Inspiring Story: कभी बेलचे से एमसीडी की गाड़ियों में कूड़ा भरा, आज कॉरपोरेट में नौकरी कर रही है ट्रांसजेंडर कनिका

ट्रांसजेंडर, कनिका
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ट्रांसजेंडर, करन उर्फ कनिका जिसकी जिंदगी का दूसरा पर्याय ही संघर्ष है, जिसे परिवार से लेकर अपने दोस्तों तक सबसे सिर्फ तिरस्कार ही मिला। लेकिन कहते हैं न, हर किसी के लिए कोई न कोई रास्ता निकल ही आता है। कनिका के लिए वही रास्ता 'Pahal Nurturing Lives NGO' बना है, जिसकी सहायता से आज वह अमेजन इंडिया में जॉब करती हैं। कनिका एक छोटे से कमरे में अपने बालों को संवारती हुई पूरे आत्मविश्वास से कहती है कि मैंने हेयर एक्टेन्सन इसलिए करवाया ताकि मैं थोड़ा प्रोफेशनल लगूं। जब ऑफिस जाऊं तो मुझे लगे कि मैं किसी बड़ी कंपनी में काम करती हूं। कनिका ने पहचान के लिए लंबा संघर्ष किया है। द मूकनायक की टीम ने कनिका से उनके जीवन के संघर्षों और चुनौतियों पर बातचीत की।

बहनों के रेप का लगाया आरोप

कनिका कहती है कि उन्होंने पांच साल पहले ही अपना घर छोड़ दिया था। माता-पिता के साथ भाई-बहन भी उसके साथ अच्छा सलूक नहीं करते थे। यहां तक 10वीं पास करने के बाद उसके घर वालों ने भाई का 11वीं में एडमिशन करा दया और उसका नहीं करवाया। घर वाले उसको रोज सुधर जाने की नसीहत देते, नहीं तो घर छोड़ देने की सलाह देते।

कनिका ने बताया, "स्थिति ऐसी हो गई की मेरे घरवाले मुझ पर शादी करने का दबाब बनने लगे। जब वह इसके लिए नहीं मानी तो घरवालों ने पुलिस रिपोर्ट लिखा दी। जिसमें कहा कि वह अपनी बहनों के साथ गलत काम 'रेप' करता है।" वह बताती है कि, मेरे घरवालों का मनाना था कि अगर पुलिस मेरे साथ सख्ती बरतेगी तो मैं माना जाऊंगी।

लेकिन पुलिस ने उल्टा मेरा ही साथ दिया। पुलिस वालों ने मुझे समझाया कि अगर तुम्हारे घरवाले तुम्हें पसंद नहीं करते हैं तो तुम अपना घर छोड़ दो। कनिका कहती है कि, मैंने उनकी बात मानी और 100 रुपए और कुछ कपड़ों के साथ अपना घर छोड़ दिया। आज मुझे घर छोड़े हुए पांच साल हो गए हैं। गली की दूसरी तरफ कनिका इशारा करके पुराने घर को दिखाती है और कहती है कि मेरे घरवालों का कहना है कि मैं उनके लिए मर चुकी हूं।

कनिका अपने आगे के संघर्ष का जिक्र करते हुए कहती हैं कि, अब तक मुझे सिर्फ परिवारवालों के ताने सुनने पड़ते थे, लेकिन असली संघर्ष तो घर छोड़ने के बाद शुरू हुआ। वह बताती हैं कि, मैंने घर तो छोड़ दिया लेकिन आगे का मुझे कुछ पता नहीं था। बड़ी मुश्किल से अपनी ही समुदाय की एक दीदी को फोन करके कहा कि मुझे कुछ दिन रहने के लिए शरण दे दें। उसने मुझे रहने की अनुमति दे दी, लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए मेरे पास पूरे पैसे नहीं थे। वहां तक पहुंचने के लिए मैंने सेक्स वर्क किया ताकि मैं एक छत्त तक पहुंच जाऊं।

शरण तो दी लेकिन सलूक कामवाली जैसा

वह कहती है, वहां पहुंचने के बाद कुछ दिन तो सबकुछ सही रहा लेकिन बाद में मुझसे इतना काम कराती थी कि मैं वह करने में सक्षम नहीं थी। मुझे महसूस होने लगा कि यहां रहना मेरे लिए बहुत मुश्किल है। वहां से बाहर निकलकर मैंने काम करना शुरू किया। वह बताती है कि, "हमारे समुदाय के लोगों को कहीं भी स्वीकार नहीं किया जाता है। इसलिए तो एक फैक्ट्री में नौकरी करना कुछ लोगों को पसंद नहीं आया और मैनेजर ने शिकायत कर दी कि हम ट्रांसजेंडर के साथ काम नहीं करेंगे, जिसके कारण मुझे उस नौकरी से हाथ धोना पड़ा।"

कनिका कहती है, "नौकरी के छूटते ही मुझे घर का भाड़ा और खाने की चिंता सताने लगी। कहीं मुझे काम नहीं मिल रहा था, इसलिए मैंने निश्चय किया कहीं भी काम मिलेगा तो मैं कर लूंगी। इसी दौरान मुझे एमसीडी में कूड़ा उठाने का काम मिला। मैं बेलचे से कूड़े को उठाकर एमसीडी की गाड़ी में भरती थी। वह काम भी ज्यादा दिन तक नहीं कर पाई। बेलचा चलाने के कारण मेरी तबीयत खराब हो गई। मुझे खून की उल्टियां होने लगी। इतनी बुरी स्थिति में भी मेरे घरवालों ने मेरा हाल नहीं पूछा।"

