ट्रांस कम्युनिटी के साथ स्कूल-कॉलेज में यौन प्रताड़ना: 10 साल पहले छूटी शिक्षा की डोर, अब नूर होंगी राजस्थान विवि की पहली ट्रांसस्टूडेंट

सभ्य समाज में ट्रांसजेंडर के साथ हो रहे भेदभाव पर नूर शेखावत ने द मूकनायक से की खुलकर बात।
ट्रांसपर्सन नूर शेखावत
ट्रांसपर्सन नूर शेखावत
Published on

जयपुर। सुप्रीम कोर्ट के नालसा जजमेंट (2014) में ट्रांसजेंडर समुदाय को थर्ड जेंडर की मान्यता देने और इनके साथ भेदभाव नहीं किये जाने के स्पष्ट निर्णय के बावजूद आज भी इस समुदाय से ताल्लुक रखने वाले लोग सामाजिक परिहास और भेदभाव का शिकार हैं। समाज तो क्या, स्वयं के परिजन भी इनकी लैंगिक पहचान उजागर होने पर इन्हें सार्वजनिक रूप से अपनाने से कतराते हैं और यही वजह है कि आज भी समाज में ट्रांसमहिला- पुरुष उपेक्षित हैं। 

राजस्थान की एक ट्रांसपर्सन नूर शेखावत पिछले कुछ दिनों से चर्चा में हैं। नूर गत माह 19 जुलाई को राज्य की पहली व्यक्ति बनी जिनके जन्म प्रमाणपत्र में लिंग कॉलम में 'ट्रांसजेंडर' दर्ज किया गया है। नूर के बचपन में बने जन्मप्रमाण पत्र पर उसकी पहचान आदित्य प्रताप के नाम से पुरुष के रूप में थी। 31-वर्षीया नूर ने हाल ही राजस्थान यूनिवर्सिटी जयपुर से संबद्ध प्रतिष्ठित महारानी कॉलेज में दाखिला लेने के लिए आवेदन किया है और प्रक्रिया पूर्ण होने पर उन्हें यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली पहली ट्रांस स्टूडेंट का गौरव हासिल होगा। द मूकनायक ने नूर शेखावत से खास बातचीत की जिसमें उन्होंने जीवन के कड़वे मीठे अनुभवों को खुलकर सांझा किया। 

परिवार में पाबंदी, वजूद को लेकर ऊहापोह

नूर शेखावत कहती हैं कि जब किसी के घर ट्रांसजेंडर पैदा होता है, तो परिवार उसकी पहचान छिपाकर रखता है। परिवार बच्चों को पाबंद कर देता है कि हमारे हिसाब से रहो। या फिर घर छोड़ कर जाओ। यह सच है कि ट्रांसजेंडर को मानसिक प्रताड़ना घर से ही मिलना शुरू होता है। फिर समाज भी हेय नज़रों से देखता है।

नूर कहती हैं कि मेरे साथ भी यही हुआ। इस दर्द को लेकर मैं अंदर ही अंदर घुटती रही। किसी को कुछ बता नहीं सकती थी कि मैं कैसे-क्या फील कर रही हूं। मैं लड़कों को देखती, लेकिन फिर अहसास होता कि मैं लड़का तो नहीं हूं, लड़कियों को देखती, फिर विचार आता कि मैं लड़की भी नहीं हूं। मेरे अंदर क्या कमी है? मैं क्यूं ऐसी हूं? यह मेरे साथ हो क्या रहा है? यही सवाल मेरे दिमाग में कौंधते रहते थे। किसी को कुछ समझा नहीं पा रही थी। सच तो यह है कि मैं खुद अपने वजूद को नहीं समझा पा रही थी, तो किसी को क्या समझा पाती। 

नूर ने बताया उनका जन्म जून 1992 में जयपुर शहर में ही हुआ था। "मुझसे दो साल छोटा मेरा भाई है। जब में तीन साल की हुई तो मेरे पिता का देहांत हो गया। मुझे घर में बताया गया कि मैं लड़का हूं। समय निकलता गया। स्कूल में मेरा दखिला कराया गया। अपने भाई के साथ में स्कूल जाने लगी। स्कूल के अंदर मेरे साथ जो सहपाठियों का रवैया था, बहुत ही मानसिक टॉर्चर करने वाला था। मुझे बच्चे चिढ़ाने लगे थे। घर आकर मम्मी को बताती तो मुझे ही डांट मिलती थी।"

