लोकसभा चुनाव 2024ः कौन है राजन सिंह जो LGBTQIA+ मुद्दों पर लड़ रहे चुनाव?

राजन बताते हैं- "हम मुद्दों और वादों के साथ लोगों के बीच जा रहे हैं। पहले एलजीबीटी की पहचान। दूसरा झुग्गी बस्तियों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं...।"
राजन बस्ती विकास केंद्र एनटीपीसी बदरपुर में बतौर इंचार्ज काम करते हैं। वह बताते हैं कि मैं बाल मजदूरी भी की है। रेस्क्यू हुआ तो आगे चलकर इन अनुभवों पर किताब लिखी 'मेरा क्या कसूर'।
राजन बस्ती विकास केंद्र एनटीपीसी बदरपुर में बतौर इंचार्ज काम करते हैं। वह बताते हैं कि मैं बाल मजदूरी भी की है। रेस्क्यू हुआ तो आगे चलकर इन अनुभवों पर किताब लिखी 'मेरा क्या कसूर'।
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दिल्ली यूनिवर्सिटी के चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव का सफर दिल्ली के राजन सिंह के लिए वोटो से बढ़कर पहचान का सफर है। 26 साल के राजन साउथ दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। राजन ट्रांसजेंडर कम्युनिटी से हैं। उल्लेखनीय है छठे चरण में दिल्ली की छह सामान्य व एक सुरक्षित कुल सात सीटों पर आगामी 25 मई को मतदान होगा। वहीं नामांकन की आखिर तारीख 6 मई रहेगी।

द मूकनायक को राजन बताते हैं कि मेरी तीन बहनें और माता-पिता है। मैं बिहार छपरा से हूं। माता-पिता दिल्ली में ही आ गए थे। मेरा जन्म एक लड़के के रूप में हुआ था शुरुआत के दिनों में दिल्ली में हमारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। फिर भी मेरे माता-पिता ने मेरा दाखिला प्राइवेट स्कूल में कराया। क्योंकि वह चाहते थे कि मैं अच्छे से पढ़ाई करूं और जीवन में कुछ बन सकूं, लेकिन 8वीं कक्षा में फीस जमा नहीं करने की वजह से मुझे स्कूल से निकाल दिया गया।

उसके बाद मैं सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। इस समय मैंने दो बच्चों को डूबने से बचाया था, जिसके लिए मुझे 'वीरता पुरस्कार' भी मिला था। मैं पढ़ाई में भी बहुत अच्छा था। 2015 में मुझे लगा कि मुझे लड़का बनकर अच्छा महसूस नहीं हो रहा है। मुझे लड़की बनकर रहने में ज्यादा अच्छा लगता था। मैंने अपने अध्यापक को भी यह बात बताई, लेकिन उन्होंने कहा-"ऐसा कुछ नहीं होता है, तुम पढ़ाई करो. क्योंकि वहां जागरूकता की कमी थी।"

कॉलेज का सफर और संघर्ष

2016 में मेरा दाखिला आर्यभट्ट कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी में हुआ था। मुझे थोड़ा अजीब सा लगता था, क्योंकि मुझे लड़के अच्छे लगते थे और लड़कियों को मैं सहेली के रूप में देखता था। उस समय लड़के मुझे चिढ़ाते थे कि तू लड़कियों की तरह हरकतें करता है। मैं कॉलेज के अध्यापक को भी उन लड़कों की शिकायत की। परंतु अध्यापक ने कहा कि-"तुम्हारे अंदर सच में लड़कियों जैसी हरकतें हैं तो वह लोग तो बोलेंगे ही। तुम इतना मत सोचो।" वहां पर और भी अध्यापक थे, जो मेरी बातों पर हंस रहे थे। क्योंकि वह स्टाफ रूम था। क्लास में भी मुझे अलग बैठाया जाता था। उस समय दिल्ली यूनिवर्सिटी के चुनाव होने वाले थे। तो मैंने सोचा अपनी बात रखने के लिए यह सही मौका है।

आगे वह बताते हैं कि मैं जॉइंट सेक्रेटरी के पद के लिए चुनाव लड़ा। लड़कियों ने सबसे ज्यादा मुझे वोट दिए। जब से दिल्ली यूनिवर्सिटी बनी है, तब से पहली बार किसी ट्रांसजेंडर को सबसे ज्यादा वोट मिले। मैंने चुनाव जीता है। पहली बार मुझे काउंसलिंग की बैठक के लिए बुलाया गया। मैंने वहां अपनी सिर्फ बात रखी की 'नालसा जजमेंट' क्या है। इसमें ट्रांस कम्युनिटी के लिए क्या-क्या है। मैंने कहा कि "जिस तरह सभी के लिए चेंजिंग रूम होता है। इसी तरह ट्रांसजेंडर के लिए भी चेंजिंग रूम होना चाहिए।" मेरी बात सुनकर सब मजाक बनाने लगे। मुझे पागल बोलने लगे और कहा कि "अपने पिताजी को बुलाकर लाना।"

कॉलेज ने किया दुर्व्यवहार

आगे राजन बताते हैं कि कॉलेज के उन लोगों ने कहा कि आपकी वजह से कॉलेज का माहौल खराब होता है। वहां तो हंसने पर भी ₹500 का जुर्माना था। आर्यभट्ट कॉलेज का वेबसाइट जब भी आप खोलेंगे तो 2016 का यह जुर्माना की बात आप वहां पढ़ सकते है। मैं अकेला वह छात्र था। जो इन सारी चीजों से गुजर रहा था। मेरे पिता को बुलाकर, उन लोगों ने काफी बेईज्जत किया। उसके बाद मेरे घर वालों को भी पता चल गया कि मैं ट्रांसजेंडर हूं। उन लोगों ने मेरे से दूरी बना ली।

