सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। कहते है ’मजबूरी आदमी से क्या नहीं कराती।’ ऐसा ही कुछ सीतापुर जिले के सरवरपुर गांव के पिछड़ी जाति के सोभरन यादव के साथ हुआ। छोटे बेटे की शादी के लिए कर्ज लिया, उसे चुकाना था तो शहर मजदूरी करने निकले, पिता को अकेले जाते देख बड़ा बेटा सुशील भी साथ हो लिया। लखनऊ में काम मिला, लेकिन सीवर सफाई का। कर्ज उतारने के लिए पैसा चाहिए था, पिता के कहने पर बेटा सीवर में उतर गया, लेकिन कथिततौर पर सीवर में आक्सीजन की कमी के चलते गश खाकर गिर पड़ा। बेटे को बचाने उतरे सोभरन का भी दम घुट गया। डेढ़ घंटे सीवर में फंस रहने के बाद जब उनको अस्पताल पहुंचाया गया, तब तक पिता-पुत्र की मौत हो चुकी थी।
द मूकनायक की पड़ताल में सामने आया कि ठेकेदार, जल निगम व नगर निगम के अधिकारियों ने कदम-कदम पर पूरे मामले में लापरवाही बरती, जिसके चलते दो जाने असमय ही चली गईं। जानिए क्या था पूरा मामला।
घर के बाहर गेट पर लगी सजावट बता रही थी, घर में कोई शुभ काम हुआ है। शाम लगभग 4 बजे शव वाहन से उतारी गई दो लाशों को देखकर गांव के हर व्यक्ति के चेहरे पर पीड़ा साफ नजर आ रही थी। यह लाशें दोनों पिता-पुत्र की हैं। लाशों को देखकर घर की महिलाएं चीख उठी। करुण रुदन ने कुछ देर पहले गांव के सन्नाटे और चिडियों की चहचाहट के मधुर स्वर को व्यथित कर देने वाले शोर में बदल दिया। हर एक ग्रामीण बस यही कह रहा था कि अभी छोटे बेटे की शादी का दस दिन नहीं बीता था,और यह सब हो गया। किसी ने भी यह नहीं सोचा था बेटे की शादी की खुशियां दस दिन में ही फीकी पड़ जाएंगी।
अभी तो छोटे भाई विनय के पैर में शादी के दौरान लगाए गए आलते का रंग हल्का भी नहीं हुआ था कि उसके सामने भारी मुसीबत आ गई। उसकी आँखों के सामने बड़े भाई सुशील और पिता सोभरन के शव रखे हुए थे। वह फूट-फूटकर रोये जा रहा था।
सीतापुर जिला मुख्यालय से मात्र 21 किमी दूर सदर तहसील के खैराबाद ब्लॉक के सरवरपुर गांव में सोभरन यादव (55) बेटे सुशील यादव (32) व विनय यादव के साथ रहते थे। विनय की हाल ही में 18 अप्रैल को शादी हुई थी। घर में खुशी का माहौल था,जो दस दिन भी न रह सका।
विनय यादव ने द मूकनायक को बताया-"मेरे पिता अक्सर ठेकेदार के कहने पर काम के लिए उत्तर प्रदेश में कई जगह काम करने जाते थे। मेरी शादी 18 अप्रैल को हुई थी। घर में खुशियों का माहौल था। मेरे पिता 1 मई की सुबह मेरे बड़े भाई को लेकर काम करने सुबह 7 बजे ही गांव से लखनऊ चले गए थे।"
"मेरा भाई सुशील अक्सर गांव में ही काम करता था। वह गांव में मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालता था। घर खर्च निकालने के लिए वह दूसरे के खेतों में काम कर लेता था, लेकिन कल सुबह (1 मई) पिता के कहने पर उनके साथ चला गया।" विनय बताते हैं।
सोभरन यादव की बेटी उर्मिला ने द मूकनायक को बताया-"छोटे भाई की शादी के लिए पिता ने रिश्तेदारों से कर्जा लिया था। मुझसे भी उन्होंने कुछ रुपये उधार लिये थे। मुझे बच्चों की फीस जमा करनी थी, इसलिये मैंने उन्हें पैसा खाते में लगाने को कहा था। उन्होंने बोला था जल्दी ही पैसा इकट्ठा करके खाते में लगा देंगे।"
उर्मिला ने द मूकनायक को बताया-"हमारे पिता के पास बिलकुल भी जमीन नहीं है। यदि हमारे पास खेत होते तो खेती से गुजर बसर हो जाता। जमीन न होने के कारण खर्चे को पूरा करने के लिए मेरे पिता और भाई मजदूरी करते थे।"
गांव में प्रवेश करते ही एक बुजुर्ग सड़क किनारे छोटी सी दुकान चलाते हैं। द मूकनायक से वह कहते हैं- "जिस दिन यह घटना हुई उसकी सुबह ही गांव से निकले थे। मैं तब दुकान खोल ही रहा था। वह मेरी दुकान पुड़िया(पान मसाला) लेने आये थे। दुकान खोलने में समय लग रहा था,इसलिए वह गांव में दूसरी दुकान चले गए। उनका बड़ा बेटा (सुशील यादव) कभी उनके साथ काम पर नहीं जाता था। उस दिन पता नहीं क्यों चला गया। वह गांव में ही ट्राली पर गन्ना लादने,भूसा ढोने आदि का काम कर लेता था, लेकिन उनके साथ कभी नहीं गया था। यह अनहोनी उसे खींचकर ले गई थी।"
