नई दिल्ली। अब थाईलैंड में भी समलैंगिक विवाह को जल्द ही कानूनी मान्यता मिल सकती है। नेशनल असेंबली में इससे जुड़ा हुआ विधेयक भारी बहुमत से पारित हो गया है। अब बस थाईलैंड के राजा महा वजिरालोंगकोर्न की मंजूरी की आवश्यकता है। इधर, प्रमुख एशियाई देश भारत में समलैंगिक शादी को लेकर गतिरोध बना हुआ है। यहां के सुप्रीम कोर्ट ने हाल के एक फैसले में सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने से इंकार कर दिया था।
थाईलैंड नेशनल असेंबली के उच्च सदन 'सीनेट' ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाले एक विधेयक को गत मंगलवार को भारी बहुमत के साथ मंजूरी प्रदान कर दी। इसके साथ ही थाईलैंड दक्षिण-पूर्वी एशिया में ऐसा कानून लागू करने वाला पहला देश बन गया है।
सीनेट में विधेयक पर हुए मतदान के दौरान 152 सदस्य मौजूद थे, जिनमें से 130 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में मतदान किया, जबकि चार सदस्यों ने इसके खिलाफ मतदान किया। सीनेट के 18 सदस्यों ने मतदान की प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया।
अब इस विधेयक को थाईलैंड के राजा महा वजिरालोंगकोर्न की औपचारिक स्वीकृति मिलने की आवश्यकता है, जिसके बाद इसे सरकारी राजपत्र में प्रकाशित किया जाएगा। सरकारी राजपत्र 120 दिनों के भीतर एक तिथि निर्धारित करेगा जब विधेयक कानून के रूप में लागू हो जाएगा। ताइवान और नेपाल के बाद थाईलैंड समलैंगिक विवाह को अनुमति देने वाला एशिया का तीसरा देश बन जाएगा।
विवाह समानता विधेयक, किसी भी लिंग के विवाहित साथियों को पूर्ण कानूनी, वित्तीय और चिकित्सा अधिकार प्रदान करता है। इस विधेयक को अप्रैल में पिछले संसदीय सत्र के समापन से ठीक पहले संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा ने पारित कर दिया था।
यह विधेयक कानून में संशोधन कर 'पुरुष और महिला' और 'पति और पत्नी' शब्दों को बदलकर 'व्यक्ति' और 'विवाह साथी' कर देगा। थाईलैंड की स्वीकार्यता और समावेशिता के लिए प्रतिष्ठा है, लेकिन विवाह समानता कानून पारित करने के लिए उसे दशकों से संघर्ष करना पड़ रहा है।
ताइवान और नेपाल देश के बाद थाईलैंड, समलैंगिक विवाह की अनुमति मिल चुकी है। अगर बात एशिया में समलैंगिक कानून वाले देश की बात करें तो थाईलैंड एशिया का तीसरा देश और साउथ ईस्ट एशिया का पहला देश बन गया है। इस कानून के अंतर्गत सेम सेक्स विवाह सामनाता विधेयक, किसी भी लिंग के विवाहित साथियों को कानून, फाइनेंस और मेडिकल अधिकार प्रदान किए जाएंगे।
द मूकनायक से राजस्थान निवासी ट्रांसजेंडर नूर शेखावत ने कहा-"यह बहुत ही अच्छी बात है कि थाईलैंड ने समलैंगिक शादी को मंजूरी दी है। हमारे देश में इस चीज को अभी भी सकारात्मक तौर पर नहीं लिया जाता है। एक दूसरे के ऊपर इसको डाला जा रहा है। समझ ही नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है। भारत इतना बड़ा देश है यहां आए दिन LGBTQI+ को लेकर बातें होती रहती हैं, लेकिन इनके हक को लेकर कोई बात जल्दी सामने नहीं आती है। समलैंगिक विवाह को लेकर भारत में भी फैसला जल्दी ही आना चाहिए।"
राजस्थान हाई कोर्ट में वकील मनिंदरजीत जो LGBTQ+ के लिए काम भी करते हैं। द मूकनायक को बताते है- "जैसे थाईलैंड ने समलैंगिंग विवाह को मान्यता दे दी है। इस तरह कुछ-कुछ देश इस बात को समझने लगे हैं कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देना कोई बुरी बात नहीं है। इसको मान्यता देना सही है। भारत में अभी भी इस पर सोच विचार ज्यादा हो रहा है। समलैंगिक विवाह वाला मामला जब सुप्रीम कोर्ट में गया था, तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कानून हम नहीं बना सकते। LGBTQI+ के साथ भेदभाव आदि के लिए वह एक कमेटी बनाएंगे। यह कमेटी अप्रैल में आकर बनी थी। इस कमेटी में उस समय LGBTQ+ कम्युनिटी से कोई भी सदस्य नहीं था। अगर बाद में कोई सदस्य जोड़ा गया हो तो उसकी जानकारी मुझे नहीं है।"
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल के अपने फैसले में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था। बेंच ने कहा था कि कानून समलैंगिक विवाह के अधिकार को मान्यता नहीं देता है, इसके लिए कानून बनाना संसद पर निर्भर है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला पढ़ते हुए कहा था कि समलैंगिकता कोई शहरी अवधारणा नहीं है। यह समाज के उच्च वर्गों तक ही सीमित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अदालत कानून नहीं बना सकती, वह केवल इसकी व्याख्या कर सकती है और इसे प्रभावी बना सकती है।
सीजेआई चंद्रचूड़ का कहना था कि यह कहना गलत है कि विवाह एक स्थिर और अपरिवर्तनीय संस्था है। उन्होंने कहा कि अगर विशेष विवाह अधिनियम को खत्म कर दिया गया तो यह देश को आजादी से पहले के युग में ले जाएगा। विशेष विवाह अधिनियम की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं, यह संसद को तय करना है।
उन्होंने अपने फैसले में समलैंगिकों को बच्चा गोद लेने का अधिकार दिया था। साथ ही उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों को समलैंगिकों के लिए उचित कदम उठाने के आदेश दिया था.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा एक सर्वेक्षण—स्प्रिंग 2023 ग्लोबल एटिट्यूड्स सर्वे के परिणाम जारी किए गए थे, जिसमें पाया गया है कि सर्वे में शामिल लगभग 53% भारतीय समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की बात को स्वीकार कर रहे हैं। भारत में 28 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने का “दृढ़ता से समर्थन” किया, जबकि 25 प्रतिशत ने “कुछ हद तक इसका समर्थन किया”, जिससे देश में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के पक्ष में लोगों की कुल संख्या 53 प्रतिशत हो गई। हालांकि, भारत के विचार का विरोध करने वालों का प्रतिशत भी महत्वहीन नहीं था—31 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने उस आशय के किसी भी नीति परिवर्तन का “दृढ़ता से विरोध” किया।
केवल 12 प्रतिशत भारतीय उत्तरदाताओं ने कहा कि वे समान-लिंग विवाह को वैध बनाने का कुछ हद तक विरोध करते हैं, जिससे कुल नकारात्मक प्रतिक्रिया लगभग 43 प्रतिशत हो गई। लगभग 4 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने सवाल का जवाब नहीं दिया।
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