भोपाल। पुराने भोपाल (Bhopal) शहर के मंगलवारा इलाके की एक कॉलोनी में ट्रांसजेंडर (Transgender) कायनात मिर्जा रहती है। बधाई मांगने के साथ ही वो एक छोटा बुटीक चलाती है, जिससे उनको ठीकठाक कमाई हो जाती है, लेकिन बचत के रुपयों को जमा करने के लिए उनके पास बैंक खाता नहीं है। कायनात ने बताया कि उनके पास आधार कार्ड नहीं हैं। जिस कारण उन्हें कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
वह आधार कार्ड के लिए आधार केंद्र गईं थीं, लेकिन डाक्यूमेंट्स में नाम की समस्या को लेकर आधार कार्ड नहीं बन पाया। कई बार आधार केंद्र के चक्कर काटने के बावजूद कागजातों में पुराने नाम की समस्या के चलते उनका आधार पंजीयन नहीं हुआ है। कायनात ने ही बताया कि भोपाल में ही कई ट्रांसजेंडर है, जिनकी नाम के समस्या के कारण आधार कार्ड या तो बने नहीं है या फिर जेंडर और नाम परिवर्तन में दिक्कत हो रही है।
देश में ट्रांसजेंडर समुदाय (Transgender community) हमेशा से सामाजिक भेदभाव का शिकार होता रहा है, लेकिन सरकारें जो इनके अधिकारों की बात करती है। उन्हीं संवैधानिक अधिकारों और मूल्यों से ट्रांसजेंडर्स वंचित हो रहे हैं। मध्य प्रदेश में ट्रांसजेंडर समुदाय की आर्थिक और सामाजिक स्थिति बेहद खराब है। आधार कार्ड व अन्य पहचान पत्र नहीं होने के कारण सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से जुड़ाव नहीं हो पाने के कारण उनको दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ता है।
मध्य प्रदेश (Madhya pradesh) में एक अनुमान के मुताबिक करीब 35 हजार ट्रांसजेंडर है। राज्य सरकार ट्रांसजेंडर्स को मुख्यधारा से जोड़ने का दावा करती है, इसके लिए कई योजनाएं भी संचालित हैं। बावजूद इसके ट्रांसजेंडर्स को शासकीय योजनाओं (Government scheme for transgender) का लाभ नहीं मिल रहा है। इनमें हजारों की संख्या में ऐसे भी हैं, जिनके आधार कार्ड अभी तक नहीं बन पाए हैं। इसके पीछे का कारण ट्रांसजेंडर के वर्तमान नाम है। दरअसल ट्रांसजेंडर के जन्म के बाद परिवार नामकरण करता है। इसी नाम से जन्म प्रमाण-पत्र, मार्कशीट और अन्य दस्तावेजों में परिवार के द्वारा दिया गया नाम दर्ज होता है, लेकिन यह नाम किन्नर (ट्रांसजेंडर) समुदाय में शामिल होते ही बदल जाता है।
किन्नर समुदाय में शामिल होने के बाद कोई भी सदस्य अपने पारिवारिक नाम का उपयोग नहीं करता है। इसके स्थान, परिवार और पहचान यह सभी गुप्त रख कर समुदाय के द्वारा या फिर स्वयं के द्वारा परिवर्तित किए गए नाम को ही प्रचलन में रखा जाता है, लेकिन कागजी तौर पर नाम परिवर्तन नहीं होने के चलते आधार कार्ड नहीं बन पाते हैं।
जिन ट्रांसजेंडर के आधार कार्ड (Aadhar card) नहीं बने है। वह चाहते है कि उनका वर्तमान नाम से ही आधार कार्ड बने, लेकिन कागजों में उनका वह नाम नहीं होने से तकनीकी परेशानी आ रही है। इसके अलावा कुछ ऐसे भी ट्रांसजेंडर है, जिनके आधार कार्ड बन चुके है, लेकिन पुराना नाम और जेंडर चेंज नहीं होने के कारण वह अपनी पहचान उजागर करना नहीं चाहते हैं।
