NALSA फैसले के 9 साल बाद, ट्रांसजेंडर समुदाय ने उठाई की क्षैतिज आरक्षण की मांग

NALSA फैसले के 9 साल बाद, ट्रांसजेंडर समुदाय ने उठाई की क्षैतिज आरक्षण की मांग
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15 अप्रैल 2014 को भारत एक अभूतपूर्व निर्णय का साक्षी बना. जहां NALSA (राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण) द्वारा दायर की गई याचिका की सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के. एस. राधाकृष्णन और जस्टिस ए. के. सीकरी द्वारा अध्यक्षित दो जजों की बेंच ने दशकों से गुमनामी के अंधकार में अपने स्वाभिमान के लिए संघर्षरत ट्रांस समुदाय को थर्ड जेंडर के रूप में ना सिर्फ पहचान दी, बल्कि ट्रांस समुदाय के लिए भारत के प्रत्येक नागरिक को मिलने वाले मूलभूत अधिकारों को सुनिश्चित करने की बात कहीं. यह निर्णय समुदाय के लिए एक बड़ी जीत के रूप मे देखा गया, जिससे वे पुरुषों और महिलाओं के समकक्ष बन गए.

इस फैसले में संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा सभी नागरिकों को प्राप्त व्यक्तिगत निजता के अधिकार को सुनिश्चित करते हुए महिला और पुरुष के दायरे से बाहर खुद को चिन्हित करने वाले नागरिकों के उनके शरीर और व्यक्तित्व पर उनकी निजी स्वतंत्रता के अधिकार की बात कही गई. वहीं, अनुच्छेद 19(1)(ए) और अनुच्छेद 19(2) द्वारा प्राप्त अभिव्यक्ति के अधिकार में, अपनी लैंगिकता की अभिव्यक्ति और पहनावे और संबोधन के अधिकार को सुनिश्चित किया. साथ ही इस फैसले में ट्रांस समुदाय के लिए अनुच्छेद 14,15 और 16 को ध्यान में रखते हुए समानता और सुरक्षा के पहलुओं पर भी ध्यान केंद्रित किया गया. लेकिन आज नालसा जजमेंट के नौंवे साल में ट्रांसजेंडर समुदाय इस जजमेंट का लाभ कहां तक ले सकें यह मुद्दा विचार करने योग्य है. इस मुद्दे पर चर्चा करने एवं ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए हॉरिजॉन्टल आरक्षण (horizontal reservation) की मांग को लेकर इस रविवार 26 मार्च को एक चर्चा का आयोजन किया जा रहा हैं. यह चर्चा नाज फाउंडेशन दिल्ली में दोपहर 2 से 4 बजे के बीच होगी.

क्या चाहता हैं ट्रांस समुदाय?

नालसा जजमेंट ट्रांस समुदाय के लिए कोई विशेष अधिकार की बात नहीं करता. बल्कि एक आम नागरिक को मिलने वाले अधिकारों को ही सुनिश्चित करने की बात करता है. किसी जन समुदाय को अगर मूलभूत अधिकारों के लिए भी न्यायालय पर निर्भर रहना पड़े तो यह एक लोकतांत्रिक देश के लोगों के लिए विचार करने योग्य मुद्दा है. पहले के ट्रांसजेंडर बिल तथा वर्तमान ट्रांसजेंडर एक्ट से भी समुदाय के लोग संतुष्ट नहीं हैं. इसकी वजह में दो प्रमुख कारण हैं. पहला राजनितिक इच्छा शक्ति, क्योंकि ट्रांस समुदाय ना तो वोट बैंक हैं ना ही राजनीति और सत्ता को प्रभावित करने में सक्षम हैं। दूसरा प्रमुख कारण ट्रांस समुदाय का राजनीतिक पदों पर ना होना. राजनैतिक प्रतिनिधित्व के अभाव में, नीति निर्माण के कार्य में कभी भी क्वीर समुदाय को ध्यान में नहीं रखा जाता.

