को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट को "असंवैधानिक स्थिति" के सिद्धांत का उपयोग करना चाहिए। यह सिद्धांत न्यायालय को यह मान्यता देता है कि जब विधायिका और कार्यपालिका दोनों सार्वजनिक नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफल रहते हैं, तो न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है।
AILAJ का आग्रह है कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में अंतरिम आदेश जारी कर स्थिति का संज्ञान लेना चाहिए और संविधान के अनुसार पालन सुनिश्चित करना चाहिए। संगठन का मानना है कि न्यायपालिका का यह हस्तक्षेप आवश्यक है ताकि न्याय का उपहास बंद हो और सभी नागरिकों के लिए कानून का शासन सुरक्षित रहे।
अंत में, AILAJ ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर तत्काल कार्रवाई की मांग की है, ताकि चल रही बुलडोजर कार्रवाइयों को रोका जा सके और प्रभावित नागरिकों को राहत प्रदान की जा सके। संगठन की अपील संविधानिक अधिकारों की रक्षा और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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