समलैंगिक विवाह पर होगी आज भी बहस, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

कोर्ट ने साफ कह दिया वह पर्सनल लॉ पर विचार नहीं करेगा
दिल्ली में हुए क्वीर प्राइड मार्च 2022 की तस्वीर
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नई दिल्ली। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में आज बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी। मंगलवार को गरमा-गरम बहस के बीच सुनवाई शुरू हुई। केंद्र सरकार ने सुनवाई को लेकर आपत्ति उठाते हुए कहा कि पहले यह तय होना चाहिए कि कौन से मंच पर इस मुद्दे पर बहस हो सकती है। क्या अदालत वैवाहिक रिश्ते की सामाजिक और कानूनी मान्यता न्यायिक फैसले के जरिये तय कर सकती है। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा विधायिका के विचार क्षेत्र में आता है।

समलैंगिक शादी को मान्यता देने की मांग वाली 20 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा बेंच में शामिल है। कपिल सिब्बल ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस मामले में राज्यों को भी पार्टी बनाया जाए।

समलैंगिक विवाह पर कोर्ट में क्या-क्या हुआ

भारत की शीर्ष अदालत ने 2018 में समलैंगिक संबंध पर प्रतिबंध को हटाकर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। 6 दिसंबर को 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, समलैंगिकता कोई क्राइम नहीं है। कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि समलैंगिकों के भी वही मूल अधिकार होते हैं, जैसे कि किसी आम नागरिक को अपनी इच्छा के मुताबिक जीने का अधिकार है।

तब कोर्ट ने इंडियन पैनल कोड की धारा 377 को खत्म कर दिया था। यह फैसला तब के तात्कालिक चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने दिया था। उन्होंने कहा था कि जो जैसा है उसे उसी रूप में कुबूल किया जाना चाहिए। समाज में समलैंगिकों के बारे में सोच बदलने की जरूरत है।

अदालत में समलैंगिकों की क्या है याचिका

समलैंगिक विवाह को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट के अलावा कई और अदालतों में याचिकाएं डाली गई थीं। अदालतों में कम से कम 15 याचिकाएं लगाई गई थीं। सभी याचिकाओं में समलैंगिक जोड़ों और एक्टिविस्टों ने विभिन्न विवाह अधिनियमों को चुनौती दी थी और कहा था कि ये विवाह अधिनियम उन्हें आपस में विवाह करने से रोकते हैं। उनके अधिकार से वंचित करते हैं।

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इन याचिकाओं में शीर्ष अदालत से विवाह अधिनियमों के प्रावधानों को व्यापक रूप से पढ़ने का अनुरोध किया गया था ताकि उनमें समलैंगिक विवाह को लेकर भी उचित जगह बनाई जा सके।

मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट पिछले साल 25 नवंबर और 14 दिसंबर को समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। जिसके बाद इस साल 6 जनवरी को कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को अपने पास इकट्ठा कर लिया था।

जिसके बाद 13 मार्च को मुख्य न्यायधीश डीआई चंद्रचूड़ सिंह के नेतृत्व वाली बेंच ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पांच जजों की संवैधानिक बेंच को भेज दिया था।

भारत में कितने समलैंगिक हैं?

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार साल 2012 में भारत सरकार ने इस समुदाय की जनसंख्या 2.5 मिलियन बताई थी। दुनिया में पूरी आबादी का यह कम से कम 10 फीसदी है। लेकिन पिछले कुछ सालों में भारत में समलैंगिकों की संख्या बढ़ी है। 2020 में एक सर्वेक्षण में 37 फीसदी लोगों ने कहा था कि वह इसके पक्ष में थे।

केंद्र सरकार ने इसका विरोध किया

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल कर सेम सेक्स मैरिज (समलैंगिक शादी) को मान्यता देने की मांग की गई है। वहीं केंद्र सरकार ने इसका विरोध किया है। समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में एक और अर्जी दाखिल की गई है. जमीयत उलेमा ए हिन्द के बाद एक और मुस्लिम निकाय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया है।

दो मुस्लिम संगठनों ने विरोध किया

तेलंगाना मरकजी शिया उलेमा काउंसिल ने समलैंगिक विवाह का विरोध किया हैं। अपनी अर्जी में इसने कहा है कि समलैंगिक विवाह की अवधारणा पश्चिमी भोगवादी संस्कृति का हिस्सा है। भारत के सामाजिक ताने-बाने के लिए यह विचार अनुपयुक्त है। समान-सेक्स के बीच विवाह को वैध बनाने का विचार विशेष रूप से पश्चिमी अवधारणा है, क्योंकि पश्चिमी देशों में, धर्म काफी हद तक कानून का स्रोत नहीं रह गया है।

