क्‍यों नहीं रुक रहा सीवर में मौतों का सिलसिला?

जिस देश के पास चांद पर जाने की तकनीक है उसके पास सीवर-सेप्टिक टैंक सफाई करने के लिए मशीने क्‍यों नहीं?
Symbolic picture- sewer cleaning
सांकेतिक तस्वीर- सीवर सफाई फोटो साभार- indiatoday
Published on

22 अक्‍टूबर 2024 को राजस्‍थान सीकर फतेहपुर के सरदार पुरा इलाके में 20 फुट गहरे सीवर सफाई के दौरान तीन लोगों की जहरीली गैस से दम घुटने से मौत हो गई। मृतकों के नाम सज्‍जन (30), मुकेश (35) और महेंद्र(38) है। ये न पहली वारदात है और न आखिरी।

8 अक्‍टूबर 2024 को देश की राजधानी दिल्‍ली के सरोजिनी नगर इलाके में एक कंस्‍ट्रक्‍शन साईट पर दो मजदूरों राम आसरे (41) और बाबुंद्र कुमार (28) की सीवर सफाई के दौरान मौत हो गई। देश की राजधानी सहित देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में इस तरह की घटनाएं घट रही हैं जो निर्दोष गरीब मजदूरों की जान ले रही हैं। लेकिन इनकी जिम्‍मेदारी लेने वाला कोई नहीं।

भले हम इस बात पर गर्व करें कि हमारा देश तकनीकी मामले में इतना आगे बढ़ गया है कि चांद पर सफलता पूर्वक चंद्रयान भेज रहा है। मंगल ग्रह पर पानी की खोज कर रहा है। पर इस बात पर शर्म महसूस होती है कि क्‍या हमारे पास इतनी भी क्षमता नहीं कि वह गटर या सीवर-सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए मशीनी तकनीक विकसित कर सके। यदि ये क्षमता है तो फिर क्‍यों हमारे गरीब दलित निर्दोष मजदूर इन गटरों-टैंकों की सफाई करते हुए मारे जा रहे हैं? और यदि शासन-प्रशासन की लापरवाही से ये मौतें हो रही हैं तो फिर इन्‍हें मौतें नहीं बल्कि हत्‍याएं कहा जाएगा। 

वर्ष 2024 में ही दिल्‍ली और एनसीआर में 14 लोगों की जान सीवरों की सफाई के दौरान चली गई। पूरे देश की तो आप कल्‍पना ही भयावह है। एक अनुमान के अनुसार हर तीसरे-चौथे दिन एक भारतीय नागरिक की मौत सीवर-सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हो जाती है।

कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ाने वाले कौन हैं ये लोग?

Prohibition of Employment as Manual Scavengers and their Rehabilitation Act 2013 (M.S. Act 2013) और सुप्रीम कोर्ट के 27 मार्च 2014 के आदेश में स्‍पष्‍ट है कि इस तरह के सीवर-सेप्टिक टैंक में किसी व्‍यक्ति को सफाई के लिए नहीं उतारा जा सकता। यह दंडनीय अपराध है। 

सब जानते हैं कि इस तरह के सीवर-सेप्टिक टैंकों में जहरीली गैसें मीथेन हाेती हैं जिनसे दम घुटने के कारण सफाई करने वाले इन मजदूरों की मौत हो जाती है। 

गरीब अनपढ़ मजदूर जो अधिकतर दलित वर्ग से होते हैं अपनी दिहाड़ी कमाने के लालच में इस काम के लिए तैयार हो जाते हैं। उन्‍हें इस बात की जानकारी भी नहीं होती कि ये उनके लिए जानलेवा हो सकता है। कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को वे नहीं जानते। अपनी रोजी कमाने के लिए वे इस खतरनाक काम को अंजाम देते हैं और मौत के मुंह में चले जाते हैं।

पर इन को सीवर-सेप्टिक टैंको की सफाई के लिए घुसाने वाले क्‍यों इन्‍हें मौत के मुंह में ढकेलते हैं। उनके लिए तो इस काम को करवाना निषेध होता है। अपराध होता है। इसके लिए कानून में जुर्माने और जेल का प्रावधान है। पर विडंबना यह भी है कि किसी इस तरह के व्‍यक्ति पर न कोई जुर्माना होता है और न जेल की सजा होती है। आखिर क्‍यों?

एक आंकड़े के अनुसार 1993 से लेकर अब तक  देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में 2000 (दो हजार) से अधिक लोग सीवर-स‍ेप्टिक की सफाई में मारे जा चुके हैं। पर कानून होने के बावजूद किसी की गिरफ्तारी नहीं होती। यह सवाल अनायास मन में आता ही है कि आखिर गिरफ्तारी क्‍यों नहीं होती है? 

सैनिटेशन का काम क्‍यों कराया जाता है मैनुअली? क्‍यों नहीं है मशीनों का प्रावधान?

