उत्तर प्रदेश। "यूपी में रोजगार नहीं है, हम आदिवासी लोग हैं, रोजगार के लिये घर चलाने के लिये जाना पड़ता है"....यह शब्द उत्तरकाशी टनल में 18 दिन तक फंसे रहे मजदूर अंकित कुमार के हैं। उनका कहना है कि यूपी में रोजगार नहीं है। यूपी से लोग काम की तलाश में बाहर जाते हैं। अगर आसपास रोजगार मिल भी जाता है तो मेहनताना कम मिलता है। जिससे परिवार चला पाना मुश्किल होता है। अंकित के परिवार की तरह अन्य परिवारों की भी यही स्थिति थी। अधिकांश मजदूरों के मकान कच्चे बने हुए हैं। कोई भी सुविधा नहीं है। किसी मजदूर पर अपने परिवार और माता पिता की जिम्मेदारी है तो किसी के पिता नहीं है। उसे ही पूरे परिवार का आर्थिक भार संभालना पड़ता है।
द मूकनायक की टीम 2 दिसम्बर को लखनऊ से लगभग 200 किमी दूर चलकर नेपाल बॉर्डर पर श्रावस्ती जिले के सिरसिया तहसील के मोतीपुर गांव पहुंची थी। उत्तराखंड के उत्तरकाशी की सिलक्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों में 8 मजदूर उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे। इनमें से 6 मजदूर मोतीपुर कलां गांव के रहने वाले हैं। यह सभी मजदूर आदिवासी (थारू जनजाति) समुदाय के हैं।
द मूकनायक की टीम बारी-बारी से सभी मजदूरों के घर पहुंची। इन मजदूरों की आर्थिक स्थिति खराब है। ज्यादा दिहाड़ी पाने के लिए यह मजदूर यूपी से बाहर जाकर काम करने को मजबूर हैं। आइये जनिये सभी मजदूरों के परिवार और उनकी आर्थिक चुनौतियों के बारे में..
उत्तरकाशी में अंकित टेक्नीशियन के तौर पर काम कर रहे थे। टनल में 18 दिन जिंदगी और मौत से जूझकर आये अंकित अपनी आर्थिक स्थिति से रूबरू कराते हुए द मूकनायक से बताते हैं, "जो है सब आपके सामने है। सोचा था बाहर पैसा कमा कर आऊंगा तो पक्का घर बनवा लूंगा।" प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभ के बारे में पूछने पर अंकित कहते हैं, "मुझे अभी तक इसका लाभ नही मिल सका है। मेरे तीन भाई और एक बहन है। पिता के ऊपर भी जिम्मेदारी है। हमारे पास सिर्फ 6 बीघा कच्चा खेत है। इसमें हमारे तीनों भाईयों का हिस्सा है।"
अंकित के घर से निकलकर वापस सड़क की तरफ आने पर संतोष, जयप्रकाश, रामसुंदर का घर पड़ता है। संतोष और जय प्रकाश का घर पक्का बना हुआ है। संतोष द मूकनायक को बताते हैं, "मेरे पिता की आज से 11 साल पहले मौत हो चुकी है। मैं तब 12 साल का था। मेरे ऊपर पूरा परिवार चलाने की जिम्मेदारी है। किसी तरह मैंने अपनी बहन की शादी की है। छोटे भाई की शादी करना अभी बाकी है।"
काम के सवाल पर संतोष बताते हैं, "यूपी में काम करने पर मजदूरी कम मिलती है। जो भी कमाओ खर्चा हो जाता है। लेकिन उत्तराखंड में ज्यादा पैसा मिलता है। काम बहुत खतरनाक होता है लेकिन उसमें हमारी आमदनी खूब होती है।"
द मूकनायक टीम आगे बढ़कर राममिलन के घर पहुंची। राममिलन के घर भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकर्ताओ के साथ जमावड़ा लगा हुआ था। राममिलन का घर भी अंकित के घर जैसा कच्चा बना हुआ था। इस घर मे बिजली कनेक्शन तक नही था। राममिलन की मां द मूकनायक को बताती हैं, "हमारे पास न तो पक्का घर है, न बिजली कनेक्शन है और न ही खेत है। ऐसे में हम मजदूरी करके ही अपना जीवन यापन करते हैं।"
धनपति अपने बेटे के वापस लौटने पर बहुत खुश दिख रही थी। वह कहती हैं, "बेटे के लौटने की खुशी में हमने होली खेली, गोला दगाया, देवताओं की पूजा करके उनका धन्यवाद किया। लोगों को खाने पर बुलाकर खाना खिलाया। मेरा बेटा वापस आ गया। मैं बहुत खुश हूं।'' वापस नौकरी पर बाहर जाने के सवाल पर मुस्कुराते हुए धनपति कहती हैं, "अब भले ही हम 100 रुपये कमा लेंगे लेकिन अपने बेटे को वापस कभी नहीं भेजेंगे।"
राममिलन और सत्य देव मोतीपुर कलां के रानियापुर मजरे में रहते हैं। दोनों का घर अगल-बगल मौजूद है। दोनों ही लोगों के मकान कच्चे दिख रहे थे। उनके मकान परिवार की आर्थिक स्थिति और गरीबी को बयां कर रहे थे।
मजदूरों के मुताबिक 1 दिसम्बर को जब वह यूपी आये तब उनकी मुलाकात सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ से हुई थी। मजदूरों का कहना है कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने मजदूरों को पट्टे पर जमीन और जिनके भी पक्के आवास नहीं है उन्हें आवास देने का वादा किया है। मजदूरों को इससे उम्मीद जागी है।
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