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अर्जी में कहा गया है कि विवाह का प्रश्न धर्म और व्यक्तिगत कानून से जुड़ा हुआ है, इसलिए समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाएं खारिज की जाएं। दो विपरीत लिंग वालों में शादी होना, विवाह की मूल विशेषता है। इस्लाम में शुरुआत से ही समलैंगिकता को लेकर पाबंदी रही है। जमीयत ने एलजीबीटीक्यूआईए को पश्चिमी यौन मुक्ति आंदोलन से उपजा बताया है।

सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा

श्री सनातम धर्म प्रतिनिधि सभा ने कहा कि समलैंगिक विवाह की अवधारणा विनाशकारी है और इसका भारतीय संस्कृति और समाज पर हानिकारक प्रभाव होगा। हिंदू संगठन ने इसके विरोध में वेदों का हवाला दिया है। सभा के मुताबिक, वेदों में कहा गया है कि जिनके पास पत्नियां हैं। उनके पास वास्तव में एक पारिवारिक जीवन हैं। जिनकी पत्नियां हैं, वे सुखी हो सकते हैं. जिनके पास पत्नियां हैं, वे पूर्ण जीवन जी सकते हैं। मनुस्मृति का भी उदाहरण दिया, जिसमें कहा गया कि महिलाओं को मां बनने के लिए और पुरुष को पिता बनने के लिए बनाया गया है।

तेलंगाना मरकजी शिया उलेमा काउंसिल

इस्लाम के शिया मत में भी समलैंगिक विवाह को लेकर ऐसा ही विचार है. तेलंगाना मरकजी शिया उलेमा काउंसिल ने दावा किया कि समलैंगिक जोड़ों द्वारा पाले गए बच्चों में आगे चलते डिप्रेशन, कम पढ़ाई लिखाई और नशा करने की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है. इसने आगे कहा है कि पश्चिम में धर्म काफी हद तक कानून का स्रोत नहीं रह गया है और यह निजी जीवन इसकी बहुत भूमिका नहीं रह गई है. दूसरी ओर, भारत में धर्म पारिवारिक और सामाजिक संबंधों के साथ ही व्यक्तिगत कानून को आधार देने में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाता है।

अखिल भारतीय संत समिति

हिंदू संगठन अखिल भारतीय संत समिति ने कहा है कि पति और पत्नी को साथ रखना ये प्रकृति का कानून है। हिंदू विवाह के दौरान कन्यादान और सप्तपदी मुख्य संस्कार है। संगठन ने समलैंगिक विवाह को पूरी तरह अप्राकृतिक बताया है।

द मूकनायक ने पूरे मामले पर पंजाब विश्वविद्यालय की छात्रा व दलित ट्रांस फीमेल और ट्रांसजेंडर राइट्स एक्टिविस्ट, बहुजन क्वीर कलेक्टिव की संस्थापक याशिका से बात की। वह कहती है समलैंगिक शादियां होनी चाहिए। क्योंकि हर किसी को उसके साथ रहने का अधिकार है। जिससे वह प्यार करता है। शादियां ही नहीं बल्कि ट्रांसजेंडर दंपत्ति को यह भी आजादी मिलनी चाहिए कि वह शादी कर सके, बच्चा गोद ले सके। क्योंकि जब तक इन सारी चीजों पर कानूनी दिशा निर्देश नहीं बनेंगे तब तक बात अधूरी ही रहेगी। इसके लिए सरकार को कानून जल्द ही बनाने चाहिए।

समलैंगिक शादियों के लिए बने कानून - एडवोकेट प्रीति

द मूकनायक से एडवोकेट प्रीति शाह ने कहा कि शादी एक ऐसी चीज है जिसमें 2 लोगों की सहमति होती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की शादी करने वाले दो लोग अलग-अलग लिंग के हैं। या दोनों एक ही है।

मान लीजिए कि समलैंगिक शादी को मान्यता मिल भी जाती है। तो उसके लिए सरकार को कुछ ऐसे दिशानिर्देश बनाने चाहिए। जिससे यह समलैंगिक शादियां ही समाज की साधारण शादियों जैसी हो जाएं। सरकार को ऐसे कानून बनाने चाहिए कि इससे दोनों साथियों में से किसी एक को भी संघर्ष नहीं करना पड़े।

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