अमेठी। यूपी के अमेठी जिले की सैकड़ों महिलाएं महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन गई हैं। गांवों में एक और जहां महिलाएं घर की दहलीज के बाहर कदम रखने में संकोच करती हैं और उनका जीवन एक आंगन तक ही सीमित रह जाता है। वहीं गौरीगंज तहसील की यह महिलाएं कड़ी मेहनत और लगन से अपनी तकदीर खुद लिख रही हैं। वहीं अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा श्रोत बनी हैं। यह महिलाएं समूह के माध्यम से काम करके परिवार की आमदनी बढ़ाने में लगी हैं।
महिलाओं का यह स्चयं सहायता समूह दैनिक दिनचर्या में उपयोग होने वाली चप्पल (स्लीपर) का निर्माण कार्य करता है। प्रतिदिन तैयार होने वाली चप्पलों की बिक्री दुकानों के साथ-साथ प्रदर्शनी और गांव-गांव जाकर की जाती है। इस काम से महिलाओं को काफी फायदा होता है इसके साथ ही खास बात यह है कि महिलाएं घर बैठे ही रोजगार से जुड़ी हैं।
अमेठी जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर गौरीगंज तहसील के टिकरिया गांव में पिछले पांच सालों से समूह की महिलाएं आत्मनिर्भरता के नए मुकाम को हासिल की हैं। यह महिलाएं एक दिन में लगभग पांच सौ से अधिक चप्पलों को तैयार करती हैं। इसके साथ ही चप्पल में लगने वाली पट्टे रबर बद्दी की खरीदारी करने की बजाय महिलाएं ट्यूब से वह बद्दी तैयार करती हैं। इससे चप्पलों की कीमत भी काम रहती है और यह काफी टिकाऊ होती हैं। महिलाओं द्वारा चप्पल तैयार करने के बाद उसकी अलग-अलग रंगों में पेंटिंग कर उसे सुखाया जाता है फिर उसे बाजार तक पहुंचाया जाता है।
यह सभी महिलाएं घर की जिम्मेदारी संभालने के साथ-साथ अपने परिवार का आर्थिक सहारा बनी हुई हैं। महिलाएं इस समूह के जरिए प्रतिदिन एक दिन में दो से तीन हजार की कमाई करती हैं। यानी महीने भर में महिलाएं लाखों रुपए की कमाई इस व्यवसाय से करती हैं और इस काम से इन्हें काफी फायदा होता है।
समूह की मुखिया कुसुम देवी द मूकनायक को बताती हैं-" हम सब अपने घर का काम निपटाने के बाद पहले बैठे रहते थे। जब पैसों की जरूरत होती थी तो हमें दूसरों के आगे हाथ फैलाने के लिए मजबूर होना पड़ता था। आज इस समूह के जरिए हमें एक नई राह मिली है और हम घर का काम संभालने के साथ-साथ अपने बच्चों की अच्छी परवरिश कर पा रहे हैं। अपना घर खर्च इसी रोजगार चला पा रहे हैं।"
कुसुम आगे बताती है- 'वैसे भी महिलाओं को रोजगार से जोड़ना सबसे ज्यादा आवश्यक है। गांव की महिलाएं घर की दहलीज से लांघने में कोई संकोच नहीं कर रही थी। इस काम के जरिये वह घर पर ही रहकर घर परिवार की जिम्मेदारी संभालने के साथ ही रोजगार के माध्यम से भी जुड़ी हैं। इस रोजगार के जरिये गांव की महिलाओं ने अपनी पहचान न सिर्फ अमेठी जिले बल्कि प्रदेश के अलग-अलग जिलों और शहरों में बनाई है। आज समूह में दो दर्जन से अधिक महिलएं इस काम को कर रही हैं। हमारा लक्ष्य है इस काम को और आगे बढ़ाये और मुनाफे को दोगुना करें।"
यह समूह जरूरतमंद लोगों के लिए बनाया गया है, जिनकी आमदनी कम है. ऐसी महिला स्वयं सहायता योजना में जुड़ सकती हैं, यह केवल जरूरतमंद महिलाओं का समूह हो सकता है, या फिर केवल पुरुषों का समूह हो सकता है, या फिर स्त्री और पुरुष दोनों का समूह बन सकता हैI जो कि समूह में सम्मिलित सदस्यों पर निर्भर करता हैI लेकिन अधिकांश करके स्वयं सहायता समूह महिलाओं का ही बनाया जाता हैI
स्वयं सहायता समूह में 10 से 20 सदस्यों की संख्या होती हैI इस समूह से जुड़ा हर व्यक्ति अपनी कमाई से एक समान पैसा हर महीने बचा कर इस समूह में जमा करता हैI इसके बाद जब उस महिला को कभी पैसों की जरूरत होगी, तो वह सहायता समूह से अपना व्यवसाय चालू करने के लिए या कोई जरूरी कार्य के लिए उचित ब्याज दर पर पैसा निकाल सकता हैI
महिला स्वयं सहायता समूह में शामिल सदस्यों में से किसी तीन सदस्यों को पदाधिकारी नियुक्त किया जाता हैI ये पदाधिकारी समूह का संचालन करते हैं, जैसे पैसों का लेनदेन, पैसा टाइम पर जमा करवाना, जिसको पैसों की जरूरत हो उसे पैसा ब्याज पर देना, हर चीज का लेखा-जोखा करना, इन पदाधिकारियों का काम होता हैI इस समूह के नाम से बैंक में बचत खाता खुलवाया जाता है, जिसमें सभी सदस्यों द्वारा दी जाने वाली धनराशि जमा की जाती हैI
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