आज इक्‍कीसवीं सदी में भी सीवर-सेप्टिक टैंकों का काम मैनुअली कराया जाता है। इन टैंकों में सफाई करने के लिए उतारने वालों को सुरक्षा उपकरण तक मुहैया नहीं कराए जाते। क्‍या है इसके पीछे की मानसिकता। दरअसल हमारे देश में सफाई के काम को जाति से जोड़ दिया गया है। सफाई का यह काम दलित जाति के लोगों पर थोप दिया गया है। पर सफाई के काम में उतारने वाले लोग दलित जाति के नहीं होते। वे कथित उच्‍च जाति के होने के कारण उनकी मानसिकता होती है कि इन दलित जातियों का जन्‍म तो साफ-सफाई करने के लिए ही हुआ है। यही इनका काम है। ये गरीब दलित अशिक्षित लोग हैं। ये सफाई के दौरान मर भी जाते हैं तो क्‍या। इन्हीं समुदाय के दूसरे सफाई कर्मचारी काम करने को मिल जाएंगे। इन्‍हें सीवर में घुसाने के जुर्म में  उन्‍हें कोई सजा तो  मिलेगी नहीं। 

पहली बात तो यह कि मृतक का परिवार गरीब और अशिक्षित होता है। उसे कानून की जानकारी होती नहीं। वे कानून की सहायता लेना भी चाहें तो तो कानून के रखवाले उनके दलित होने के कारण उन्‍हें कोई तबज्‍जो नही देते। उन्‍हें लगता है कि ये तो सफाई कर्मचारी हैं। इनकी मौतें तो सफाई कार्य में होती रहती हैं। मामला अगर तूल पकड़ता है तो उन्‍हें बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के मौत के कुएं में उतारने वाले ये मौत के सौदागर मृतकों के परिवार को कुछ मुआवजा देकर मामले को रफा-दफा कर देते हैं। सजा किसी को नहीं मिलती।

स्‍वच्‍छ भारत मिशन में क्‍यों नहीं है सफाई के लिए मशीन?

हमारे देश में पिछले दस वर्षों से स्‍वच्‍छ भारत मिशन योजना है। स्‍वच्‍छ भारत अभियान चल रहा है। पर इन गटर सीवर सेप्टिक टैंको की सफाई के लिए मशीनों का प्रावधान क्‍यों नहीं है? क्‍या इसके पीछे शासन-पसाशन की जातिवादी मानसिकता है? 

हमारे देश में NAMSTE (National Action for Mechanised Sanitation Ecosystem) योजना है। फिर उसका कार्यान्‍वयन क्‍यों नहीं किया जाता?

हमारे देश के संविधान के अनुसार देश के हर नागरिक के समान अधिकार हैं। समान महत्‍व है। देश की सीमा पर देश की सुरक्षा पर कोई जवान या सैनिक दुश्‍मन से लड़ते हुए मारा जाता है तो उसे शहीद का दर्जा दिया जाता है। वहीं हमें बीमारियों से बचाने  के लिए हमारी गंदगी सफाई करने वाला सफाई कर्मचारी खुद गंदगीजनित बीमारियों से मारा जाता है। सीवर-सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान उसकी मौत हो जाती है। इस पर सरकारी प्रशासन उदासीन रहता है जैसे कुछ हुआ ही न हो। आखिर क्‍या है इस मानसिकता की वजह?

सफाई कर्मचारियों को गटर सीवर- सेप्टिक में घुसा कर उनकी हत्‍या करना प्रशासन के लिए सामान्‍य बात हो गई है। उनको इस पर कोई ग्‍लानि नहीं होती है। मंत्री भी संसद में आकर कहते हैं कि मैला प्रथा से देश में कोई नहीं मर रहा है। उनके अंदर कोई शर्म-लिहाज नहीं रह गई है।

इस एक साल में दिल्‍ली और एनसीआर में चौदह लोगों की मौत हो गई है। पर हमारे देश के नेता इस पर मौन धारण किए रहते हैं। प्रधानमंत्री इस पर कोई स्‍टेेटमेंट नहीं देते हैं। क्‍यों? सिर्फ चुनाव जीतने से नहीं होता है। इन नागरिकों की जान बचाना आपकी जिम्‍मेदारी है। प्रधानमंत्री की जिम्‍मेदारी है, मुख्‍यमंत्री की जिम्‍मेदारी है, मंत्रियों की जिम्‍मेदारी है।

आप अपनी जिम्‍मेदारी से बच नहीं सकते। लोकतंत्र में नागरिकों की जान बचाने की जिम्‍मेदारी सरकार की होती है। भारत के संविधान की धारा 21 में इसका स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है।  वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में सिर्फ NAMSTE की बात करती हैं। उस योजना का कार्यान्‍वयन क्‍यों नहीं होता। 

प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री हर बात पर ट्वीट(एक्‍स) करते हैं। इन हत्‍याओं पर खामोश रहते हैं। दिल्‍ली के उपराज्‍य पाल (लेफ्टीनेंट गर्वनर) दिल्‍ली के हर काम पर अपने अधिकार की बात करते हैं। सीवर में हत्‍याओं के मुद्दे पर चुप्‍पी साध लेते हैं। इसकी  जिम्‍मेदारी नहीं लेते। यह तो देश में लोकतंत्र होने पर ही सवाल उठाता है।

सवाल यह भी उठता है‍ कि क्‍या इस तरह की मौतों/हत्‍याओं पर सरकार की मौन स्‍वीकृति है? क्‍या सरकार छूआछूत को बनाए रखना जरूरी समझती है? और यदि ऐसा है तो क्‍या यूं ही गरीबों दलितों मजदूरों सफाई कर्मचारियों की मौतों/हत्‍याओं का  सिलसिला जारी रहेगा?  और यदि इन मौतों/हत्‍याओं पर प्रशासन और हमारा सभ्‍य समाज संवेदनशील होगा तो आखिर कब?

Symbolic picture- sewer cleaning
उत्तर प्रदेश: लोन पर लिया मकान, जब बेचना चाहा तो आड़े आए जातिवादी, तंग आकर दलित ने की ख़ुदकुशी!
Symbolic picture- sewer cleaning
वक्फ भूमि विवाद: सीएम सिद्दारमैया ने कहा, 'किसी भी किसान को उसकी जमीन से बेदखल नहीं किया जाएगा'
Symbolic picture- sewer cleaning
झारखंड में सत्ता की लड़ाई में सभी सात सीएम की प्रतिष्ठा दांव पर

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com