नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे और समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी एक्ट के दायरे में लाने का विरोध किया है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में सरकार ने कहा है कि ऐसे कपल को सरोगेसी की इजाजत देना इस एक्ट के दुरुपयोग को बढ़ावा देगा। साथ ही किराए की कोख से जन्मे बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को लेकर भी आशंका बनी रहेगी। वैसे भी सर्विस एक्ट की परिभाषा साफ है कि कपल शादीशुदा हो और बायोलॉजिकल महिला और पुरुष होने चाहिए। ऐसे में एलजीबीटीक्यू और लिव इन कपल इस एक्ट के दायरे में नहीं आते। केंद्र ने कोर्ट को बताया कि संसदीय कमेटी ने भी कहा था कि दो स्थिति में सिंगल महिला एक्ट के दायरे में आ सकती है। जब शादीशुदा हो और बच्चे नहीं हैं या तलाकशुदा हो और दूसरी शादी नहीं करना चाहती।
याचिका में कहा गया है कि इस कानून के तहत इच्छुक महिलाओं में भारतीय महिलाएं शामिल हैं, जो 35 से 45 वर्ष की आयु के बीच विधवा या तलाकशुदा हैं और जो सरोगेसी का लाभ उठाने का इरादा रखती हैं। इसके अलावा वह महिला सरोगेसी से संतान चाहने वाले जोड़े से जेनिटक रूप से जुड़ी हुई होनी चाहिए। इन सारी शर्तों के साथ किसी महिला को सरोगेसी के लिए खोजना काफी मुश्किल काम है। याचिका में कहा गया है कि दोनों कानूनों के प्रावधान संविधान की धारा 14 और 21 का उल्लंघन करते हैं।
केंद्र सरकार ने इस मामले में एक हलफनामा भी दायर किया है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राष्ट्रीय बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्यों ने 19 जनवरी को अपनी बैठक में राय दी थी कि अधिनियम (एस) के तहत परिभाषित युगल की परिभाषा सही है। अधिनियम के तहत समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी एक्ट का लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। वहीं, लिव-इन पार्टनर कानून से बंधे नहीं हैं और सरोगेसी के जरिए पैदा हुए बच्चे की सुरक्षा सवालों के घेरे में आ जाएगी।
मामले की सुनवाई जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच कर रही है। केंद्र ने कहा कि सिर्फ दो ही परिस्थितियों में सिंगल महिला को किराए की कोख की इजाजत मिल सकती है। पहला या तो महिला विधवा हो या समाज के डर से खुद बच्चा न पैदा करना चाहती हो। दूसरा कि महिला तलाकशुदा हो या वो दोबारा शादी करने को इच्छुक न हो, लेकिन बच्चा पालने की ख्वाहिश रखती हो। इन दोनों ही स्थितियों में महिला की उम्र 35 साल से ज्यादा होने की शर्त रखी गई है।
अपने जवाब के समर्थन में संसदीय कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए सरकार ने कहा है कि सरोगेसी एक्ट सिर्फ कानूनी मान्यता प्राप्त शादीशुदा पुरुष या स्त्री को ही अभिभावक के रूप में मान्यता देता है। सरकार का कहना है कि चूंकि लिव इन जोड़े या समलैंगिक जोड़े किसी कानून से बंधे नहीं होते हैं, लिहाजा इन मामलों में सरोगेसी से जन्मे बच्चे का भविष्य हमेशा सवालों के घेरे में रहेगा।
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