संवैधानिक मूल्यों को समझें तो यह मामला ट्रांसजेंडर के गरिमा, निजता, समानता और न्याय का हनन है। एक किन्नर समुदाय के सदस्य को उसके पुराने नाम और पहचान से जानना उसकी निजता एवं आधार कार्ड जैसे दस्तावेज का नहीं बन पाना उसके समानता, न्याय का हनन है।
आधार कार्ड नहीं होने के कारण सैकड़ों ट्रांसजेंडर के बैंक में खाते तक नहीं खुले है। बैंक अकाउंट के लिए केवाईसी करानी होती है, जिसके लिए आधार कार्ड जरूरी और महत्वपूर्ण दस्तावेज है। कायनात ने कहा- "उनके पास भी बैंक अकाउंट नहीं है। सरकार बड़े दावे करती है कि ट्रांसजेंडर समुदाय के उत्थान के लिए काम किया जा रहा है, लेकिन हमारे जेंडर सर्टिफिकेट और आधार कार्ड जैसे महत्वपूर्ण कागजात नहीं बन रहे।"
ट्रांसजेंडर को सेल्फ आइडेंटिटी जेंडर सर्टिफिकेट जारी किए जाते हैं। इसके लिए सामाजिक न्याग विभाग ने सभी जिला मुख्यालयों पर यह प्रमाणपत्र बनाने के लिए व्यवस्था की है। यह प्रमाणपत्र बाद में आधार अन्य दस्तावेजों से नाम परिवर्तित करने के उपयोग में लिया जा सकता है, लेकिन समस्या यह है कि इस जेंडर सर्टिफिकेट के लिए आधार या वोटर कार्ड का होना आवश्यक है। ऐसे में जेंडर सर्टिफिकेट के लिए भी ट्रांसजेंडर भटक रहे हैं।
द मूकनायक से बातचीत में ट्रांसजेंडर एक्टविस्ट संजना सिंह ने बताया कि सरकार की उदासीनता के कारण ट्रांसजेंडर्स मुख्यधारा से जुड़ने में कठिनाई महसूस करते हैं। सामाजिक भेदभाव को झेल रहे किन्नर के उत्थान के लिए सरकार द्वारा बनाई गई एक भी योजना धरातल पर नहीं है। यह एक बड़ी समस्या है कि ट्रांसजेंडर के आधार कार्ड तक नहीं बन रहे। इस संबंध में संख्या का अनुमान लगाना या सटीक आंकड़ा बता पाना मुश्किल है, लेकिन संभवतः हजारों की संख्याओं में किन्नरों के आधार कार्ड नहीं बने हैं।
ट्रांसजेंडर एक्टविस्ट संजना सिंह ने कहा कि अटल बिहारी बाजपेयी सुशासन संस्थान ने नीति बनाकर साल 2021 में प्रदेश सरकार के सामाजिक न्याय विभाग को सौंप दी है। नीति के मुताबिक देश के अन्य राज्यों की तरह मध्य प्रदेश में ट्रांसजेंडर्स के उत्थान के लिए उभयलिंगी बोर्ड का गठन करने का सुझाव था, जिसको साल 2022 में कैबिनेट ने भी मंजूरी दी थी। इसके बावजूद भी बोर्ड का गठन नहीं हुआ। ट्रांसजेंडर्स के विकास के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है। हम अपने स्तर पर भी किन्नरों को शिक्षा से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए सामाजिक न्याय विभाग के जॉइंट डायरेक्टर आरके सिंह ने कहा है कि ऑनलाइन परिक्रिया के माध्यम से आवेदन लिए जाते है. इसके बाद जांच उपरांत प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। फिलहाल भोपाल में 70 लोगों के सर्टिफिकेट्स बन गए है। आवेदन में आधार कार्ड, समग्र आईडी या वोटर कार्ड होना जरूरी होता है। आरके सिंह ने कहा अभी यह नहीं कहा जा सकता कि कितने अन्य लोगों के सर्टिफिकेट और जारी होने है। आवेदन आएंगे तो कार्रवाई होगी।
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