नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में ट्रांसजेंडर लोगों के लिए 100 से अधिक टॉयलेट का निर्माण किया गया है। दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट को इस बात की जानकारी दी है। समाज कल्याण विभाग के अधिवक्ता ने मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अगुवाई वाली पीठ को बताया कि कुल 102 ऐसे शौचालयों का निर्माण किया गया है और 194 और ऐसे शौचालय बनाए जा रहे हैं। उन्होंने अदालत से कहा, 'प्रयास किए जा रहे हैं और आगे तेजी से और कदम उठाए जाएंगे।
नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) के वकील ने पीठ को सूचित किया कि एनडीएमसी क्षेत्र में ट्रांसजेंडर लोगों के लिए 12 शौचालय हैं । ऐसे 79 और शौचालयों के निर्माण के वास्ते ठेके दिए गए हैं। एनडीएमसी क्षेत्र को आमतौर पर लुटियंस दिल्ली कहा जाता है। हाई कोर्ट में जस्मीन कौर छाबड़ा की जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है। याचिकाकर्ता ने इस आधार पर ट्रांसजेंडर लोगों के लिए पृथक शौचालय बनाए जाने का निर्देश देने का अनुरोध किया है कि ऐसे शौचालय नहीं होने से इन लोगों के यौन उत्पीड़न और परेशान किए जाने का खतरा रहता है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले ट्रांसजेंडर लोगों के लिए सार्वजनिक शौचालयों का तेजी से निर्माण करने का आदेश दिया था। न्यायालय ने अब कहा है कि वह इस याचिका पर आदेश जारी करेगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रशासन की ओर से इस मोर्चे पर 'काफी प्रगति' हुई है। न्यायमूर्ति शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने कहा, 'हम इसका निस्तारण करेंगे।' 14 मार्च को हाई कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि ट्रांसजेंडर लोगों के वास्ते सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण के उसके निर्देश के उल्लंघन की स्थिति में वह शहर के अधिकारियों को अदालत में पेश होने का आदेश देगा।
जनहित याचिका में कहा गया कि ट्रांसजेंडर समुदाय देश की कुल आबादी का 7-8 प्रतिशत हिस्सा है, इसलिए समान व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों को उनके लिए शौचालय उपलब्ध कराने चाहिए। याचिका में कहा गया की मैसूर, भोपाल और लुधियाना जैसे अन्य शहरों ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग सार्वजनिक शौचालय बनाने के लिए कदम उठाए हैं, जबकि राष्ट्रीय राजधानी ने ऐसी पहल नहीं की है।
याचिका में तर्क दिया गया कि ट्रांसजेंडरों के लिए अलग शौचालय की सुविधा का अभाव उन्हें पुरुष शौचालयों का उपयोग करने के लिए मजबूर करता है, जहां उनके साथ यौन उत्पीड़न और उत्पीड़न का खतरा होता है। यौन रुझान या लिंग पहचान के आधार पर ऐसा भेदभाव, संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, जो कानून के समक्ष समानता और कानून की समान सुरक्षा की गारंटी देता है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों द्वारा दूसरों के लिए बने शौचालयों का उपयोग पुरुषों और महिलाओं सहित लोगों को असहज महसूस करवाता है और ट्रांसजेंडर समुदाय के “निजता के अधिकार” का उल्लंघन करता है।पिछले साल, दिल्ली सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि विकलांग व्यक्तियों के लिए नामित 505 शौचालय ट्रांसजेंडर के उपयोग के लिए उपलब्ध कराए गए हैं, और उनके लिए अलग शौचालयों के निर्माण में तेजी लाई जाएगी। उच्च न्यायालय ने पहले सरकार को सलाह दी थी कि जहां भी नए सार्वजनिक स्थान विकसित किए जा रहे हैं, वहां ट्रांसजेंडरों के लिए अलग शौचालय का प्रावधान सुनिश्चित किया जाए।
द मूकनायक ने दिल्ली में बना रहे ट्रांसजेंडर शौचालय के बारे में अनिरुद्ध से बात की। अनिरुद्ध एक विचित्र मानवाधिकार कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे बैंगलोर में रहते हैं और कुछ वर्षों से लिंग और कामुकता के मुद्दों पर काम कर रहे हैं, जिसमें ट्रांस बिल के खिलाफ प्रतिरोध भी शामिल है। वे एक ऐसी दुनिया की कल्पना करते हैं जिसमें लोगों को बक्से में बंद न किया जाए और हर कोई सम्मान और समानता के साथ जीवन जीने के लिए स्वतंत्र हो।
द मूकनायक से बात करते हुए उन्होंने बताया कि "जब हम बाहर घूमने या किसी भी कार्य से बाहर जाते हैं तो आप यह नहीं सोचेंगे, कि मुझे टॉयलेट जाना पड़ेगा तो क्या होगा। कितनी बार मैं बाहर जाता हूं, तो मुझे यह सोचना पड़ता है, कि मैं अपनी पानी पियू या नहीं। क्योंकि अगर पानी पी लूंगा तो टॉयलेट जाना पड़ेगा कितने सारे मेरे दोस्त हैं जिनको स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो जाती हैं। क्योंकि वह अस्वच्छ टॉयलेट उपयोग करते हैं। या टॉयलेट का उपयोग ही नहीं करते। यह बहुत ही मूलभूत आवश्यकता है जो किसी को बताने की जरूरत नहीं है। इस पर काम करने की जरूरत है। दुनिया में कितनी सारी स्टडी हुई है। जिनमे यह सामने आया है कि यदि आपको कोई टॉयलेट उपयोग करने से रोकता है, या आपको टॉयलेट में आपत्तिजनक बातें कहता है तो यह प्रताड़ना के अंतर्गत आएगा"।
आगे अनिरुद्ध कहते हैं की "कितनी बार ऐसा हुआ है कि हमारी कम्युनिटी के लोग बाहर जाते हैं तो उनको यह बोला जाता है कि आप फीमेल टॉयलेट में नहीं जा सकते हैं। कभी कहा जाता है कि आप मेल टॉयलेट में नहीं जा सकते। बताइए ऐसे में कोई कितना अपमानजनक महसूस कर रहा होगा। कितना अजीब महसूस हो रहा होगा। इस तरह से कितनी जगह हम लोगों को मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान किया जाता है। हम यह भी नहीं कहते कि सरकार बहुत पैसा लगाकर बहुत अच्छे टॉयलेट बनवाएं। हमारा बस इतना ही कहना है, कि जैसे समाज के हर वर्ग के लिए टॉयलेट की व्यवस्था होती है बस उसी तरह हमारे लिए भी सोचा जाए। और सिर्फ टॉयलेट बनाने से कुछ नहीं होगा इन ट्रांसजेंडर टॉयलेट के प्रति जागरूकता भी फैलाने होगी.
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