जयपुर। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की तरह राजस्थान में भी एलजीबीटीक्यू समुदाय (LGBTQ community) के कल्याण के लिए बोर्ड है, लेकिन इस समुदाय का कल्याण कितना हो रहा है? यह किसी से छिपा नहीं है। हर कोई इस समुदाय की दुआओं का तलबगार नजर आता है, लेकिन इन्हें पास बैठाने से भी कतराता है। यह बात अलग है कि अब इस समुदाय में अपने हक और अधिकारों के प्रति जागृति नजर आने लगी है।
बीते दिनों राजधानी जयपुर में एक सामज सेवी ट्रांसजेंडर नूर शेखावत ने इस समुदाय की मूलभूत समस्याओं के समाधान के लिए मुख्यमंत्री से व्यक्तिगत मुलाकात कर मांग पत्र सौंपा है। देखना होगा सरकार ट्रांसजेंडर समुदाय की भलाई के लिए किस स्तर तक कदम उठाने वाली है। यह बात अलग है कि राजस्थान में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कभी भी आचार संहिता लग सकती है।
नूर के अनुसार राजस्थान के अलग-अलग जिलों में लगभग 2 लाख 50 हजार किन्नर समुदाय के लोग रहते हैं। खास बात यह है कि सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना (एनएफएसएस) के तहत प्रदेश की 65 प्रतिशत आबादी को लाभ दे रही है, लेकिन इन 65 प्रतिशत में किन्नर समुदाय को शामिल नहीं किया गया है। ऐसे में यह समुदाय उन्हें भी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना में शामिल करने की मांग करता है। इसके साथ ही सम्पूर्ण किन्नर समुदाय को बीपीएल श्रेणी में शामिल किया जाए।
किन्नर समुदाय में जन जागृति का ही नतीजा है कि अब शिक्षा, नौकरी और राजनीति में भी आरक्षण की मांग उठने लगी है। किन्नर समुदाय की ओर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दिए ज्ञापन में ट्रांसजेंडर समुदाय (transgender community) को महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए दो प्रतिशत शीट रिजर्व रखने तथा सरकारी नौकरी में अलग से एक प्रतिशत आरक्षण देने की मांग की गई है। ट्रांसजेंडरों ने स्थानीय निकास चुनावों में भी ट्रांसजेंडर समुदाय को आरक्षण की सुविधा देने की मांग की है।
सीएम को सौंपे ज्ञापन के माध्यम से किन्नर समुदाय ने उन्हें भी महिलाओं के बराबर अधिकार व सुविधा की मांग की है। ज्ञापन के माध्यम से बताया कि राजस्थान सरकार महिला उत्थान के लिए भिन्न प्रकार की योजनाओं से महिला वर्ग का लाभान्वित कर रही है, लेकिन ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए ऐसी कोई योजना नहीं है। मांग है कि महिलाओं की तरह ही ट्रांसजेंडर समुदाय को भी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया जाए। शिक्षा में बालिकाओं के लिए जितनी भी योजनाएं है सभी योजनाओं में किन्नर समुदाय के विद्यार्थियों को भी शामिल किया जाए।
सरकार ने ट्रांसजेंडर कल्याण (transgender welfare) के लिए बोर्ड का गठन तो कर दिया, लेकिन इस समुदाय को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। ऐसे में सवाल यह है कि इस समुदाय की समस्याओं को इनसे बेहतर कौन समझ सकता है। यह बात अलग है कि राजस्थान में इस बोर्ड में ट्रांसजेंडर नूर शेखावत को शामिल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। ऐसे में उम्मीद है कि अब राजस्थान के ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए कल्याणकारी योजनाएं शुरू करने में आसानी होगी।
ट्रांसजेंडर कम्यूनिटी (transgender community) में आने के बाद यह लोग दर-दर भटकते हैं। घर परिवार मुंह फेर लेता है। सर छिपाने को किराए पर घर तक नहीं मिलता। ना ही सभ्य समाज उन्हें काम देता है। मजबूरन बधाई व भीख के सहारे पेट भरते हैं। किन्नर समुदाय से जुड़ी किरन बताती है कि यहां आने के बाद सबसे पहले नफरत झेलनी पड़ती है। हर कोई नफरत की नजर से देखता है। किरन कहती है कि यह भी कड़वा सच है कि किन्नर समुदाय से हर कोई दुआओं का तलबगार होता है, लेकिन बराबर में बैठाने से परहेज करता है। हमारे समुदाय के पास अपने घर नहीं है। किन्नर समुदाय को प्राथमिकता से भूखण्ड और आवास योजना का लाभ दिया जाना चाहिए। यह हमारी वाजिब मांग है।
ट्रांसजेंडर को दस्तावेज बनाने के लिए इधर से उधर टरका दिया जाता है। सरकारी दफ्तरों में चक्कर लगाने के बाद भी ज्यादातर ट्रांसजेंडर अपनी पहचान का दस्तावेज बनवाने में सफल नहीं होते हैं। यही वजह है कि इन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता है। ऐसे में किन्नर समुदाय ने उनके दस्तावेज बनाने के लिए सरकार से एकल खिडकी शुरू करने की मांग की है।
जयपुर में ट्रांसजेंडर समुदाय की समस्या समाधान के लिए कार्य कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता कुश कुमार शर्मा ने द मूकनायक को बताया कि ट्रांजेंडर की मूलभूत जरूरतों की तरफ कोई ध्यान ही नहीं देता है। सरकार और अधिकारी सब महिला-पुरुष की मानसिकता के साथ योजनाओं पर काम करते हैं। ट्रांसजेंडर समुदाय भी बहुतायत में है। हम इन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते। इनकी अपनी जरूरत होती हैं। सरकार सर्वप्रथम सार्वजनिक स्थानों पर ट्रांसजेंडर के लिए अलग से शौचालय बनाने पर ध्यान देना चाहिए। शिक्षा, रोजगार में इन्हें भी मौका दिया जाना चाहिए।
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