उत्तर प्रदेश: तीन साल में एक बार भी नहीं हुई किन्नर कल्याण बोर्ड सदस्यों की बैठक!

यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2021 में किन्नरों के कल्याण के लिए 23 सदस्यीय बोर्ड गठित किया था। बोर्ड के गठन के बाद सदस्यों की प्रतिमाह होनी थी बैठक.
समाज कल्याण विभाग द्वारा किन्नरों के लिए किए गए कार्यक्रम का पोस्टर.
समाज कल्याण विभाग द्वारा किन्नरों के लिए किए गए कार्यक्रम का पोस्टर. तस्वीर- द मूकनायक.
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उत्तर प्रदेश। यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश के बाद 2021 में "किन्नर कल्याण बोर्ड" की स्थापना कर अपनी पीठ थप-थपा ली। सरकार ने भले ही किन्नरों को लेकर बोर्ड की स्थापना कर दी है, लेकिन पिछले तीन सालों में एक बार भी कोई बैठक नहीं की गई।

दरअसल, यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2021 में किन्नरों के कल्याण के लिए समाज कल्याण मंत्री की अध्यक्षता में 23 सदस्यीय बोर्ड गठित किया था। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में यह ऐतिहासिक फैसला दिया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने किन्नरों के अधिकार और उनके सामाजिक उत्थान के लिए प्रदेश स्तर और जिले स्तर पर भी किन्नर कल्याण बोर्ड का गठन किया, लेकिन यह केवल बोर्ड बताने तक ही सीमित रह गया।

इस बोर्ड का काम पहचान पत्र, ट्रांसजेंडर कार्ड, सार्वजनिक शौचालय, आयुष्मान कार्ड, पुलिस सुरक्षा, शिक्षा से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करना था। बोर्ड का काम किन्नरों की आवश्यकताओं, मुद्दों व समस्याओं पर काम करते हुए नीति व संस्थागत सुधारों के लिए सरकार को सुझाव देने के लिए बनाया गया था। एक आंकड़े के मुताबिक़ प्रदेश में तकरीबन डेढ़ लाख किन्नर हैं। इनसे जुडी समस्याओं के लिए किन्नर कल्याण बोर्ड बनाया गया था। यह बोर्ड समाज कल्याण के अधीन काम करता है।

इस बोर्ड के माध्यम से सार्वजनिक स्थानों जैसे बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन और शहर के मुख्य बाजार वाले स्थान पर सार्वजनिक शौचालय में भी अलग शौचालय की व्यवस्था करने आदि के काम किये जाने थे। इसके साथ ही चिकित्सा से संबंधित सुविधा के लिए जिला अस्पतालों में किन्नरों के लिए अलग से आरक्षित वार्ड बनाया जाना था। सुरक्षा के मुद्दे को लेकर जनपदों के थानों में एक ट्रांसजेंडर सेल भी बनाना था। लेकिन यह सब मात्र कागजों पर ही रहा है।

ट्रांसजेंडर बोर्ड की सदस्य प्रियंका सिंह रघुवंशी द मूकनायक को बोर्ड के हालात और कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहती हैं-"हमारी सुनने वाला कोई नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हमें विशेष दर्जा देने के लिए तमाम नियम और कानून बनाये गए थे, लेकिन जमीनी स्तर पर लागू नहीं हो सके हैं। यूपी में ट्रांसजेंडर बोर्ड सिर्फ नाम का है। किन्नर कल्याण बोर्ड के कार्यालय में हमारी सुनी नहीं जाती है। आधार कार्ड बनने से लेकर अन्य सुविधाओं को हासिल करने में आज भी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।"

छात्रों को नहीं दी गई प्रोत्साहन राशि

प्रियंका रघुवंशी कहती हैं- "बीते मार्च 2024 में समाज कल्याण विभाग द्वारा पहला ट्रांसजेंडर साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समारोह और रैंप वाक का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में किन्नरों को प्रोत्साहन देने के लिए एक राशि दी जानी थी, जिसका आज तक भुगतान नहीं किया गया। इस कार्यक्रम में समाज कल्याण मंत्री सहित कई चर्चित हस्तियां शामिल हुई थीं।"

514 किन्नरों को मिल चुका है प्रमाण पत्र

2011 में हुई जनगणना के मुताबिक, यूपी में 1.36 लाख किन्नर हैं। समाज कल्याण विभाग ने सर्वे कर विभागीय पोर्टल पर उनका रजिस्ट्रेशन करवाया था। विभागीय अधिकारियों के मुताबिक प्रदेश में 1070 किन्नरों को रजिस्ट्रेशन कराया गया, इनमें सबसे ज्यादा 110 किन्नर गौतमबुद्धनगर के, 92 गाजियाबाद, 64 लखनऊ के थे। इनमें 514 किन्नरों को विभाग की ओर से अधिकृत प्रमाण पत्र जारी किया जा चुका है।

प्रतिमाह एक हजार रुपये देने का था वादा

एक रिपोर्ट के मुताबिक़ बीते दिसंबर 2023 में उत्‍तर प्रदेश में किन्नरों की दशा सुधारने के लिए योगी सरकार ने किन्नरों को जीवन निर्वाह के लिए पेंशन देने की तैयारी की थी। पेंशन की राशि 12 हजार रुपये सालाना थी, जिसका भुगतान वृद्धावस्था पेंशन की तरह तिमाही किन्नरों के आधार लिंक खातों में किया जाना था। लेकिन इसका आज तक लाभ नहीं मिला सका है।

समाज कल्याण विभाग द्वारा किन्नरों के लिए किए गए कार्यक्रम का पोस्टर.
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