शैक्षिक संस्थान में यौन उत्पीड़न

नूर के साथ सहपाठियों ने जबरन सेक्स किया। नूर कहती हैं कि इस घटना के बाद मन में डर बैठ गया, जब घर जाकर मम्मी को घटना के बारे में बताया तो उन्होंने उल्टा नूर की पिटाई कर दी और उसे ही इस घटना के लिए जिम्मेदार ठहराया। इस घटना से नूर के कोमल मन में इतना गहन प्रभाव पड़ा कि उसे स्कूल जाने , यहां तक कि स्कूल की घण्टी की आवाज से भी खौफ हो गया। भाई के साथ वह स्कूल जाती तो थी लेकिन क्लास में जाने की बजाय बाहर गार्डन में रुक जाती और स्कूल की छुट्टी होने पर गेट पर खड़ी हो जाती ताकि भाई को लगे कि वह क्लास से ही बाहर आई है। 

"जब कई दिनों तक स्कूल में नजर नहीं आती तो टीचर मम्मी से स्कूल नहीं आने की शिकायत करते थे। इस बात को लेकर भी मम्मी पिटाई करती थी।"

नूर बताती है कि उन्होंने जैसे तैसे हिम्मत करके इंटर पास कर कॉलेज में दाखिला लिया। उन्होंने बताया, "जैसे ही कॉलेज में पहुुंची तो स्टुडेंट्स मुझे अलग ही नजरिए से देखने लगे थे। यहां भी लड़कों का रवैया ठीक नहीं था। कॉलेज में भी प्रताड़ना झेली। स्थिति यह हो गई कि मुझे प्रथम वर्ष में बीच सत्र में ही पढ़ाई छोड़ना पढ़ा। यह 2013 की बात है।" 

घर छोड़ा, ट्रांस समुदाय से जुड़ा नाता

नूर कहती हैं पढ़ाई छोड़ने के बाद कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें। अपनी पीड़ा किसी को ना समझा पाने की पीड़ा, परिजनों की उपेक्षा, सामाजिक परिहास ने उसे इतना तोड़ दिया कि नूर आत्महत्या करने की कगार पर पहुंच गई। "मन में खयाल आता है कि ऐसे जीवन का क्या करना है। मैं घर बैठकर अकेले रोती रहती थी। इन विचारों के साथ समय बीतता गया। फिर 2014 में मन में खयाल आया और मैं अपने समाज (ट्रांसजेंडर्स) में उठने बैठने लगी थी। उनके साथ बात करने लगी। इनके साथ आने-जाने लगी। तब उन्होंने मुझे समझाया कि बेटा समाज में हमारे साथ ऐसा ही होता है। हम जैसे पैदा होते हैं वैसा हमें नहीं रखा जाता है। तू हमारे समुदाय में आकर जैसे जीना चाहे जिंदगी जी सकती है। अपने वजूद को कायम रख सकती है। इसके बाद में 2016-17 में अपने समाज के लोगों के साथ उदयपुर चली गई।" 

उदयपुर शहर में समुदाय के लोगों के साथ बधाईयां मांगने लगी। यह काम मुझे अच्छा लगने लगा था। अपने लोगों के बीच रह कर मुझे किसी को कुछ भी समझाने की जरुरत नहीं पड़ रही थी। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे पहली बार अहसास हुआ कि मैं अपने परिवार में आई हूं। इससे पहले तक मुझे लगता था कि में गैरों के बीच पल रही हूं। जबरदस्ती मुझे पाला जा रहा है। 

नूर कहती हैं, मुझे लगता था कि मैं किसी गाय की तरह खूंटे से बांध दी गई थी जिसे दो टाइम चारा दिया जाता था। लेकिन जब अपने किन्नर समाज में आई तो मुझे लगा कि मुझे भी अपने मन मुताबिक आज़ादी से जीने का अधिकार है।

