जयपुर। 1993 में देश में हुए सीरियल बम ब्लास्ट मामले में टाडा कोर्ट अजमेर ने फैसला सुनाते हुए एक आरोपी अब्दुल करीम उर्फ टुंडा को बरी कर दिया। गुरुवार को टाडा कोर्ट अजमेर के न्यायाधीश महावीर प्रसाद गुप्ता ने यह फैसला सुनाया। आरोपी के पक्ष के अधिवक्ता अब्दुल राशिद के अनुसार टुंडा पर देश के अलग-अलग हिस्सों में 40 से अधिक मामले दर्ज हैं। यह अब 30 से अधिक मुकदमों में बरी हो चुका है। शेष मुकदमें विचाराधीन है।
न्यायालय ने आदेश में कहा कि आरोपी सैयद अब्दुल करीम निवासी उत्तर प्रदेश के विरूद्ध आरोपित अपराध संदेह से परे साबित नहीं होने के कारण सभी आरोपों से दोषमुक्त किया जाता है। साथ ही न्यायालय ने दोष मुक्त किए गए अब्दुल को अन्य किसी प्रकरण में वांछित नहीं होने पर न्यायिक हिरासत से तुरंत रिहा किए जाने के लिए आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए।
आरोपों से बरी करने के बाद न्यायालय ने आदेश दिया कि वह (अब्दुल करीम) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 437-ए के तहत 50 हजार रुपए बंधपत्र व इसी राशि की जमानत पेश करें कि आज दिए जा रहे निर्णय के विरूद्ध यदि अभियोजन उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील करता है तो वह उच्चतम न्यायालय के समक्ष उपस्थित हो जाएगा। यह बंधपत्र व जमानत छह माह तक प्रभावी रहेंगे। ऐसे में माना जा रहा है कि टाडा कोर्ट अजमेर के फैसले के विरुद्ध सीबीआई सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी।
आरोपी के पक्ष के अधिवक्ता एडवोकेट अब्दुल राशिद ने बताया कि 5/6 दिसम्बर, 1993 को राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन मुम्बई से नई दिल्ली, नई दिल्ली से हावड़ा, हावड़ा से नई दिल्ली, फ्लाइंग क्वीन एक्सप्रेस सूरत से बड़ौदा, आंध्र प्रदेश एक्सप्रेस हैदराबाद से नई दिल्ली में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे। इस घटना में दो यात्रियों की मृत्यु हो गई थी और 22 यात्रियों को गंभीर व साधारण चोटें आई थीं।
इस घटना से संबंधित राजस्थान के जीआरपी थाना कोटा सहित वलसाड़, कानपुर,इलाहाबाद, कानपुर थाना मलकाजगिरी में पांच अलग-अलग मामले पंजीकृत और अन्वेषित किए गए थे।
अपराध के राष्ट्रीय प्रभाव, व्यापकता और गंभीरता को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार द्वारा 21 व 28 दिसंबर 1993 को अधिसूचना जारी कर इन मामलों को सीबीआई को सौंप दिया था। इस पर सीबीआई ने मामला दर्ज किया था। प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या आरसी 37(एस)/93, सीबीआई जयपुर, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या आर.सी.43(एस)/93 सी.बी.आई. अहमदाबाद, प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या आर.सी.43 व 44(एस)/93 सी.बी.आई. लखनऊ और प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या आर.सी.32(एस)/93 सी.बी.आई. हैदराबाद के तहत उपरोक्त पांच मामलों का अन्वेषण किया गया। उक्त मामलों की जांच के दौरान सीबीआई ने माना कि उक्त प्रतिष्ठित ट्रेनों में बम विस्फोट एक ही साजिश के तहत हुए थे और इसलिए उक्त सभी मामलों को एक साथ जोड़ दिया गया और जांच की गई।
