नई दिल्ली: भारत के पूर्वी राज्य मणिपुर के मुख्यमंत्री नोंगथोम्बम बीरेन सिंह से एक जन अधिकार समूह ने कहा है कि सरकारी अधिकारियों और परिवहन ठेकेदारों के बीच सांठगांठ के कारण मणिपुर के कम से कम दो आदिवासी पहाड़ी जिलों में गरीबों को प्रधानमंत्री योजना के तहत महीनों तक चावल नहीं मिल पाया है।
मणिपुर के मूवमेंट फॉर पीपुल्स राइट्स फोरम (एमपीआरएफएम) ने 17 मई को मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत मासिक चावल वितरण प्रणाली को बाधित करने के लिए उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण अधिकारियों और कुछ ठेकेदारों के “अवैध आचरण” के खिलाफ हस्तक्षेप करने की मांग की। यह योजना जातीय हिंसा से प्रभावित राज्य की पहाड़ियों में सैकड़ों लाभार्थियों को दी जाती है।
फोरम ने कहा कि सबसे ज्यादा प्रभावित जिले नोनी और तामेंगलोंग हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने 1 जनवरी से पांच वर्षों तक पीएमजीकेएवाई के तहत देश भर में लगभग 81.35 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त अनाज दिए जाने की घोषणा की गई थी. जिसका उद्देश्य पांच वर्ष की अवधि में 11.80 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
आपको बता दें कि, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत आने वाले सभी लाभार्थियों को प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलो मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए कोविड-19 महामारी के मद्देनजर अप्रैल 2020 में यह योजना शुरू की गई थी।
मणिपुर में भी बीरेन सिंह सरकार ने पहाड़ी इलाकों और संसाधन संपन्न इंफाल घाटी के बीच की दूरी को कम करने के लिए इसी तरह की योजनाएँ और नीतियाँ शुरू की थीं।
एमपीआरएफएम के अध्यक्ष गोनमेई कुरिपो ने कहा कि, “मणिपुर सरकार के कुछ अधिकारी कुछ परिवहन ठेकेदारों के साथ मिलकर बड़ी मात्रा में पीएमजीकेएवाई चावल को काला बाज़ार में बेच रहे हैं, खास तौर पर नोनी और तामेंगलोंग जिलों में, जिससे लाभार्थियों के मूल अधिकारों का हनन हो रहा है। पीएमजीकेएवाई के बारे में जानने वालों में भी असमान वितरण और लाभ के आवंटन में पक्षपात की खबरें हैं।”
फोरम ने कहा कि जुलाई और नवंबर 2023 में और फरवरी से मई 2024 तक पहाड़ी जिलों में लाभार्थियों के बीच पीएमजीकेएवाई चावल वितरित नहीं किया गया।
फोरम ने कहा, “पीएमजीकेएवाई लाभों की अनुपस्थिति कम आय वाले परिवारों, वरिष्ठ नागरिकों और विकलांग व्यक्तियों जैसे कमज़ोर समूहों को असमान रूप से प्रभावित करती है। हाल ही में हुई मैतेई-कुकी हिंसा के कारण आर्थिक चुनौतियों के कारण कई परिवार बुनियादी जीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं।" फोरम ने मुख्यमंत्री से भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों पर लगाम लगाने और स्थिति बदतर होने से पहले परिवहन ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया है।
फोरम ने चेतावनी दी है कि यदि संबंधित अधिकारियों ने उनकी मांगों को पूरा करने में तेजी से और निर्णायक कार्रवाई नहीं की तो लोग लोकतांत्रिक विरोध प्रदर्शन और आंदोलन शुरू करेंगे।
आईबी रोड जिला अस्पताल चुराचांदपुर (IB Road District Hospital Churachandpur) के पास YVA (Young Vaiphei Association) की ओर से एक पुराने स्कूल के भवन में बनाए गए रिलीफ कैम्प के वालंटियर एस डोंगथिन सांग (S Dongthin Sang) 30, ने बताया कि राहत शिविर में अभी भी चार सौ से ज्यादा लोग हैं. “सरकारी दाल, चावल तो मिल जाता है लेकिन राहत शिविर में अन्य खर्चों की भी जरुरत पड़ती है, उनका कोई इंतजाम नहीं है”, डोंगथिन सांग ने कहा.
पिछले साल अगस्त में द मूकनायक टीम ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में बताया था कि कैसे हिंसा ग्रस्त राज्य में राहत शिविरों में रह रहे लोग स्थानीय सामाजिक संस्थाओं, दानदाताओं और चर्च से मिले खाने-पीने की वस्तुओं पर पूर्ण रूप से निर्भर थे.
हालांकि, पहाड़ी में बसे कुकी बाहुल्य चुराचांदपुर जिले में कई रिलीफ कैम्पों की पड़ताल में दवाओं की अनुपलब्धता, राशन की कमी से जूझते रिलीफ कैम्पों पर सरकारी तैयारियों की जानकारी के लिए द मूकनायक टीम ने चुराचांदपुर डीसी (डिप्टी कमिश्नर) धारून कुमार से मुलाकात की थी. उन्होंने द मूकनायक को बताया था कि, “हमने राहत शिविरों में पर्याप्त राशन सामग्रियों को भेजने की व्यवस्था बनाई है.” चुराचांदपुर डीसी ने द मूकनायक को वह सूची भी साझा की जिसमें राहत शिविरों के नाम और उनमें पहुंचाई जाने वाले सामग्रियां लिखी गई थी.
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.