नूर कहती है कि यहां रहते हुए मैं जब में दूसरे लड़के लड़कियों को स्कूल कॉलेज जाते देखती थी तो सोचती थी कि यह लोग कैसे पढ़ रहे हैं? मैं क्यों नहीं पढ़ सकती? फिर पूर्व में झेली प्रताड़ना मेरे मन से इन विचारों को निकाल देती।  महात्मा गांधी अस्पताल में मंजू जी के द्वारा मेरी काउंसलिंग की गई। मुझे समझाया गया कि तू पढ़ सकती है। सब कुछ ठीक है। 

ट्रांसपर्सन नूर शेखावत के साथ शिवराज गुर्जर
ट्रांसपर्सन नूर शेखावत के साथ शिवराज गुर्जर

यहां से बदली जिंदगी

नूर शेखावत ने द मूकनायक को बताया कि पीएचडी छात्र शिवराज गुर्जर से मुलाकात के बाद उसकी जिंदगी बदली। गुर्जर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों पर पीएचडी कर रहे हैं। नूर उनका पहला केस स्टडी थी। 

"ट्रांसजेंडर को समझने के लिए उन्होंने मुझ से बात चीत की। मेरे जीवन का संघर्ष जाना । नूर ने उन्हें बताया कि पढ़ाई छोड़ने की कसक उसके मन में गहरी है क्योंकि अगर पढ़ाई कर पाती तो डॉक्टर, इंजीनियर या फिर पुलिस व प्रशासन में होती या किसी प्राइवेट कंपनी में जॉब होता तो उसका तो मजा ही कुछ  और होता। 

नूर की कहानी सुनने के बाद गुर्जर ने उनकी हिम्मत बढ़ाई और कहा कि ट्रांसजेंडर एक्ट के तहत कई प्रावधान हैं, जरूरी दस्तावेज बनाकर वे अपनी पढ़ाई जारी रख सकती हैं।

उन्होंने कहा पहले 6 से 7 महीने तक तो मैंने कोई रूचि नहीं ली, लेकिन फिर मुझे लगने लगा कि मेरे लिए ना सही, लेकिन मेरे समुदाय के लिए कुछ करना है। मेरा जीवन कट गया है। मैं ३१ वर्ष की हूं, लेकिन अब समाज में कोई नूर पैदा नहीं होगी। 

क्यों करता है समाज भेदभाव?

नूर कहती हैं कि दुनिया में किन्नर अनादिकाल से हैं। धार्मिक ग्रंथो में इनका जिक्र है। हमारा समुदाय कल भी था। आज भी है, लेकिन मेरा समाज से एक सवाल है- आखिर यह सभ्य समाज हमारे साथ क्यों इतना दोगला पन करता है?   इसी समाज के बीच जब बधाईयां मांगने जाती हूं तो यह आदर करते हैं, पैर छूते हैं। मेरे सामने दस्तरखान बिछा देते हैं। मेहमान नवाजी करते हैं। लेकिन वही जजमान एक किन्नर को किराए पर घर नहीं देते? किन्नर अपने हक की बात करे तो वही जजमान यह सोचता है कि इनके लिए किसी वस्तु की क्या ही जरुरत है? 

एक तरफ किन्नर का आदर सत्कार किया जाता है, दुआएं लेने के लिए आवभगत करते हैं लेकिन घूमते ही पीठ पीछे उन्हें कोसते और परिहास करते हैं।  

नूर से पूछा गया कि पहली बार कब अहसास हुआ कि आप ट्रांसजेंडर हो? सवाल पर  शेखावत कहती हैं  कि बचपन से ही मुझे बताया गया कि मैं मर्द हूं। स्कूल में भी मेरा जेंडर मेल था। कॉलेज शिक्षा में भी दाखिला हुआ तब भी जेंडर मेल था। उन्होंने कहा कि हमारे यहां समाज में शुरू से हमें कुछ और अहसास दिलाया जाता है। जब किशोरावस्था में जाते हैं तो हम आस-पास देखते हैं। लड़का और लड़की में फर्क साफ नजर आता है। तो फिर मेरे मन में विचार आया कि मैं क्या हूं। क्योंकि सभ्य समाज सिर्फ आदमी और औरत को ही पहचानता है। मैं दोनों ही नहीं थी और समाज की प्रताड़ना ने अहसास कराया कि मैं क्या हूँ।