सेक्स वर्क कभी नहीं करुंगी

ऐसी परिस्थिति में एक बार फिर नई नौकरी खोजने की चिंता मुझे सताने लगी। क्योंकि मैंने ठान लिया था कि कुछ भी करुंगी, लेकिन सेक्स वर्क नहीं करुंगी। मेरी इसी इच्छा शक्ति ने मुझे आज यहां पहुंचाया है।

मैंने लोगों से जॉब के लिए कहना शुरू किया। इसी दौरान मुझे किसी ने सरिता मैंम के बारे में बताया। सरिता पहल एनजीओ की प्रोजेक्ट मैनेजर है। कनिका कहती है कि, इन्होंने मुझसे मुलाकात कर भरोसा दिलाया कि वह मुझे कहीं न कहीं नौकरी जरूर दिलाएंगी। ऐसा हुआ भी। कनिका बड़ी खुशी के साथ कहती हैं कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि इतनी अच्छी नौकरी करुंगी। जहां हमारे समाज के लोगों को इतने अच्छी दृष्टि से देखा जाएगा। वह कहती है, "आज मैं एक अच्छी जिंदगी जी रही हूं। मेरे लिए पहल के लोग ही मेरा परिवार है, जिनके साथ मैं अपना हर दुःख-सुख साझा कर सकती हूं।"

सरिता, प्रोजेक्ट मैनेजर, पहल एनजीओ [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]
सरिता, प्रोजेक्ट मैनेजर, पहल एनजीओ [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]

ट्रांसजेडर को आर्थिक रूप से मजबूत करने की जरूरत

पहल एनजीओ की प्रोजेक्ट मैनेजर सरिता कहती हैं कि, यह मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिसके तहत मैं ट्रांसजेंडर को कॉरर्पोरेट की जॉब में एंट्री दिलवाती हूं। जिसके लिए पहले उन्हें हर तरह की ट्रेनिंग दी जाती है। यहां तक की इंटरव्यू में क्या कहना क्या नहीं ये भी बताया जाता है ताकि वह पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कह पाएं।

सरिता कहती है कि, "हम ट्रांसजेंडर को मोरल स्पोर्ट तो देते हैं, लेकिन आर्थिक रूप से मजबूत नहीं करते हैं, जिसके कारण आज भी वह सड़कों पर भीख मांगते हुए दिखाई देते हैं या मांग कर अपना गुजारा करते हैं।"

नियम बने, लेकिन आज भी ट्रांसजेंडर बदहाली में

साल 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 4.88 लाख ट्रांसजेंडर हैं। लेकिन, इनकी संख्या और भी अधिक हो सकती है। क्योंकि यह वही ट्रांसजेंडर है जिन्होंने अपना पंजीकरण कराया है।

ट्रांसजेंडर की स्थिति को देखते हुए साल 2016 में 'ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिकार का संरक्षण अधिनियम' लाया गया, जिसके अनुसार भेदभाव से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को रक्षा करने और उनके लिए स्वास्थ्य, शिक्षा एवं रोजगार से संबंधित कल्याणकारी योजनाओं का प्रावधान है।

इसके साथ ही इस बिल के अनुसार एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को ट्रांस व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान को मान्यता देने और बिल के तहत प्रदत्त अधिकारों को हासिल करने के लिए पहचान का सार्टिफिकेट हासिल करना होगा। इस तरह के कानून बनने के इतने सालों बाद भी ट्रांसजेंडर आज भी बदहाली का जीवन जी रहे हैं।

राष्ट्रीय मानवाधिकार द्वारा ट्रांसजेंडरों पर किए गए पहले अध्ययन के अनुसार 92 प्रतिशत ट्रांसजेंडर देश के किसी भी आर्थिक गतिविधि में भाग लेने से वंचित रह जाते हैं, जिसके अनुसार 96 प्रतिशत ट्रांसजेंडर बधाई या भीख मांगकर अपना गुजारा करते हैं। इसके साथ ही 23 प्रतिशत सेक्स वर्क कर जीवनयापन कर कर रहे हैं। इस अध्ययन में यह पाया गया कि प्रताड़ना, अशिक्षा, सामाजिक बहिष्कार इसके मुख्य कारण है। ट्रांसजेंडरों में काबिलियत होने के बाद भी उन्हें काम नहीं मिल रहा है। जिसका नतीजा यह है कि साल 2017 में कोच्चि मेट्रो लिमिटेड में कुछ ट्रांसजेंडर को नौकरी दी गई, लेकिन एक सप्ताह के अंदर ही उसमें से कुछ ट्रांसजेंडर ने नौकरी छोड़ दी।

छत्तीसगढ़ राज्य में एनजीओ द्वारा सरकारी नौकरियों में ट्रांसजेंडर की भागीदारी को लेकर बातचीत चली। जिसका नतीजा यह हुआ कि साल 2021 में छतीसगढ़ पुलिस में 13 ट्रांसजेंडरों की भर्ती हुई।

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