उत्तर प्रदेश। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सीवर में सफाई के लिए उतरे दलित सफाईकर्मी की दम घुटने से मौत हो गई। यह वही क्षेत्र है, जहाँ पीएम ने सफाईकर्मियों के पैर धुलकर खूब सुर्खियां बटोरी थी। डिजिटल इण्डिया वाले इस भारत में आज भी दलित और वंचित समाज से आने वाले यह सफाई कर्मचारी मजबूरन सीवर में उतरकर सफाई करने पर मजबूर हैं। यही कारण है कि पिछले पांच सालों में सीवर में सफाई करने के दौरान लगभग चार सौ सफाईकर्मियों की मौत सीवर में उतरने से हो गई। उत्तर प्रदेश ऐसी मौतों के मामले में दूसरे नंबर पर है।
पूरा मामला आदमपुरा क्षेत्र के भैसापुर घाट का है। इस क्षेत्र में सीवर में उतरकर सफाई करने के दौरान दो सफाईकर्मी जहरीली गैस की चपेट में आ गए। एक सफाईकर्मी की सीवर में भरी गंदगी में डूबने से मौत हो गई। जबकि दूसरे फाई कर्मी को गंभीर हालात में जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पूरे मामले को देखते हुए जिलाधिकारी वाराणसी ने मामले के जांच के आदेश जारी किये हैं।
सफाईकर्मी राम बाबू ने द मूकनायक को बताया कि, "राजघाट पर रविदास मंदिर के सामने सीवर चोक होने की शिकायत आई थी। इस शिकायत पर गंगा प्रदूषण विभाग की ओर से उसे सफाई के लिए भैसासुर घाट पर बुलाया गया था। इस शिकायत पर मछोदरी के रहने वाले घूरेलाल (40 वर्ष) और सुनील को भेजा गया था। दोपहर करीब तीन बजे घूरे लाल, सुनील के साथ राजघाट पहुंचे और रस्सी के सहारे मेनहोल में उतर गए। उनके तीन साथी ऊपर रुक गए थे।"
राम बाबू ने आगे बताया, "कुछ देर बाद घूरे की आवाज आनी बंद हो गई। सुनील ने बाहर आकर नीचे जहरीली गैस होने की बात अन्य कर्मियों को बताई। इसके साथ ही इसकी जानकारी सुपरवाइजर बाबू यादव को दी। यह पता चलते ही बाबू यादव मौके से फरार हो गया। साथियों ने इसके बाद पुलिस को सूचना दी। मौके पर पहुंची राजघाट पुलिस ने एनडीआरएफ को बुलाया गया। सूचना के बाद एनडीआरएफ की टीम मौके पर पहुंची और सफाईकर्मी को बाहर निकाला और शिवप्रसाद गुप्ता मंडलीय अस्पताल ले जाया गया। जहां चिकित्सकों ने बताया कि एक की मौत हो चुकी है। यह जानकारी मिलने के बाद घूरे के परिवार के सदस्य भी अस्पताल आ गए।"
घूरे के परिवार के सदस्य महेंद्र कुमार भारती ने आरोप लगाया कि घटना के एक घंटे बाद तक जेई, ठेकेदार या कोई भी अधिकारी मदद लेकर समय पर नहीं आया। जब तक एनडीआरएफ की टीम पहुंची तब तक काफी देर हो चुकी थी। घूरे लाल करीब 15 वर्षों से सीवर सफाई कार्य से जुड़े थे। वह गोला घाट स्थित सीवेज पंपिंग स्टेशन पर 12,000 रुपये महीने पर ठेकेदार के अधीन काम करते थे।
पत्नी चंदा ने बताया कि उनके चार बच्चे हैं। दो बेटियां नौंवीं, एक बेटा आठवीं व एक सातवीं में पढ़ते हैं। उन्होंने बताया कि डेढ़ माह पहले बाइक दुर्घटना में बड़े बेटे 18 वर्षीय आजाद की मौत हो गई थी। सीवर सफाई का काम देख रही कंपनी लीलावती कंस्ट्रक्शन ने घूरे लाल के स्वजन को दस लाख रुपये की आर्थिक मदद दी है।
इस पूरी घटना पर डीएम ने संज्ञान लिया है। घटना के बाद शाम को डीएम एस राजलिंगम ने घटना की जांच के आदेश दिए। जांच अधिकारी भी नियुक्त कर दिया गया है। एक सप्ताह के अंदर जांच रिपोर्ट डीएम को सौंपी जानी है।
मैनुअल स्कैवेंजिंग कानून 2013 और सुप्रीम कोर्ट के 20 अक्टूबर 2023 के आदेश अनुसार किसी भी सफाई कर्मचारी को बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर-सेप्टिक टैंक में उतारना दंडनीय अपराध है। जुर्माना और जेल दोनों का प्रविधान है। कानून के अनुसार सफाईकर्मी की सुरक्षा के लिए आक्सीजन मास्क, जूते, सेफ्टी बेल्ट आदि 59 प्रकार के उपकरण होने चाहिए। एंबुलेंस की व्यवस्था भी होनी चाहिए, लेकिन ठेकेदार सफाई कर्मियों को बिना उपकरण उतार देते हैं।
पिछले पांच सालों में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान पूरे देश में 339 लोगों की मौत के मामले दर्ज किये गए। इसका मतलब है कि इस काम को करने में हर साल औसत 67 सफाईकर्मियों की मौतें सीवर में उतरने से हो गई। सभी मामले 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से थे। साल 2019 इस मामले में सबसे भयावह साल रहा, अकेले 2019 में ही 117 सफाईकर्मियों की मौत सीवर में उतरने से हो गई। कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन से गुजरने वाले सालों 2020 और 2021 में भी 22 और 58 सफाईकर्मियों की जान गई।
पिछले पांच सालों में तकरीबन चार सौ से ज्यादा सफाईकर्मियों की जान सीवर में उतरकर सफाई के करने के दौरान चली गई। हालांकि, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सीवर सफाई के दौरान सफाईकर्मी की मौत के बाद पीड़ित परिजनों को तीस लाख का मुआवजा देने का प्रावधान किया है। वहीं इस फैसले को लेकर भारत में वृहद स्तर पर सफाई आंदोलन चलाने वाले बेजवाड़ा विल्सन कहते हैं कि पांच साल में 18 बार से ज्यादा सभी राजनितिक पार्टियों को इस मुद्दे को मेनिफेस्टों में लाने के लिए ज्ञापन दिया। लेकिन कोई भी पार्टी इसे स्वीकार नहीं करती है कि ऐसा काम अभी भी होता है। सुप्रीम कोर्ट द्वार 30 लाख का मुआवजा देना यह दर्शाता है कि इन सफाई कर्मियों की जान की कीमत बस इतनी ही है।
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