यूपी: "सरकार एस्मा लगाए या जेल में डाल दे, हमें आवाज उठाने से नहीं रोक सकती"- सरकारी कर्मचारी

किसान आंदोलन को देखते हुए योगी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। उत्तर प्रदेश में छह महीने के लिए हड़ताल पर रोक लगा दी गई है।
यूपी: "सरकार एस्मा लगाए या जेल में डाल दे, हमें आवाज उठाने से नहीं रोक सकती"- सरकारी कर्मचारी
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लखनऊ। किसान आंदोलनों को देखते हुए यूपी सरकार ने एक बड़ा आदेश जारी किया है। इस आदेश के तहत कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी भी तरह की मांगों को लेकर हड़ताल नहीं कर सकेगा। किसी भी प्रकार की हड़ताल से पूर्व सूचना देनी आवश्यक होगी। इसके लिए सरकार ने एस्मा लागू किया है। इधर, आदेश को लेकर कर्मचारी संगठनों ने कड़ी आपत्ति जाहिर की है। कर्मचारियों का कहना है कि"सरकार एस्मा लगाए या जेल में डाल दे,हमें कोई अपनी आवाज उठाने से नहीं रोक सकता."

एसेंशियल सर्विस मैनजमेंट एक्ट-1981 के तहत यदि कोई ऐसा करता है तो उस कर्मचारी का गैर-जमानती वारंट जारी होगा। उसे जेल में डाल दिया जाएगा। इस नियम के तहत एक हजार का आर्थिक दंड सहित एक साल की कैद की सजा है। इस मामले में द मूकनायक ने विभिन्न सरकारी कर्मचारी संगठनों से बातचीत की। सभी ने इस कानून का विरोध किया है। वहीं कहा कि यह संविधान के खिलाफ है। सरकार इस तरह के कानूनों से लोगों की आवाज दबाना चाहती है।

दरअसल, किसान आंदोलन को देखते हुए योगी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। उत्तर प्रदेश में छह महीने के लिए हड़ताल पर रोक लगा दी गई है। अगर कोई कर्मचारी हड़ताल या प्रदर्शन करता पाया गया तो बिना वारंट गिरफ्तारी की जाएगी। यह आदेश राज्य सरकार के अधीन सरकारी विभागों, निगम और प्राधिकरण पर लागू होगा। अपर मुख्य सचिव कार्मिक डॉ. देवेश चतुर्वेद ने इस संबंध में अधिसूचना जारी की है। सरकार की ओर से अधिसूचना जारी कर बताया गया कि एस्मा एक्ट लगने के बाद कोई भी कर्मचारी हड़ताल-प्रदर्शन करता है तो एक्ट उल्लंघन के मामले में उसकी बिना वारंट गिरफ्तारी होगी। इससे पहले योगी सरकार ने 2023 में छह महीने तक के लिए हड़ताल पर रोक लगाई थी। तब सरकार ने बिजली विभाग के कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने के कारण फैसला लिया था।

एस्मा का इस्तेमाल उस समय किया जाता है, जब कर्मचारी हड़ताल पर जाते हैं। इसका इस्तेमाल हड़ताल को रोकने के लिए किया जाता है। विभिन्न मांगों को लेकर किसान सड़कों पर उतरे हुए हैं। यूपी-दिल्ली बॉर्डर किसान और सुरक्षाकर्मी आमने-सामने हैं। इससे पहले 2020 में भी किसान आंदोलन हुआ था। तब ये आंदोलन एक साल से भी लंबा चला था।

क्या कहना है सरकारी कर्मचारी संगठनों का?

द मूकनायक ने उत्तर प्रदेश नगर निकाय कर्मचारी संघ के अध्यक्ष शशिकांत मिश्रा से बातचीत की। उन्होंने इस नीति का विरोध जाहिर करते हुए कहा है, "सरकार इस तरह किसी पर कानून थोप नहीं सकती है। इससे निचले स्तर के कर्मचारियों का शोषण शुरू हो जाएगा। उन पर जबरन काम सौंपे जायेंगे। यह सरकार की गलत नीति है। यदि हमारे संगठन के कर्मचारियों को किसी प्रकार की समस्या होती है तो हम न्यायपालिका जाएंगे।"

इस मामले में यूपी रोडवेज कर्मचारी संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमाकांत सचान कहते हैं, "इस तरह के कानूनों से हमारी आवाज नहीं दबाई जा सकती हैं। उनकी सरकार है वह कुछ भी कर सकते हैं। आप एस्मा लगा दें या कोई भी एमरजेंसी लगा दें। जिस कर्मचारी को दिक्कत होगी वह अपनी परेशानी लेकर आवाज उठाएगा। हम उनके साथ हैं।"

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष एसपी तिवारी कहते हैं, "पिछले 40 सालों से कर्मचारी संघ का प्रतिनिधित्व कर रहा हूँ। सरकार कभी नहीं कहती है आंदोलन करो। सरकार तो कर्मचारियों की आवाज को दबाना ही चाहती है। सरकार क्या करेगी ज्यादा से ज्यादा जेल में ही डालेगी। वैसे भी हम कर्मचारियों पर मुकदमे होते ही हैं। सन 1994 में हमने देशव्यापी हड़ताल की थी, उस समय पचास हजार लोगों को जेल में डाला गया था। लेकिन हम पीछे नहीं हटे और सरकारों को झुकना पड़ा था। सरकार एस्मा लगाए या कुछ करे हमारी यदि कोई मांग नहीं पूरी होती है तो हम हड़ताल करेंगे। यह हमारा अधिकार है।"

शिक्षा विभाग और लखनऊ विश्विद्यालय कर्मचारी संघ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष राकेश यादव कहते हैं, "यह लोकतंत्र की सीधे सीधे हत्या है। जब विपक्ष की सरकारें थीं, तब यही बीजेपी आंदोलन करके विरोध जताती थी और सत्ता में आई है। यदि कोई कर्मचारी अपनी मांगों को नहीं रख पा रहा हैया उनकी मांगे नहीं सुनी जा रही हैं,ऐसे में हड़ताल और आंदोलन ही वह तरीका है जिससे आवाजें बुलंद होती हैं। हमारी कोई मांग होती है तो हम उसके लिए हड़ताल करेंगे। यदि रोका जाता है तो न्यायपालिका की शरण लेंगे।"

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