भोपाल। मध्य प्रदेश की वर्तमान राजनीति में थर्ड जेंडर की भागीदारी नहीं है। जबकि एक समय ऐसा था जब देश की पहली ट्रांसजेंडर विधायक और महापौर मध्य प्रदेश से निर्वाचित हुए थे। ट्रांसजेंडर कमला बुआ और शबनम मौसी के राजनीति में आने के बाद से ही प्रदेश में एक नई राजनीति की शुरुआत हुई थी। इन दोनों ही ट्रांसजेंडर्स ने समाज को समता, समानता का संदेश दिया था। लेकिन बदलते वक्त ने थर्ड जेंडर को राजनीति से बाहर कर दिया। पूर्व के चुनावों की तरह इस बार भी लोकसभा चुनाव 2024 में प्रदेश की किसी भी सीट से किसी ट्रांसजेंडर ने दावेदारी नहीं की है। हालांकि, मध्य प्रदेश छोड़ दें तो देश के विभिन्न राज्यों में ट्रांसजेंडर राजनीतिक प्रतिनिधित्व दिए जाने की मांग उठा रहे हैं।
वर्ष 1994 में देश में किन्नरों को मतदान का अधिकार मिला था। जिसके बाद से ही ट्रांसजेंडरों ने भी राजनीति में जाने का फैसला किया। साल 2000 में मध्य प्रदेश के शहडोल सोहागपुर विधानसभा के उपचुनाव में मतदाताओं ने शबनम मौसी को विधायक चुना था, इसके बाद साल 2009 में नगर निगम के चुनाव में ट्रांसजेंडर कमला बुआ को सागर का महापौर चुना गया था। देश में यह पहली बार था, जब किसी ट्रांसजेंडर को विधायक और महापौर जैसे बड़े पदों पर जनता के द्वारा निर्वाचित किया गया हो।
मध्य प्रदेश में ट्रांसजेंडर विधायक के निर्वाचित होते ही पूरे देश में किन्नर समुदाय ने राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग उठानी शुरू कर दी। जिसके बाद देश के विभिन्न जगह से पार्षद और अन्य पदों पर ट्रांसजेंडर्स ने चुनावी मैदान में उतरना शुरू कर दिया। मध्य प्रदेश ने देश में ट्रांसजेंडर को राजनीति में आने की रुचि बढ़ाई मगर अब वर्तमान में मध्य प्रदेश में इनकी भागीदारी शून्य है।
प्रतिनिधित्व की मांग तेज
द मूकनायक से बातचीत करते हुए भोपाल की ट्रांसजेंडर एक्टविस्ट संजना सिंह ने बताया कि, राजनीतिक पार्टियों के द्वारा ट्रांसजेंडर को टिकट नहीं दिए जाने से ट्रांसजेंडर समुदाय राजनीतिक प्रतिनिधित्व से बाहर हो रहा है। राजनीतिक पार्टियां यदि हमारे समुदाय के सक्रिय लोगों को जो राजनीति में जाकर जनता की सेवा करना चाहते हैं, उन्हें टिकट देती तो शायद बहुत सारे लोग आज विधायक, सांसद निर्वाचित होते।
दूसरी ओर, बीजू महिला जनता दल की उपाध्यक्ष मीरा परिदा द मूकनायक को बताती हैं कि, "हम तो अपने अधिकारों के लिए कब से लड़ रहे हैं। हम अपने ट्रांसजेंडर को हक देने की बात कर रहे हैं, हमें हर जगह पर यह अधिकार मिलना चाहिए। कितने सारे ऐसे ट्रांसजेंडर हैं, जिन्होंने चुनाव जीते हैं। छत्तीसगढ़ की मेयर मधु बाई जिन्होंने 5 साल तक मेयर की कुर्सी को संभाला है। पता नहीं कितने ऐसे ट्रांसजेंडर हैं जो राजनीति में भी हैं। अप्रैल, 2014 को जब नालसा जजमेंट आया तो उसके अनुसार सबको बराबर अधिकार मिलना चाहिए। जब समानता की बात हो रही है तो हमें भी समान ही समझें। जब कई जगह रिजर्वेशन के लिए हम लड़ रहे हैं तो राजनीति में भी हमें टिकट मिलने का अधिकार होना चाहिए."
