उत्तर प्रदेशः कानपुर में पहली बार निकाली क्वीर प्राइड परेड, समुदाय ने की हेल्पलाइन व सेल्टर होम की मांग

लखनऊ, गोरखपुर, बनारस के साथ अन्य शहरों से आए लोग भी शामिल हुए, प्रथम बार हुए इस आयोजन में ट्रांसजेंडर, गे, बाईसेक्सुअल, लेस्बियन की भीड़ दिखी।
कानपुर में क्वीर प्राइड परेड में हिस्सा लेते समुदाय के लोग।
कानपुर में क्वीर प्राइड परेड में हिस्सा लेते समुदाय के लोग।The Mooknayak
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कानपुर। सरकार और अदालत से मान्यता के बाद भी एलजीबीटीक्यू (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर) सोसायटी के लोगों को स्वीकारा नहीं जा रहा है। इन्हें मान्यता तो मिल गयी है पर इनके सामने रोजी-रोटी का भी संकट है। लोग नौकरियां देने से बचते हैं। कानपुर में गत माह को पहली बार निकाली गयी क्वीयर प्राइड परेड में शामिल एलजीबीटीक्यू के लोगों का दर्द छलका।

शहर के बड़ा चौराहा से निकाले गए मार्च में शामिल लोगों का उत्साह देखते ही बन रहा था। कोई सेल्फी में व्यस्त था तो कोई आस-पास के माहौल से बेखबर सड़क पर डांस करते हुए वीडियोग्राफी कर रहा था। यह उत्साह समुदाय की मजबूत एकता का संकेत दे रहा था। फिल्मी धुनों पर थिरकते यात्रा में शामिल लोग रंगबिरंगे परिधान पहने थे।

यात्रा बड़ा चौराहा से आरंभ होकर कचहरी,वीआईपी रोड होते हुए फूलबाग स्थित नानाराव पार्क में इसका समापन हुआ। कानपुर क्वीर वेलफेयर फाउंडेशन के द्वारा निकाली इस यात्रा में समलैंगिक और ट्रांसजेंडर समुदाय के इटावा, लखनऊ, बैहराइच, गोरखपुर, हरदोई, बनारस से सौकड़ों की संख्या में लोग शामिल हुए। सभी की जुबान में अपने अधिकारों के साथ भेदभाव की पीड़ा थी।

ये लोग लोगों में जागरूकता की बात कर रहे थे। साथ ही सरकार और न्याय व्यवस्था को धन्यवाद भी दे रहे थे। यात्रा नानाराव पार्क में समाप्त हुई। यहां पर वक्ताओं ने अपनी प्रमुख 10 मांगों की बाबत विस्तार से बताया। फाउंडेशन के चेयपर्सन यादुवेंद्र सिंह ने बताया कि हर कदम पर हमारे अधिकारों का हनन हो रहा है। संस्थापक अनुज पांडे ने बताया कि उत्पीड़न तो मानो आम बात है। लोग अनदेखी करते हैं। इसे विदेशी कल्चर भी लोग कहते हैं। पर मांग जारी रहेगी।

एलजीबीटीक्यू की प्रमुख मांगें

कानपुर में क्वीर प्राइड परेड में हिस्सा लेते समुदाय के लोग।
कानपुर में क्वीर प्राइड परेड में हिस्सा लेते समुदाय के लोग।The Mooknayak
  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति के लिए पेंशन सहायता के रूप में 1000 रुपये प्रतिमाह का प्रावधान हो।

  • राज्य भर में समुदाय के लिए 5 आश्रय गृह बनाए जाएं।

  • एलजीबीटीआईक्यूए मुद्दों पर नौकरशाही, मीडिया और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को संवेदनशील बनाना।

  • स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थल में क्वीयरफोबिया को संबोधित करने के लिए नीतियां।

  • ट्रांस, इंटरसेक्स और लिंग की पुष्टि नहीं करने वाले व्यक्तियों के लिए सुलभ शौचालय।

  • लोक कल्याण नीतियों में ट्रांस, इंटरसेक्स और लिंग गैर-पुष्टि करने वाले व्यक्तियों का उल्लेख हो।

  • एलजीबीटीआईक्यूए व्यक्तियों के लिए समर्पित हेल्पलाइन हो।

  • लिंग परिवर्तन सर्जरी कराने की इच्छा रखने वाले प्रति व्यक्ति को 2 लाख रुपये तक की सरकारी सहायता मिले।

  • समुदाय के लिए वन-स्टॉप सेंटर के माध्यम से नाम परिवर्तन, संपत्ति अधिकार, कौशल विकास और स्वास्थ्य के लिए सरकार द्वारा कानूनी सहायता सेवाएं मिलें।

  • एलजीबीटीआईक्यूए समुदायों द्वारा स्टार्टअप और उद्यमिता के लिए एसएचजी, तकनीकी और वित्तीय सहायता मिले।

सतरंगी झंडे में एलजीबीटी का मतलब

इस समुदाय का झंडा 1990 का दशक आते-आते दुनियाभर में एलजीबीटी समुदाय का प्रतीक बनता गया। सबसे पहले इस झंडे में 8 रंग थे, जो जिंदगी के एक अलग पक्ष परिभाषित करता है। जैसे गुलाबी-सेक्सुअलटी, लाल- जिंदगी, नारंगी-इलाज, पीला- सूरज की रोशनी, हरा- प्रकृति, फिरोजी- कला, नीला- सौहार्द, बैंगनी- इंसानी रूह। हालांकि, बाद में इन 8 रंगों में से बैंगनी रंग हटा दिया गया। जबकि फिरोजी रंग की जगह नीले रंग ने ले ली।

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