रिसर्चर शिवराज गुर्जर को सभी क्रेडिट देते हुए नूर कहती हैं कि उन्होंने मुझे समझाया कि आपके पास आपकी पहचान के लिए यह सभी दस्तावेज होने जरुरी है। उन्होंने मुझे गाईड किया। उनकी बदौलत ही आज मैं यहां तक पहुंच पाई हूं। मैं खुद को एनजीओ चला रही हूं जो कि ट्रांसजेंडर पर काम करता है। शिवराज मेरे जीवन में गॉड फादर बनकर आए हैं।

दस्तावेज बनाने में अड़चनें, राहत कैम्प में किन्नरों को नहीं तरजीह

जब दस्तावेज बनवाए तो क्या दिक्कतें आई? सवाल करने पर नूर शेखावत ने बताया कि अपने दस्तावेज बनाने में आम जनता को भी परेशानी आती है। तो फिर ट्रांसजेंडर की क्या बात कहें ! "आप देख लें अभी सरकार ने जगह-जगह राहत कैंप लगाए थे। इन कैंपो में मर्द-औरत की ही भीड़ थी। किन्नर समुदाय कहीं नहीं दिखा। क्योंकि सरकार इन कैम्पों में केवल मर्द और औरत के लिए योजनाओं पर राहत पहुंचा रही थी। यहां किन्नर समाज के लिए कोई राहत नहीं थी।"

नूर कहती हैं कि शिवराज गुर्जर के कहने पर जब मैंने जन्म प्रमाण पत्र व अन्य दस्तावेज बनवाने ई-मित्र पर आवेदन किया तो जेंडर को लेकर आपत्ति हुई। यहां ट्रांसजेंडर का विकल्प ही नहीं था।  नूर ने कहा कि इसके बाद ठान लिया कि जो भी दस्तावेज बनवाना है तो सम्बंधित विभाग में जाकर अधिकारी से ही बनवाना है। दस्तावेज बनेगा या नहीं यह तो बाद की बात है, लेकिन कम से कम इनको मेरे समाज के लिए सेंसेटाइज कर पाउंगी। ताकि किसी भी ट्रांसजेंडर का आवेदन रिजेक्शन में ना जाए। किन्नर समाज हर कहीं धक्के खाता नहीं फिरेगा।

नूर कहती हैं उनके जन्म प्रमाण पत्र में थर्ड जेंडर दर्ज होने के बाद अब उनके समुदाय के अन्य लोगों को इस प्रकार के सर्टिफिकेट बनवाने में परेशानी नहीं होगी। 

नूर कहती हैं अभी उन्होंने कॉलेज में भर्ती के लिएआवेदन किया है। एडमिशन हुआ नहीं है। " मुझे खुशी है कि देश में जन्म प्रमाण पत्र बनवाने वाली मैं पहली ट्रांसजेंडर हूं। मैंने ट्रांसजेंडर प्रमाण पत्र बनने के बाद राजस्थान युनिवर्सिटी के महारानी कॉलेज में आवेदन किया है। अभी मेरा दाखिला कन्फर्म नहीं हुआ है, लेकिन युनिवर्सिटी व कॉलेज प्रशासन ने मुझे स्पेशल केस मानते हुए आश्वासन दिया है। अभी मेरा आवेदन प्रोसेस में है। उन्होंने कहा कि आपका दाखिला हो जाएगा। मैं इंतजार कर रही हूं।"

यह भी पढ़ें-
ट्रांसपर्सन नूर शेखावत
रायबरेली से ग्राउंड रिपोर्ट: आदिवासी बेटी का अदम्य साहस; खुद 12 साल की लेकिन बचाई तीन बच्चों की जान
ट्रांसपर्सन नूर शेखावत
राजस्थान: कांग्रेस विधायक व आरपीएस अधिकारी पर आरोप, 'दलित मजदूर को पीटा, उसपर पेशाब की और जूते चटवाये'
ट्रांसपर्सन नूर शेखावत
प्रोफेसर ने कहा था 'तुम आईआईटी के लायक नहीं', आज वही दलित शोधार्थी अमरीका की प्रयोगशाला प्रणाली का हिस्सा

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com