नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह मामले में अपने फैसले को लेकर दायर मसले पर पुनर्विचार याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई से इनकार कर दिया है। याचिकाकर्ता की ओर से प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के सामने मंगलवार को इस याचिका का उल्लेख किया गया। साथ ही इसकी खुली अदालत में सुनवाई करने का अनुरोध किया। लेकिन, पीठ ने याचिकाकर्ता के इस आग्रह को नामंजूर कर दिया।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने वरिष्ठ वकील एनके कौल से पूछा की इन याचिकाओं पर खुली अदालत में पुनर्विचार कैसे किया जा सकता है। पुनर्विचार याचिका पर चेंबर में फैसला किया जाता है और याचिका के गुण-दोष पर संविधान पीठ विचार करेगी। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पुनर्विचार याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई की जाए या नहीं यह भी चेंबर में तय किया जाता है।
समलैंगिक विवाह पर फैसले से जुड़ी पुनर्विचार याचिकाओं पर प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली पांच जज की संविधान पीठ सुनवाई करेगी। इसमें न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति हिमा कोहली, न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं।
गौरतलब है कि प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ की पीठ के दो जज न्यायमूर्ति रविंद्र भट्ट और न्यायमूर्ति एसके कौल, जिन्होंने समलैंगिक विवाह पर फैसला सुनाया था, वे 2023 में सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अक्तूबर में समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर फैसला सुनाया था। इस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक वकील उदित सूद ने अक्तूबर, 2023 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दायर की थी।
अपने फैसले में ले में सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से माना था कि शादी करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है और अदालत उभयलिंगियों को विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी करने के अधिकार को मान्यता नहीं दे सकती।
पांच जज की इस संविधान पीठ ने अधिनियम 1954 की वैधता को बरकरार रखा था। शीर्ष अदालत ने समलैंगिक विवाह करने या नागरिक संघ बनाने के अधिकार को मान्यता देने से भी इनकार कर दिया था।
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