गांव के प्रधान प्रत्याशी बच्चू लाल पासी द मूकनायक से कहते हैं-'सोभरन ने अपना मकान बड़ी मेहनत से मजदूरी करके बनवाया था। उन्हें इस बार प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिल सका। उनके छोटे बेटे का मकान अभी भी कच्चा है।"
रोजगार की समस्या बताते हुए बच्चू लाल ने द मूकनायक को बताया-"गांव में रोजगार के तहत मनरेगा योजना चल रही है। गांव में इंटरलॉकिंग सड़क बनाने का काम चल रहा है। मनरेगा के तहत मजदूरों को 8 घण्टे का 213 रूपये प्रतिदिन ही मिलता है। कई बार मजदूर महीने भर काम करता है,लेकिन ब्लाक में पैसा खत्म हो जाने पर यह राशि दो तीन महीने बाद ही मिलती है। ऐसे में इस योजना के तहत कोई भी ग्रामीण काम करना पसंद नहीं करता है। दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसों की जरूरत होती है। सोभरन यादव और उसका बेटा इसी कारण मजदूरी करने शहर चले गए थे। शहर में मजदूरी के बाद नगद राशि मिल जाती है।"
घटना के बाद यूपी के समाज कल्याण और अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण मंत्री सीम अरुण पीड़ित परिजनों से मिलने पहुंचे थे। उन्होंने पीड़ित परिवार को तीस-तीस लाख का मुआवजा देने की बात कही। वहीं इस मामले में जल निगम के प्रबंध निदेश ने द मूकनायक को बताया-'सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार पीड़ित परिवार को 30-30 लाख की आर्थिक सहायता दी जाएगी। नगर निगम की टीम पीड़ित परिवार के घर गई थी,परिजन अभी दुःख में है। अंतिम संस्कार के बाद आर्थिक सहायता लेने की बात कही थी। आज टीम दोबारा उनके घर गई थी। बैंक संबंधी कुछ त्रुटियां हैं,उन्हें ठीक कराने के लिए पीड़ित परिवार को बता दिया गया है। सम्भवतः यह राशि शनिवार तक उनके खातों में पहुंच जायेगी;पीड़ित परिवार ने शुक्रवार अधिकारियों के घर आने की पुष्टि की है।"
परिजनों ने आरोप लगाया है कि शव के साथ कई चार पहिया वाहनों में अधिकारी गांव आये थे। वह गांव के भीतर नहीं घुसे,न परिजनों से बातचीत की। सभी अधिकारी गांव के बाहर से ही लौट गए।
गौरतलब है कि मजदूर दिवस पर मंगलवार को रेजीडेंसी के सामने नई सीवर लाइन में सफाई के दौरान जहरीली गैस के चलते दो मजदूरों की मौत हो गई। सीवर लाइन बिछाने वाले ठेकेदार ने बिना सुरक्षा उपकरणों के ही मजदूरोंं को सफाई के लिए उतार दिया था। जल निगम प्रशासन ने ठेकेदार के खिलाफ वजीरगंज थाने में एफआईआर दर्ज कराई है।
जल निगम ने रेजीडेंसी के सामने वाली रोड पर करीब तीन साल पहले सीवर लाइन बिछाई है। यह अभी चालू नहीं हुई है। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक मंगलवार दोपहर करीब तीन बजे उसमें पड़ी मिट्टी की सफाई का काम ठेकेदार फर्म केके स्पन कंपनी करा रही थी। आस-पास के लोगों ने बताया कि सफाई के लिए तीन मजदूर आए थे।
जानकारी के मुताबिक दो मजदूर सीवर लाइन में उतरे और एक ऊपर ही रहा। जो मजदूर नीचे उतरे वह सीवर लाइन की जहरीली गैस से बेहोश होकर गिर गए। यह देख ऊपर वाले मजदूर ने चिल्लाना शुरू किया। जिसके बाद पास से ही कुछ वकील व अन्य लोग मौके पर पहुंचे। उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी। जिसके बाद पुलिस, फायर विभाग, नगर निगम, जलकल विभाग के अफसर मौके पर पहुंचे।
इसके अलावा एसडीआरएफ की टीम भी पहुंची। इन सबके बीच करीब डेढ़ घंटे तक मजदूर चैंबर मेंं ही पड़े रहे। उनको निकालने के बाद एक को बलरामपुर अस्पताल और दूसरे को ट्रामा सेंटर ले जाया गया। जहां पर डॉक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया। मरने वालों की पहचान सीतापुर के कमलापुर थाने के सरवर गांव के सोबरन यादव (55) और उसके पुत्र सुशील यादव (32) के रूप में हुई।
इस मामले थान प्रभारी वजीरगंज ने द मूकनायक को बताया- "मृतक के छोटे बेटे विनय कुमार की तरफ दी गई तहरीर पर ठेकेदार कैलाश दीक्षित,फर्म के मालिक हिमांशु गुप्ता व केएस पांडेय के खिलाफ आईपीसी की धारा 304 में एफआईआर दर्ज की गई है। थानेदार ने यह स्पष्ट किया है कि यह केस मैनुअल एस्केवेजनिंग एक्ट 2013 की धारा शामिल नहीं है। वहीं इस मामले में जल निगम शहरी के प्रबंधक निदेशक राकेश मिश्रा ने सहायक अभियंता मुनिस अली और अवर अभियंता गुडलक वर्मा को निलंबित कर दिया गया है।"
