समलैंगिक शादी पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- संबंधों को मान्यता पर शादी को क्यों नहीं ?

भारत समलैंगिकता के मामले में पहले से ही मध्यम स्टेज में पहुंच गया है : सुप्रीम कोर्ट
Photo : DT Next
Photo : DT Next
Published on

नई दिल्ली। समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने की गुहार वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत समलैंगिकता के मामले में पहले से ही मध्यम स्टेज में पहुंच गया है। यहां समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "हम समलैंगिकता को अब सिर्फ शारीरिक संबंध के तौर पर नहीं देखते बल्कि उससे आगे बढ़कर के भावनात्मक मिलन की तरह देखत है।"

सुनवाई के दौरान संवैधानिक बेंच ने कहा कि होमोसेक्सुअलिटी को अपराध की श्रेणी से बाहर किया है तो यह समलैंगिकों के बीच स्थाई संबंधों को मान्यता है। हमने ऐसे लोगों के बीच स्थाई संबंधों को मान्यता दी थी हम शादी जैसे संबंधों को नहीं बल्कि शादी को ही मान्यता दे दें। इसके लिए हमें शादी के भाव को नए सिरे से परिभाषित करना होगा, क्योंकि अभी मेल फीमेल वाले दंपति का होना शादी की अनिवार्यता है। कोर्ट ने सवाल किया कि विवाह के लिए पति-पत्नी का अलग जेंडर से होना जरूरी है।

यह शहरी सोच नहीं

एक लेस्बियन कपल के वकील ने कहा कि पंजाब की दलित लड़की और हरियाणा की ओबीसी लड़की है दोनों छोटा मोटा जॉब करती है सरकार कहती है कि समलैंगिकता शहरी सोच है। दलील में मतलब है शादी सामाजिक और आर्थिक अधिकार के लिए नहीं है। यह सोशल प्रोटक्शन का मामला है।

चीफ जस्टिस बोले ट्रोल भी हो सकता हूं

चीफ जस्टिस ने कहा दुनिया बदल रही है लोग कम बच्चे चाहते हैं। मेरे ड्राइवर की एक बेटी है। समलैंगिक पेरेंट्स की परवरिश पर सवालों को लेकर चीफ जस्टिस ने कहा विपरित लिंग के कपल भी घरेलू हिंसा होती है। कई बार पिता नशे में मां को पीटता है, कुछ भी अंतिम नहीं है मैं ट्रोल हो सकता हूं उसी कीमत पर यह बोल रहा हूं।

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com