नई दिल्ली। मध्य दिल्ली की सड़कें गत रविवार दोपहर संगीत की थाप, ढोल और हंसी के ठहाकों से गूंज उठीं। दिल्ली क्वीर प्राइड के 13वें संस्करण का जश्न मनाने के लिए सभी जाति, धर्म, लिंग, नस्ल और यौनिक पहचान के लोग एक साथ एकत्र हुए।
द मूकनायक ने न केवल मीडिया समूह के तौर पर, बल्कि हाशिए पर रहने वाले समुदायों को समर्थन देने के लिए एक सहयोगी के रूप में भी प्राइड परेड में भाग लिया। मार्च बाराखंभा-टॉल्स्टॉय चौराहे से शुरू हुआ और जंतर-मंतर तक गया, जहां कई लोगों ने अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए प्रदर्शन किया।
जोश-जुनून और उत्साह के बीच एक सामान्य नारा जो वहां मौजूद सभी समलैंगिक लोगों द्वारा प्रमुख रूप से बोला गया, वह था सुरक्षा की भावना। परेड में शामिल एक ने कहा, “यह कितना सुरक्षित है। मैं जैसे चाहूं कपड़े पहन सकती हूं और जिसका चाहूं उसका हाथ पकड़ सकती हूं। मैं जोर से बोल सकती हूँ। मैं भाग सकती हूं। मैं अपना होना महसूस कर सकती हूं। मुझे यह पसंद है।”
LGBTQIA+समुदाय के लोगों को महसूस होता है कि लोग उन्हें देखते है। उनके बारे में धारणाएं बनाते है। कई बार लोगों का व्यवहार अपमानजनक और हिंसक होता है जो ज्यादातर ट्रांस लोगों के मामले में देखा जाता है जो स्पष्ट रूप से समलैंगिक होते हैं। भारत में समुदाय के लोगों की सुरक्षा के लिए आवश्यक नियमों और संवेदनशीलता का अभाव है। लेकिन प्राइड में हर कोई अलग दिखता है। वे सड़कों पर नृत्य कर रहे हैं जो सामान्य दिनों में उनके लिए सुरक्षित नहीं है।
एक अन्य व्यक्ति ने द मूकनायक से प्राइड में अपने शरीर को व्यक्त करने के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि मैं समलैंगिक हूं। इसलिए मैं घर पर खुद को व्यक्त नहीं कर सकता। प्राइड में मैं खुद को वैसा ही महसूस करता हूं और यह एकमात्र ऐसी जगह है, जहां मुझे महसूस करने और वैसा बनने का मौका मिलता है, जैसा मैं वास्तव में हूं। मेरे लिए यह पहचान ही सब कुछ है। यह बहुत ही सहज वातावरण है। मेरे आस-पास मेरे जैसे लोग है।
कई लोगों के लिए, प्राइड मार्च ही एकमात्र ऐसा स्थान बन जाता है जहां वे अपना लिंग और पहचान व्यक्त कर सकते हैं। प्राइड व्यक्तियों को खुद को सबसे भड़कीला तरीके से प्रस्तुत करने व किसी भी प्रकार के कपड़े पहनने की सहूलियत देता है।
प्राइड परेड में अरवे की मां आरती को न्याय की मांग करते देखना बहुत दुखद था। अपने बेटे के चेहरे और विभिन्न समाचारों की कतरनों वाला एक बैनर लेकर भावुक मां अपनी आवाज जिम्मेदारों तक पहुंचाने के लिए मार्च कर रही थीं। उन्होंने मीडिया से कहा कि बुलिंग और होमोफोबिया के कारण मैंने अपना बच्चा खो दिया। मेरे बेटे अरवे को आत्महत्या किए हुए 2 साल हो गए हैं। मैं आज भी न्याय के लिए जगह-जगह भटक रही हूं। आज, मैं अपने बेटे और अन्य सभी समलैंगिक बच्चों के समर्थन में प्राइड मार्च में शामिल हूं, जो कठिन परिस्थितियों का सामना करते हैं। ऐसे कई बच्चे हैं जो दुर्भाग्य से बुलिंग और उत्पीड़न के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं।
दिल्ली पब्लिक स्कूल, फरीदाबाद के छात्र अर्वे को ट्रांस पहचान के कारण धमकाया गया और यौन उत्पीड़न किया गया। हाई स्कूल का छात्र इसे बर्दाश्त नहीं कर सका और उसने अपनी सोसायटी की इमारत की पंद्रहवीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली थी।
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