"जब सेलिब्रिटी लोग राज्यसभा जा रहे हैं, तो ट्रांसजेंडर्स क्यों नहीं जा सकते..! बॉलीवुड, स्पोर्ट्स पर्सन सभी राजनीति में जा रहे हैं, तो ट्रांसजेंडर चुनाव क्यों नहीं लड़ सकते हैं। यहां बात संख्या की नहीं है कि ट्रांसजेंडर की संख्या कितनी है। बात यहां समानता की और अधिकारों की है। सबको बराबरी का हक मिलना चाहिए," मीरा परिदा ने कहा।
साल 2000 में शहडोल जिले के सोहागपुर (वर्तमान जयसिंहनगर) विधानसभा में हुए उपचुनाव में ट्रांसजेंडर शबनम मौसी ने जीत दर्ज कर प्रदेश की राजनीति में एक नई दिशा दी थी। शबनम मौसी देश की पहली थर्ड जेंडर विधायक बनी थीं। इस चुनाव में 17 फरवरी 2000 को मतदान हुआ। लोगों ने बढ़ चढ़कर मतदान में हिस्सा लिया। इसके बाद 25 फरवरी 2000 को वह घड़ी आई जिसने पूरे देश और दुनिया में सुर्खियां बटोरी। इस दिन हुई मतगणना में शबनम मौसी ने रिकॉर्ड 40.8 प्रतिशत वोट हासिल कर पहली ट्रांसजेंडर विधायक बनने का गौरव हासिल किया था। उन्होंने कांग्रेस, बीजेपी,जनता दल और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को धूल चटाते हुए जीत हासिल की।
बता दें कि 1999 में सोहागपुर सीट कांग्रेस के कद्दावर नेता केपी सिंह के निधन के बाद खाली हुई थी। तब उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी से केपी सिंह के पुत्र बृजेश सिंह और भाजपा से लल्लू सिंह चुनाव लड़ रहे थे। उस समय जनता ने कांग्रेस और भाजपा के बजाय किन्नर शबनम मौसी को चुना था। बताते हैं कि शबनम मौसी ने बहुत कम खर्च में चुनाव लड़ कर जीती थी। शबनम मौसी को कुल 90611 वोटों में से 39937 वोट मिले थे। कांग्रेस के प्रत्याशी बृजेश सिंह को 17282 वोट मिले। वही, बीजेपी के लल्लू सिंह को 22074 वोट मिले और वे दूसरे स्थान पर रहे।
अगले विधानसभा चुनाव में शबनम मौसी ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में फिर से नामांकन दाखिल किया था लेकिन उन्हें फिर हार का सामना करना पड़ा। चुनाव हारने के बाद शबनम मौसी वापस अनूपपुर चली गई। फिलहाल वह राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। साल 2005 में शबनम मौसी के जीवन पर 'शबनम मौसी' नामक एक हिंदी फिल्मी भी बनी थी, जिसमें शबनम मौसी की भूमिका मध्य प्रदेश के ख्यात अभिनेता आशुतोष राणा ने निभाई थी।
शबनम मौसी के विधायक बनने के बाद किन्नर समुदाय राजनीति के प्रति प्रोत्साहित हुआ। दिसंबर 2009 में हुए नगर निगम चुनाव में सागर महापौर का पद अनुसूचित जाति की महिला वर्ग के लिए आरक्षित किया गया था। चुनाव में किन्नर कमला बुआ निर्दलीय उम्मीदवार थीं। उनका चुनाव चिन्ह चाबी था। उन्होंने नामांकन पत्र में स्वयं को अनुसूचित जाति का बताया था, लिंग के स्थान पर स्वयं को स्त्री लिखा था।
चुनाव में उन्हें लगभग 65 हजार वोट मिले थे व भाजपा उम्मीदवार को उन्होंने लगभग 40 हजार मतों के अंतर से हराया था। चुनाव जीतने के बाद कमला बुआ ने सत्ताधारी भाजपा का दामन थाम लिया था। उन्होंने भाजपा की सदस्यता ले ली थी। दो साल बाद सागर की जिला अदालत ने महापौर कमला के चुनाव को शून्य घोषित कर दिया था। अदालत ने अपने फैसले में लिखा था कि कमलाबाई खुद को अनुसूचित जाति वर्ग से संबद्ध होना सिद्ध नहीं कर पाई हैं।
इस फैसले के खिलाफ कमला हाईकोर्ट चली गईं। वहीं सरकार ने शेष कार्यकाल के लिए अजा वर्ग की महिला पार्षद अनीता अहिरवार को मेयर नॉमिनेट कर दिया। यहां करीब डेढ़ साल चली सुनवाई के बाद महापौर किन्नर कमला के मामले में हाईकोर्ट ने जिला न्यायालय के फैसले को लगभग बरकरार रखते हुए उन्हें कोई राहत नहीं दी न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी की एकल खंडपीठ ने जिला न्यायालय द्वारा महापौर कमला बुआ के निर्वाचन को शून्य करने एवं चुनाव में दूसरे नंबर पर रही सुमन अहिरवार को विजयी घोषित करने के निर्णय पर स्टे देने से इंकार कर दिया था। हाईकोर्ट का डिसीजन आने के बाद मेयर के उपचुनाव हुए। भाजपा की पुष्पा शिल्पी ने कांग्रेस की इंदू चौधरी को हराकर जीत दर्ज की थी। साल 2019 में कमला बुआ का निधन हो गया।
2018 ट्रांसजेंडर नेहा ने लड़ा था चुनाव
2018 के विधानसभा चुनाव में अंबाह (आरक्षित) सीट से भाजपा प्रत्याशी गब्बर सखवार, कांग्रेस के कमलेश जाटव, बसपा के सत्यप्रकाश सखवार के साथ निर्दलीय नेहा किन्नर मैदान में उतरीं थी। वह 23.85 फीसदी वोट लेकर दूसरे नंबर पर रहीं। इस सीट पर कांग्रेस के कमलेश जाटव 37343 वोट, नेहा किन्नर को 29796, और भाजपा के गब्बर को 29715 वोट मिले थे। इस तरह यहां भाजपा तीसरे नंबर और बसपा चौथे स्थान पर रही थी।
मध्य प्रदेश में एक अनुमान के मुताबिक करीब 35 हजार ट्रांसजेंडर है। वहीं मध्य प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा अक्टूबर 2023 में जारी मतदाता सूची में अन्य मतदाता (थर्ड जेंडर) एक हजार 373 हैं। जबकि ट्रांसजेंडर्स की संख्या प्रदेश में 35 हजार से भी ज्यादा है। इनमें हज़ारों की संख्या में ऐसे भी हैं जिनके आधार कार्ड अभी तक नहीं बन पाए हैं।
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