नई दिल्ली। सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए मजदूरों की मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक बार फिर ऐसा ही मामला सामने आया है। दिल्ली के सरिता विहार में गत शुक्रवार को एक सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय जहरीली गैस की चपेट में आने से दो मजदूरों की मौत हो गई। घटना दक्षिणपूर्वी दिल्ली के सरिता विहार इलाके के जसोला गांव में दोपहर करीब एक बजे हुई।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार घटना के बारे में कॉल मिलने के तुरंत बाद स्थानीय पुलिस मौके पर पहुंची और जहां उन्होंने पाया कि सफाई के लिए काम पर रखे गए दो लोग सेप्टिक टैंक के अंदर फंसे हुए थे।
सेप्टिक टैंक में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए दमकलकर्मियों को बुलाया गया। दमकल कर्मियों ने दोनों को टैंक से काफी मशक्कत के बाद बाहर निकाला। तत्काल दोनों मजदूरों को उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। अधिकारी के मुताबिक मृतकों को इलाके के निवासी इकबाल सिंह ने काम पर रखा था।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मृतकों में से एक की पहचान राज प्रकाश सिंह (60) के रूप में हुई है, जो टैंक की सफाई के दौरान इस्तेमाल किए गए ट्रैक्टर के चालक के रूप में काम कर रहा था। दूसरे मृतक की अभी पहचान नहीं हो पाई है। फिलहाल, थाना पुलिस मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच में जुटी है। इस घटना को लेकर पुलिस की शुरुआती जांच में पता चला है कि इकबाल सिंह ने दोनों मृतकों को अपने यहां काम पर रखा था। दोनों मजदूर ट्रैक्टर की मदद से सेप्टिक टैंक की सफाई का काम करते हैं।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक सीवर की मैन्युअल सफाई राजधानी में पिछले कई सालों से पूरी तरह बंद है, लेकिन इसके बावजूद सीवर हादसे की वजह बन रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर क्यों अब भी सीवर की वजह से इतनी मौतें हो रही हैं।
अधिकारियों के अनुसार, इसकी वजह लापरवाही और व्यवस्था में कमी दोनों ही है। डीजेबी के अधिकारी के अनुसार, जबसे मैन्युअल सफाई बंद हुई है डीजेबी के किसी कर्मी की मौत सीवर में उतर कर नहीं हुई है। लेकिन डीजेबी भी अपने काम एजेंसियों से करवाती है। राजधानी में गिनी-चुनी एजेंसी सीवर नेटवर्क से जुड़े काम करती हैं। ऐसे में वह मनमानी भी करती हैं और लापरवाही भी। यही वजह है कि हादसे उन्हीं की तरफ से सामने आते हैं।
यदि साफ शब्दों में कहा जाए तो अधिक सख्ती होने पर यह एजेंसियां दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) के काम व सफाई व्यवस्था के काम को बिगाड़ देती हैं। काम पूरे नहीं हो पाते। लेकिन इसके बावजूद जब जब लापरवाहियां सामने आती हैं या डीजेबी को शिकायतें मिलती है तो उनपर कार्रवाई होती है। पहले कुछ एजेंसियों को ब्लैकलिस्ट तक किया जा चुका है। डीजेबी के छोटे मरम्मत के काम के लिए दो से तीन एजेंसियां और बड़े काम के लिए औसत 6 से 7 एजेंसियां आगे आती हैं।
डीजेबी के अनुसार, इन मौतों के पीछे कुछ हद तक लोग भी जिम्मेदार हैं। वह व्यवस्थाओं से इतर सीवर नेटवर्क साफ करने के लिए कई बार प्राइवेट ठेकेदारों की मदद ले लेते हैं। ऐसे प्राइवेट ठेकेदारों पर कई बार कार्रवाई भी हुई है और उन पर पुलिस केस भी बने हैं। ये लोग 200 से 300 रुपये देकर मजदूरों को बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के सीवर में उतार देते हैं।
हालांकि सफाई का यह तरीका अब बंद होता जा रहा है, लेकिन अब भी कुछ कॉलोनियों में ऐसा हो रहा है। इसी तरह डीजेबी ने सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए भी वेंडरों की लिस्ट बनाई हुई है। डीजेबी के पैनल में यह वेंडर है। नियमों के अनुसार, कॉलोनी के अंदर या बिल्डिंग व सोसायटी के अंदर सेप्टिक टैंक है तो उनकी सफाई इन्हीं वेंडरों से करवाई जाती है। इन लोगों को ट्रेनिंग दी गई है, सुरक्षा उपकरण इनके पास रहते हैं। यह लोग डीजेबी द्वारा तय शुल्क में यह काम करते हैं। लेकिन लोग अपनी सुविधा के अनुसार यह काम प्राइवेट लोगों से करवाते हैं, जिनके पास ट्रेनिंग नहीं है।
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