पिता-पुत्र की मौत के मामले में प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर तो दर्ज कर ली,लेकिन यह एफआईआर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के निर्देशों पर खरा नहीं उतरती हैं। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में सीवर से हुई मौतों के मामले में 51 परिवारों को पूर्ण रूप से मुआवजा नहीं मिल सका है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार सीवर से होने वाली मौतों के मामले में मैनुअल स्केवेंजिंग एक्ट 2013 कि धारा के तहत मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। इससे पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने में सहायता मिलती है। इसके साथ ही यह एक्ट परिवार को मिलने वाली आर्थिक सहायता में मददगार साबित होता है।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा सितंबर 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव से सीवर में हुई मौतों और उन्हें दिए गए मुआवजे की जानकारी मांगने पर नगर विकास द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक यूपी में 1998 से 2021 तक,सीवर में उतरने से कुल 101 मौतें ही सरकारी आंकड़ों में दर्ज की गई थी। 50 मामलों में पीड़ित परिवार को 10 लाख का पूरा मुआवजा दिया गया। जबकि 30 मामलों में पूरी राशि नहीं दी गई। इनमे 21 मामलों में कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई। जबकि 20 मामलों में पीड़ित परिवार को एक भी पैसा नहीं दिया गया।
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान एक सवाल के जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने संसद को बताया कि इस साल 20 नवंबर तक सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 49 मौतें दर्ज की गईं। उन्होंने कहा सबसे ज्यादा मौतें राजस्थान में हुईं, उसके बाद दूसरे नंबर पर गुजरात रहा। 2018 से देश में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 400 से अधिक लोगों की मौत हो गई। मंत्री ने सांसद के सवाल पर बताया कि 2018 में जहां 76 मौतें हुईं, वहीं 2019 में 133, 2020 में 35, 2021 में 66, 2022 में 84 और इस साल 20 नवंबर तक 49 मौतें दर्ज की गईं।
बीते अप्रैल 2024 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद, 1993 के बाद से सीवर और सेप्टिक टैंक से होने वाली मौतों के 1,248 मामलों में से इस साल मार्च तक 1,116 मामलों में मुआवजे का भुगतान किया गया। हालांकि, 81 मामलों में मुआवजे का भुगतान अभी भी लंबित है।
सीवर सफाई के दौरान अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आती हैं। इसके बाद भी जिम्मेदार मानकों की अनदेखी ही करते हैं। सीवरों की सफाई के दौरान सफाईकर्मी को बिना मास्क और सुरक्षा बेल्ट के ही चैंबर में उतार दिया जाता है। साथ ही चैंबर में सफाईकर्मी को उतारने से पहले वहां मौजूद गैस के प्रभाव की जांच भी नहीं की जाती है। जिम्मेदार लोगों की इन सभी लापरवाही का खामियाजा सफाईकर्मियों को उठाना पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार मैनुअल स्क्वेजंर्स एंड रिहेब्लिएशन एक्ट के अंतर्गत शासनादेश के तहत सीवर व सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कर्मियों की मौत होने पर उनके परिजनों को 30 लाख रुपए दिए जाने का प्रावधान है। पूर्ण रूप से अपंग होने पर 20 लाख और आंशिक रूप से अपंग होने पर 10 लाख रुपए मिलेगा।
इस मामले भारत में सफाई आंदोलन प्रमुख बेजवाड़ा विल्सन ने द मूकनायक को बताया- "सीवर से होने वाली मौतों के मामले में मैनुअल स्क्वेजंर्स एंड रिहेब्लिएशन एक्ट सहित हत्या के प्रयास दोनों ही धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। ऐसा नहीं होता है। पीड़ित को पूरा मुआवजा तक नहीं मिल पता है। ऐसे कई मामले सामने आये हैं,जिसमे पीड़ित परिवार को एक पैसा नहीं मिला। सीवर में सफाई करने वाले परिवार आर्थिक रूप से बहुत ही कमजोर होते हैं। वह शिक्षित भी कम होते हैं,इस कारण कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाते,और उन्हें मुआवजे से वंचित होना पड़ता है।
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