ट्रांसजेंडर, जाति आधारित समुदाय नहीं

द मूकनायक क्षैतिज आरक्षण पर चर्चा करने के लिए तेलंगाना से वैजयंती वसंत मोगली से बात की. वैजयंती एक ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट, आरटीआई एक्टिविस्ट, सिंगर और मोटिवेशनल स्पीकर हैं. 2014 के NALSA फैसले के बारे में पूछे जाने पर, वैजयंती ने कहा, "यह पहला निर्णय था जिसने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों पर विचार किया और उन्हें एक विशेष दर्जा प्रदान किया, लेकिन कहीं न कहीं इसमें खामियां थीं, यह आज तक एक भ्रमित करने वाला निर्णय है. इसने ट्रांसजेंडरों को ओबीसी के साथ या तेलंगाना एमबीसी (अधिकांश पिछड़ा वर्ग) के रूप में जोड़ा. आगे वह कहती है कि "ट्रांस समुदाय के लोग आवश्यक रूप से एक एकल जाति से संबंधित नहीं हैं, हम एक जाति पृष्ठभूमि से नहीं हैं.  हम एक विशेष लिंग यानी ट्रांसजेंडर से संबंध रखते हैं।”

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जाति नामकरण एक राज्य से दूसरे राज्य में भिन्न होता है। जातियों के लिए हर राज्य का अपना नामकरण है. कुछ राज्य एक ही शब्द का उपयोग कर रहे होंगे. लेकिन कुछ भिन्न हो सकते हैं, यही कारण है कि NALSA का निर्णय वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए विशेष आरक्षण प्रदान करने में मददगार नहीं रहा है.

वैजयंती ने द मूकनायक को बताया, "ट्रांसजेंडर व्यक्ति अलग-अलग जाति पृष्ठभूमि से आते हैं, और नालसा ने उन सभी को 'सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े' वर्ग में शामिल करने का उल्लेख किया, जिससे हमारे समुदाय के लिए तीसरे लिंग के रूप में पहचान करना मुश्किल हो जाता है. हम अपनी लैंगिक पहचान साझा करते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि हम एक ही जाति साझा करते हों.”

कर्नाटक पहला राज्य जहां ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए 1% आरक्षण

6 जुलाई, 2021 को, कर्नाटक तीसरे लिंग के लिए 1% आरक्षण लागू करने वाला पहला राज्य बन गया. कर्नाटक सरकार द्वारा जारी अंतिम अधिसूचना में स्पष्ट रूप से सभी सामान्य के साथ-साथ तीसरे लिंग के लिए आरक्षित श्रेणियों में 1% आरक्षण निर्दिष्ट किया गया था.

अधिसूचना में कहा गया है कि सभी सरकारी नौकरी के आवेदन फॉर्म में पुरुष और महिला कॉलम के साथ थर्ड जेंडर के लिए एक कॉलम जोड़ा जाना चाहिए और इसमें किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए. फैसले का परिणाम तब देखने को मिला जब राज्य के तीन ट्रांसजेंडरों ने स्नातक प्राथमिक शिक्षक (जीपीटी) के लिए प्राप्त की.

समाज की मुख्य धारा से जुड़ने की आस

ट्रांस जेंडर समुदाय द्वारा क्षैतिज आरक्षण की मांग बढ़ रही है। आज, ट्रांसजेंडर समुदाय द्वारा क्षैतिज आरक्षण की मांग बढ़ रही है, और समुदाय उनके लिए एक अलग आरक्षण चाहता है. जैसा कि भारत के अधिकांश राज्यों में महिलाओं को प्रदान किया जाता है. इसका कारण यह है कि आरक्षण उन्हें सरकारी नौकरी के अवसर प्रदान करेगा, जिसके माध्यम से वे समाज की मुख्यधारा में अपना रास्ता खोज सकते हैं.

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वैजयंती इस पर कहती है, "कई राज्यों ने महिलाओं के लिए अलग आरक्षण प्रदान किया है, इसलिए जब आप महिलाओं को अलग करते हैं तो पुरुषों को स्वचालित रूप से बाकी अवसर मिलते हैं, तो हम (ट्रांसजेंडर) आरक्षण के इस बंटवारे में कहां खड़े हैं."

