दिल्ली में मजदूरों के लिए नहीं है बोर्ड, कैसे होगा मजदूरों का कल्याण?

90 फीसदी से अधिक फैक्टरी दिल्ली फायर सर्विस की एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) के बिना ही चल रही हैं। इनमें आग बुझाने के भी कोई इंतजाम नहीं हैं।
दिहाड़ी मजदूर अपने सुबह के भोजन के लिए गुरुद्वारे में मौजूद
दिहाड़ी मजदूर अपने सुबह के भोजन के लिए गुरुद्वारे में मौजूदफोटो- अयनभा बनर्जी, द मूकनायक
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नई दिल्ली: दिल्ली में काम करने वाले असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के कल्याण के लिए 22 साल पहले दिल्ली सरकार ने दिल्ली भवन एवं अन्य सनिर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड शुरू किया था। इस बोर्ड का पूर्ण गठन पांचवीं बार 2020 में किया गया था। जिसका कार्यकाल 2023 में समाप्त हो गया। श्रमिकों से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए बोर्ड की आखिरी 40वीं बैठक पिछले साल 19 में को हुई थी। बोर्ड के अध्यक्षता दिल्ली के श्रम मंत्री राजकुमार थे। जिन्होंने पिछले महीने त्यागपत्र दे दिया है।

बोर्ड के सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य व दिल्ली असंगठित निर्माण मजदूर यूनियन के सचिव और निर्माण मजदूर अधिकार अभियान (नमा) के संयोजक थानेश्वर दयाल आदि गौड़ द मूकनायक से बताते हैं कि, बोर्ड की बैठक में श्रमिकों से जुड़े मुद्दों के समाधान के लिए कार्य योजना को पास किया जाता है। 1 साल से बोर्ड के कर्मचारियों और अधिकारियों के वेतन में करोड़ों खर्च हो रहा है लेकिन श्रमिकों की भलाई के लिए कुछ नहीं हो रहा है। बोर्ड का कार्यकाल 3 वर्ष का होता है जो कि 2023 में समाप्त हो गया है। इसी तरह बोर्ड की एडवाइजरी कमेटी का कार्यकाल भी समाप्त हो गया है। लेकिन किसी को कोई लेना देना नहीं है।

आगे वह बताते हैं कि, "बोर्ड की ओर से मजदूरों के बच्चों को शैक्षिक सहायता, पेंशन, मातृलाभ, शादी के लिए सहायता, दुर्घटना सहायता, चिकित्सा सहायता समेत कल 18 कल्याणकारी योजनाओं के तहत सहायता दी जाती है। लेकिन असलियत में पिछले तीन वर्षों में श्रमिकों को क्षेत्र शैक्षिक सहायता नहीं मिल पा रही है। पेंशन, मृत्रक  के परिजनों को मिलने वाला मुआवजा आदि, हजारों हित लाभ के लिए आवेदन बोर्ड के पास लंबित पड़े हैं। आज तक निर्माण मजदूर को घर बनाने और घर की मरम्मत करने के लिए ऋण नहीं दिया, जो कि 5 लाख का होता है। बोर्ड के पास 12 लाख निर्माण मजदूर हैं। करीब 17 लाख लोगों ने आवेदन किया है। जिसमें 13 लाख 60000 लोगों का ही रजिस्ट्रेशन हुआ है।"

थानेश्वर ने हमें जितनी बातें बताईं इन सभी बातों को लेकर उन्होंने पत्र भी दिल्ली सरकार को लिखा है। द मूकनायक ने बोर्ड से संबंधित अधिकारियों से भी बात करने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने बताया कि वह चुनाव ड्यूटी पर हैं इसलिए बात नहीं कर सकते।

नरेला में फैक्ट्री में आग लगने से तीन श्रमिकों की मौत

एक तरफ श्रमिकों के लिए बोर्ड नहीं है, वहीं दूसरी तरफ उनके प्रति होने वाले मुसीबतें भी कम नहीं हैं। कोई इनके बारे में नहीं सोचता, कल ही नरेला इंडस्ट्रियल एरिया में शनिवार तड़के मूंग दाल ड्राई करने वाली एक फैक्ट्री में भीषण आग लगने से तीन श्रमिकों की मौत हो गई, जबकि 6 श्रमिक जख्मी हो गए। सूचना मिलने के बाद दमकल की 16 गाड़ियां और कैट्स एंबुलेंस मौके पर पहुंचीं। करीब 8 घंटे की मशक्कत के बाद दमकल कर्मियों ने आग पर काबू पाया। कूलिंग का काम देर तक जारी रहा। घायलों का सफदरजंग अस्पताल में इलाज चल रहा है। पांच की हालत स्थिर बनी हुई है। एक को प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई। शुरुआती जांच में पता चला है कि फैक्ट्री में लगा बॉयलर फटने के बाद हुए जोरदार धमाके से आग लगी।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, नरेला और बवाना की करीब 20 हजार फैक्टरी में से 90 फीसदी के पास दिल्ली फायर सर्विस की एनओसी नहीं है। नियमों को ताक में रखकर ज्यादातर फैक्टरी चल रही हैं। यहां अक्सर आग लगती रहती है। ज्यादातर फैक्टरी में आग बुझाने के कोई इंतजाम नहीं है।

नरेला औद्योगिक क्षेत्र की जिस फैक्टरी में शनिवार तड़के धमाके के बाद आग लगी उसे बैगर फायर एनओसी के ही चलाया जा रहा था। आग पर काबू पाने के बाद जब फैक्टरी में आग से बचने के इंतजामों की जांच की गई तो वहां कुछ नहीं मिला। अलबत्ता फैक्टरी में इक्का-दुक्का जगहों पर आग बुझाने वाले सिलेंडर जरूर मिले हैं।

दिल्ली फायर सर्विस के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नरेला और बवाना औद्योगिक क्षेत्र में छोटी-बड़ी करीब 20 हजार से ज्यादा फैक्टरी हैं। यहां की 90 फीसदी से अधिक फैक्टरी दिल्ली फायर सर्विस की एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) के बिना ही चल रही हैं। इनमें आग बुझाने के भी कोई इंतजाम नहीं हैं।

कोई ट्रेनिंग नहीं दी जाती

फैक्टरी मालिक ज्यादा से ज्यादा उत्पादन करने के चक्कर में फैक्टरी में लगी मशीनों को 24-24 घंटे चलाते हैं। मशीनों का रख-रखाव भी नहीं किया जाता है। ऐसे में इनमें हादसे की संभावना बनी रहती है। दूसरी ओर गांव से आने वाले सीधे-साधे मजदूरों से दिनरात काम तो करवाया जाता है, लेकिन उनको किसी भी तरह आग से बचाव की कोई ट्रेनिंग नहीं दी जाती है।

हादसे के बाद याद आते हैं नियम

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एक अन्य अधिकारी ने बताया कि किसी हादसे के बाद सभी विभाग सतर्क हो जाते हैं, जांच पड़ताल भी शुरू हो जाती है। समय बीतने के साथ सभी लोग मुद्दे को भूल जाते हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दमकल विभाग के अधिकारियों का कहना है कि जो भी फैक्टरी मालिक तय मानकों को पूरा करते हैं, पड़ताल के बाद उनको एनओसी जारी कर दी जाती है।

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