एडवोकेट अब्दुल राशिद के अनुसार सीबीआई ने कोर्ट को बताया कि बंबई में नवम्बर-दिसम्बर, 1993 के दौरान किसी समय अभियुक्त डा. मो. जलीस अंसारी ने बाबरी मस्जिद के विध्वंस की पहली बरसी पर 5 व 6 दिसंबर 1993 को प्रतिष्ठित ट्रेनों में बम विस्फोट करने की अपनी योजना के बारे में सैयद अब्दुल करीम को बताया था। इसके बाद अब्दुल करीम ने डॉ. मोहम्मद सलीम को आतंकी गतिविधियों में शामिल किया और बम उपकरण बनाने का तकनीकी ज्ञान दिया था। सीबीआई ने न्यायालय में आरोप लगाया कि लोगों में दहशत फैलाने और भारत सरकार पर दबाव बनाने के लिए इन दोनों अभियुक्तगण ने अन्य लोगों के साथ मिलकर दिनांक 5 दिसंबर 1993 को शिव सेना की ‘‘सामना प्रेस‘‘ पर हमला करने और गणतंत्र दिवस अर्थात 26 जनवरी, 1994 के अवसर पर दिल्ली में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने का भी फैसला किया।
एडवोकेट ने बताया कि सीबीआई न्यायालय के समक्ष सैयद अब्दुल करीम पर लगाए आरोप साबित नहीं कर सकी। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद न्यायालय ने आदेश में कहा कि सैयद अब्दुल करीम के विरूद्ध आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने बाबत् पर्याप्त साक्ष्य पत्रावली पर उपलब्ध नहीं है। अभियोजन अभियुक्त के विरूद्ध दिनांक 5 व 6 दिसम्बर, 1993 की रात विभिन्न ट्रेनों में हुए बम विस्फोटों के संबंध में उसकी भूमिका स्पष्ट नहीं कर सका है। अभियोजन द्वारा केवल इस सीमा तक साक्ष्य पेश किए गए कि अभियुक्त ने अन्य अभियुक्तों को बम बनाने की विधि समझाई थी तथा विस्फोटक सामग्री उपलब्ध कराई।
अभियोजन द्वारा न्यायालय में यह बताया कि अभियुक्त द्वारा जो विस्फोटक सामग्री डॉ. जलीस अंसारी को उपलब्ध कराई थी उस विस्फोटक सामग्री का प्रयोग बम्बई बम धमाकों से संबंधित अपराध की घटना में किया गया था। अभियोजन यह स्पष्ट नहीं कर सका है कि सैयद अब्दुल करीम ने लम्बी दूरी की ट्रेनों में विस्फोट के लिए सामग्री उपलब्ध कराई हो अथवा अपना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग अन्य अभियुक्तगण को दिया हो अथवा इस अपराध की साजिश में शामिल रहा हो।
इस मामले में न्यायालय ने दो आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। आरोपी पक्ष के एडवोकेट अब्दुल राशिद ने कहा कि न्यायालय ने आरोपी इरफान व हमीदुद्दीन को टाडा अधिनियम, 1987 की धारा 15 के तहत सीबीआई को दिए बयानों को ही साक्ष्य माना है। उन्होंने कहा कि टाडा कोर्ट अजमेर ने उच्चतम न्यायालय द्वारा जलीस अंसारी वगैरह बनाम सीबीआई, आपराधिक अपील संख्या 546/2004, निर्णय दिनांक 11.05.2016 से संबंधित निर्णय में अनेक न्याय दृष्टान्तों पर विचार के उपरान्त यह विधि स्थापित की थी कि धारा 15 टाडा अधिनियम के तहत लेखबद्ध किये गये कथन सारभूत साक्ष्य है। इन कथनों के अलावा अभियोजन को किसी अन्य साक्ष्य से अपराध की पुष्टि कराने की आवश्यकता नहीं है।
इस मामले में सीबीआई ने अलग अलग राज्य के 18 लोगों को आरोपी बनाकर कर गिरफ्तारियां की थीं। टाडा कोर्ट अजमेर ने पूर्व में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार 16 लोगों को दोषी मानते हुए 28 फरवरी 2004 को आजीवन कारावास की सुनाई थी। इसके बाद आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। टाडा कोर्ट अजमेर के निर्णय के खिलाफ अपील दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद 2016 में एक नाबालिग आरोपी सहित पांच लोगों को बरी कर दिया था।
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