परीक्षा देने से भी रोका

आगे वह बताते हैं कि मैं कॉलेज कम जाने लगा क्योंकि मुझे काफी अजीब लगता था। टीचर्स भी बहुत गंदा व्यवहार करते थे। जिसकी वजह से मेरी अनुपस्थिति ज्यादा हो गई। 2017 में परीक्षा होनी थी। पहली सेमेस्टर में मैं प्रथम श्रेणी में पास हुआ था। 2017 की परीक्षा में मुझे एडमिट कार्ड नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि आप नाम कटवा कर दूसरे कॉलेज में चले जाइए।

एडमिट कार्ड नहीं मिलने से मैं बहुत परेशान था। किसी ने मुझे बताया कि जब तक तुम अदालत नहीं जाओगे। तुम्हें एडमिशन कार्ड नहीं मिलेगा। मैं 17 साल का ही था तो मुझे ज्यादा जानकारी भी नहीं थी। मैं अदालत चला गया। मैं अपने सारे अवार्ड पुरस्कार लेकर वहां पहुंच गया। वहां जाकर पता चला की याचिका देनी होती है, वकील होना चाहिए और भी बहुत कुछ। मैं वहां शुक्रवार को गया था। शनिवार, रविवार अदालत बंद होती है।

सोमवार को मेरी परीक्षा थी। तो शुक्रवार को ही मुझे कैसे भी अपना एडमिट कार्ड चाहिए था। मैंने उनके सामने अपने सारे पुरस्कार अवार्ड रख दिए। क्योंकि वह मुझे सोमवार को दोबारा बुला रहे थे। बहुत मुश्किलों का सामना करने के बाद मेरी याचिका लगी इसके बाद शाम 5 बजे कॉलेज को नोटिस भेजा गया और 7 बजे तक जवाब भी मांगा गया। उन्होंने कोर्ट ऑर्डर भी बनाया और उस ऑर्डर को कॉलेज के गेट पर चिपकाने के लिए बोला। वह आर्डर लगने के बाद मुझे परीक्षा में बैठाया।

ट्रांसजेंडर कम्युनिटी की पहचान के लिए जीतना चाहते हैं लोकसभा चुनाव

राजन कहते हैं- "मैं एलजीबीटी कम्युनिटी के हक उनकी पहचान की लड़ाई को सामने लाना चाहता हूं। मुझे यकीन है कि इस चुनावी रेस में मेरे शामिल होने से सरकार जागेगी की और जानेंगी कि हम भी जिंदा है। मैं बहुत उत्साहित हूं। जिस तरह से लोग मुझसे मिल रहे हैं। मुझे यकीन होने लगा है कि हमारी पहचान को लोगों को समझना मुश्किल है। मगर नामुमकिन नहीं है। दिल्ली की मेट्रो में बस में लोग किसी ट्रांसजेंडर के साथ बैठने में कतराते हैं। इसी दिल्ली में जब मैं वोट मांगने घूम रहा हूं। तो लोग मुझे प्यार से मिल रहे हैं। शुभकामनाएं दे रहे हैं। यह मेरे लिए बहुत स्पेशल है।"

राजन आगे बताते हैं- "हम मुद्दों और वादों के साथ लोगों के बीच जा रहे हैं। पहले एलजीबीटी की पहचान। दूसरा झुग्गी बस्तियों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं। तीसरा साउथ दिल्ली में पानी की बड़ी समस्या है, खास तौर पर पीने के पानी की, तो हर बोरवेल पर वाटर फिल्टर का वादा है। चौथा ट्रांसजेंडर को सरकारी नौकरी में लाएंगे। अगर जीते तो 6 महीने में 15000 युवाओं को बेहतर नाइट गार्ड नौकरी देंगे। ताकि साउथ दिल्ली सुरक्षित बने। अनाथ बच्चे या जिनके माता-पिता नहीं है उनके लिए सरकारी प्राइवेट स्कूल फ्री में शिक्षा दिलवाना।"

राजन ने किताब भी लिखी है 'मेरा क्या कसूर'

राजन बस्ती विकास केंद्र एनटीपीसी बदरपुर में बतौर इंचार्ज काम करते हैं। वह बताते हैं कि मैं बाल मजदूरी भी की है। रेस्क्यू हुआ तो आगे चलकर इन अनुभवों पर किताब लिखी 'मेरा क्या कसूर'। आजादी के बाद भी हमारे देश में ट्रांसजेंडर का मजाक बनता है। हमारे मां-बाप को जलील किया जाता है। शिक्षा स्वास्थ्य नौकरी से महरुम रहते हैं। कभी मारपीट होती है तो पुलिस स्टेशन जाना तक मुश्किल होता है। वहां भी मजाक ही बनता है। अब तक नेशनल ट्रांसजेंडर कमीशन तक नहीं है। मैं इस चुनाव के साथ इसकी मांग करता हूं। हार-जीत अलग बात है। लोगों का सपोर्ट मिलना अलग बात है।

राजन बस्ती विकास केंद्र एनटीपीसी बदरपुर में बतौर इंचार्ज काम करते हैं। वह बताते हैं कि मैं बाल मजदूरी भी की है। रेस्क्यू हुआ तो आगे चलकर इन अनुभवों पर किताब लिखी 'मेरा क्या कसूर'।
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राजन बस्ती विकास केंद्र एनटीपीसी बदरपुर में बतौर इंचार्ज काम करते हैं। वह बताते हैं कि मैं बाल मजदूरी भी की है। रेस्क्यू हुआ तो आगे चलकर इन अनुभवों पर किताब लिखी 'मेरा क्या कसूर'।
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