द मूकनायक ने ट्रांस महिला जेन कौशिक से भी बात की. जेन को उनकी लैंगिक पहचान के कारण उत्तर प्रदेश के एक स्कूल से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था. जेन कहती हैं, “हमारे समुदाय के कुछ लोग क्षैतिज आरक्षण के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर करेंगे. हम सभी प्रकार के रोजगार में आरक्षण की मांग करते हैं, चाहे वह स्वास्थ्य क्षेत्र हो, शिक्षा क्षेत्र हो या सिविल सेवा हो."

ट्रांसजेंडर आरक्षण क्षैतिज होना चाहिए: एडवोकेट जयना कोठारी

सेंटर फॉर लॉ एंड पॉलिसी रिसर्च (CLPR) की सह-संस्थापक एडवोकेट जयना कोठारी एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और  सर्वोच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करती हैं. मूकनायक से बातचीत में जयना कोठारी ने कहा कि "उन्होंने ट्रांसजेंडर समुदाय के हितों के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर ट्रांसजेंडरों को क्षैतिज आरक्षण देने की मांग की है.  प्रस्तुत आवेदन सोमवार 27 मार्च को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है" आगे वह कहती है कि "NALSA निर्णय पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है, यह आरक्षण के प्रकार को निर्दिष्ट नहीं करता है जो तीसरे लिंग को दिया जाना चाहिए।" आगे की चर्चा में वे कई प्रमुख कारण बताती हैं  जिनकी वजह से थर्ड जेंडर अलग हॉरिजॉन्टल आरक्षण की मांग कर रहा है.

जयना बताती है कि “मान लीजिए कि सामान्य वर्ग से संबंधित कोई ट्रांसजेंडर है, इसलिए यदि NALSA का पालन करना है, तो व्यक्ति को OBC में शामिल किया जाएगा, तो हजारों OBC आवेदकों के साथ प्रतिस्पर्धा करना कैसे उचित है?  इस तरह तीसरा लिंग एक भी सीट पर कब्जा नहीं करेगा।” 

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इसी तरह, ओबीसी के एक ट्रांसजेंडर को कोई लाभ नहीं मिलेगा क्योंकि वे पहले से ही इस श्रेणी से संबंधित हैं, और दलित या आदिवासी समुदाय के किसी भी ट्रांसजेंडर को या तो एससी/एसटी आरक्षण छोड़ना होगा और ओबीसी में पंजीकरण कराना होगा या आनंद लेने के लिए ट्रांसजेंडर का दर्जा छोड़ना होगा.

अधिवक्ता जयना कोठारी ने ट्रांसजेंडरों के लिए 1 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख किया और इस कदम की सराहना करते हुए कहा, "हम क्षैतिज आरक्षण के लिए प्रयास कर रहे हैं जैसा कि कर्नाटक में हुआ था."

92% ट्रांसजेंडर व्यक्ति किसी भी प्रकार की आर्थिक गतिविधि में भाग लेने के अधिकार से वंचित हैं: NHRC

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा 2018 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, 96 प्रतिशत ट्रांसजेंडरों को नौकरियों से वंचित कर दिया गया है. और उन्हें आजीविका, सेक्स वर्क और भीख मांगने जैसे अशोभनीय काम करने के लिए मजबूर किया जाता है.

ट्रांसजेंडर अधिकारों पर अब तक के पहले अध्ययन से पता चला है कि लगभग 92 प्रतिशत ट्रांसजेंडर व्यक्ति देश में किसी भी प्रकार की आर्थिक गतिविधि में भाग लेने के अधिकार से वंचित हैं. यहाँ तक कि योग्य लोगों को भी नौकरी के लिए खारिज कर दिया जाता है.

ट्रांसजेंडरों को भी बहुत गंभीर भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण उनमें से 50-60 प्रतिशत कभी स्कूल नहीं गए और जिन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी.  एनएचआरसी के आंकड़ों में कहा गया है कि 52 प्रतिशत ट्रांसजेंडरों को उनके सहपाठियों द्वारा और 15 प्रतिशत को शिक्षकों द्वारा उनकी पढ़ाई बंद करने के लिए मजबूर किया गया.

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