नई दिल्ली: केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय ने भारत में LGBTQIA+ समुदाय के मुद्दों और सामाजिक कल्याण आवश्यकताओं के लिए समर्पित छह सदस्यीय पैनल की स्थापना करके एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
दिलचस्प बात यह है कि यह कदम कांग्रेस और सीपीआई (एम) दोनों द्वारा अपने चुनावी घोषणापत्र में समलैंगिक समुदाय के लिए वादे शामिल करने के बाद उठाया गया है। भाजपा के 2024 के घोषणापत्र में शामिल समुदाय के लिए एकमात्र वादा "ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए गरिमा ग्रह के नेटवर्क का विस्तार करना" और "देश भर में उनकी पहचान सुनिश्चित करने के लिए पहचान पत्र जारी करना" है। इसके अलावा, इसमें कहा गया है कि सभी पात्र ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आयुष्मान भारत योजना के तहत कवर किया जाएगा।
इस पैनल को इस समुदाय से संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव और हिंसा को रोकने के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करने और ठोस उपायों की सिफारिश करने का काम सौंपा गया है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अक्टूबर 2023 में जारी एक निर्देश की प्रतिक्रिया के रूप में आया है, जिसने उस समय समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से परहेज करते हुए LGBTQIA+ व्यक्तियों के अधिकारों को पहचानने और उनकी सुरक्षा करने के महत्व को रेखांकित किया था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब केंद्र सरकार ने कैबिनेट सेक्रेटरी की अगुआई में एक कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी में होम मिनिस्ट्री, महिला व बाल विकास मिनिस्ट्री, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मिनिस्ट्री और सोशल जस्टिस मिनिस्ट्री के सेक्रटरी को रखा गया है। इस बाबत केंद्र सरकार की ओर से नोटिफिकशन जारी किया गया है और कहा गया है कि कमेटी कुछ मुद्दों का परीक्षण करेगी और उस मामले में सिफारिश करेगी। नोटिफिकेशन के मुताबिक कमिटी एक्सपर्ट और अन्य अधिकारियों से मदद ले सकती है।
एलजीबीटीक्यूआईए प्लस समुदाय के लोगों को किसी भी सेवा पाने के लिए किसी तरह का भेदभाव का सामना न करना पड़े इसे केंद्र और राज्य सरकार सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाने के संबंध में।
केन्द्र और राज्य सरकार को ऐसे कदमों के बारे में सुझाव देगी जिससे समलैंगिक समुदाय को वस्तुओं और सेवाओं तक बिना किसी भेदभाव तक पहुंच सुनिश्चित हो सके
एलजीबीटीक्यूआईए प्लस को किसी भी हिंसा और प्रताड़ना या फिर किसी भी भेदभाव से बचाना सुनिश्चित किया जाए।
उन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध ट्रीटमेंट न दिया जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसमें मेंटल हेल्थ भी शामिल है।
एलजीबीटीक्यूआईए प्लस के लोगों को किसी भी तरह के सोशल वेलफेयर के हक से उन्हें वंचित न किया जाए और यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाने के संबंध में सिफारिश।
अन्य कोई मुद्दा हो जो जरूरी हो उसके लिए भी कमिटी को सिफारिश करने को कहा गया है।
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने एकमत से समलैंगिक की शादी को मान्यता नहीं दी थी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से कहा था कि होमोसेक्सुअल कपल गोद नहीं ले सकते हैं। पांचों जज ने हालांकि एक मत से शादी की मान्यता देने से इनकार कर दिया था लेकिन पांचों जज ने केंद्र सरकार से कहा कि वह हाई पावर कमिटी का गठन करे और होमो सेक्सुअल कपल के सिविल राइट्स के बारे में परीक्षण करे और फैसला ले।
सुप्रीम कोर्ट के सामने गोद लेने का मामला भी था। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और जस्टिस कौल ने कारा रेग्युलेशन को असंवैधानिक करार देते हुए कहा था कि अविवाहित जोड़ा या फिर होमो सेक्सुअल जोड़ा बच्चे को गोद ले सकता है। वहीं बाकी तीन जजों ने कारा रेग्युलेशन को संवैधानिक करार दिया था और इस तरह से गोद लेने की मांग 3-2 से खारिज हो गई थी।
जस्टिस रवींद्र भट्ट ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट को जेंडर न्यूट्रल नहीं किया जा सकता है। याचिकाकर्ता ने कहा था कि एक्ट को जेंडर न्यूट्रल किया जाए अभी फीमेल और मेल की शादी को मान्यता है। सभी ने एक मत से स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव से मना कर दिया था। जजमेंट में केंद्र सरकार से कमिटी बनाने को कहा गया था।
पांचों जज ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह हाई पावर कमिटी का गठन करे और होमो सेक्सुअल कपल के सिविल राइट्स के बारे में परीक्षण करे और फैसला ले। केंद्र ने खुद कहा था कि वह होमो सेक्सुअल कपल के पीएफ, ग्रेचुटी, बैंक में नॉमिनी और इंश्योरेंस आदि के मामले में कमिटी गठित कर मामले का परीक्षण करेगा।
अदालत ने कहा था कि किसी को भी लाइफ पार्टनर चुनने का जो अधिकार है वह अधिकार कोर है और यह अहम फैसला है। अनुच्छेद-21 के तहत मिले जीवन और स्वच्छंदता के अधिकार में यह शामिल है। होमोसेक्सुअल सहित सभी को गुणवत्ता वाले जीवन जीने का अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि जो ट्रांसजेंडर हैं अगर वह हेट्रो रिलेशनशिप में शादी करना चाहते हैं तो वह स्पेशल मैरिज एक्ट और पर्सनल लॉ में शादी कर सकते हैं।
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