जयपुर। राजस्थान (Rajasthan) के सवाईमाधोपुर जिले के मलारना डूंगर कस्बे में रहने वाली मैना महावर पति की मौत के बाद से अकेले ही गृहस्थी का बोझ उठा रही है। अप्रैल 2021 में पति गिरिराज कोली की बीमारी के कारण मौत हो गई थी। अब मैना पर दो बेटों की परवरिश की जिम्मेदार भी है। वह कस्बे के एक सरकारी स्कूल में मिड-डे-मिल (Mid Day Meal) भोजन पकाती है। यहां सरकार उसे 2003 रुपए मासिक मानदेय देती है।
मुश्तरी बेगम व लछमा महावर के भी हालात कुछ ठीक नहीं हैं। यह भी सरकारी स्कूल में मिड-डे-मील का भोजन तैयार करती हैं। दोनों के पति उन्हें अपने साथ नहीं रखते। इनके पतियों ने बच्चों को भी साथ रखने से इनकार कर दिया। बेबसी के बावजूद इन्होंने बच्चों का साथ नहीं छोड़ा। उनका भविष्य संवारने के लिए मजदूरी की। वर्तमान में दोनों अलग-अलग स्कूलों में कुक कम हेल्पर का काम कर रही हैं। उन्हें भी स्कूल से न्यूनतम मजदूरी से कम मेहनताना मिलता है।
राज्य के सरकारी स्कूलों में ऐसी हजारों महिलाएं बच्चों के लिए मध्यांतर का भोजन तैयार कर रही हैं। इस काम में पुरुष भी लगे हैं। आपको बता दें कि मंगलवार 11 मार्च 2024 को राजस्थान सरकार मिड-डे-मील आयुक्त विश्व मोहन शर्मा ने एक आदेश जारी कर मानदेय में राज्यांश 10 प्रतिशत बढ़ाया है। आगामी वित्तीय वर्ष में कुक कम हेल्पर को मानदेय बढ़ाकर 2143 रुपए दिया जाएगा। वर्तमान में यह राशि 2003 रुपए है। इसमें 600 रुपए केन्द्र सरकार देती है। शेष राज्य सरकार भुगतान करती है।
मानदेय बढ़ाने की मांग को लेकर राज्य के कुक कम हेल्पर (Cook cum helper) लंबे समय से मांग कर रहे हैं। कई बार विभिन्न माध्यमों से सरकार तक मांग पत्र भी भेजा गया, लेकिन सरकारों ने इनकी मांगों पर गौर नहीं किया। सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी से भी कम मेहनताना देकर सरकार कैसे हजारों लाचार महिला मजदूरों से काम लेती है। यह जानने के लिए द मूकनायक ने विभिन्न सरकारी स्कूलों का दौरा कर इनकी पीड़ा जानी।
राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय मलारना डूंगर में पोषाहार पकाने वाली मुश्तरी बेगम ने द मूकनायक से कहा- "पति ने दूसरी शादी कर ली। मैं क्या करती, बेटा व बेटी मेरे साथ है। अब इनके पालन-पोषण व शिक्षा की जिम्मेदारी मुझ पर है।"
मुश्तरी आगे कहती है- "अल्लाह का शुक्र है मेरी बड़ी बेटी बीए प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रही है। छोटा बेटा कक्षा 9वीं में है। बच्चों के पालन-पोषण के साथ पढ़ा लिखा कर इनका भविष्य भी सुधारना है। एक एक रुपया जोड़ कर बेटी की किताबें खरीदी। कॉलेज की फीस जमा कराई है। 2000 रुपए में कैसे गृहस्थी चलती है। यह आप नहीं समझ पाओगे।"
महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम राजकीय विद्यालय में पोषाहार बनाने वाली मंती बैरवा ने द मूकनायक से कहा- "सुबह मास्टरों के साथ स्कूल आते हैं। पहले बच्चों के लिए दूध तैयार करते हैं। फिर मध्यांतर के भोजन की तैयारी में लग जाते हैं। सुबह से शाम तक चूल्हे पर तपने के बाद सरकार महीने के दो हजार रुपए देती है। तेल, आटा, दाल का बाजार में जाकर भाव पूछकर आएं। एक गरीब कैसे पेट भरता है।"
मंती बैरवा व मैना महावर के साथ इसी स्कूल में काम करने वाली सछमा महावर कहती है-"मेरे दो बच्चे हैं। पति ने छोड़ दिया है। अब वह दूसरे राज्य में कहीं काम करता है। मायके में रहकर बच्चों का पालन-पोषण कर रही हूं। सुबह जल्दी उठकर बेटे के लिए खाना बना कर स्कूल आती हूं। यहां से शाम को जाती हूं। इसके बदले सरकार रोजाना के 70 रुपए मजदूरी भी नहीं देती, जबकि मनरेगा में 255 रुपए मजदूरी देते हैं। हमें भी मनरेगा में तय मजदूरी के बराबर मेहनताना दिया जाए।"
महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम राजकीय विद्यालय के पोषाहार प्रभारी अब्दुल मलिक कहते हैं-" हमारे स्कूल में तीनों महिलाएं अनुसूचित जाति वर्ग से है, लेकिन कभी भेदभाव नहीं हुआ। सभी बच्चे एक साथ बैठ कर खाना खाते हैं। यह महिलाएं सुबह स्कूल समय से आती है। बर्तन साफ कर शाम को शिक्षकों के साथ ही वापस जाती हैं। वर्तमान में इन्हें 2003 रुपए दे रहे हैं।"
बालिका स्कूल में पोषाहार पकाने वाली रजिया कहती हैं- "बस समय पास हो रहा है। इतने कम पैसों से कैसे परिवार चलता है। पति भी मजदूरी कर सहारा लगाते हैं। दोनों मिलकर घर चला रहे हैं। यहां हम सुबह आते हैं। सबसे पहले रसोई घर की सफाई करते हैं। फिर बर्तन साफ कर दूध गर्म कर बच्चों का पिलाते हैं। दूध के बर्तन धोने के बाद फिर दोपहर के भोजन की तैयारी में लग जाते हैं। हम भी मनरेगा मजदूरों के बराबर समय ही काम कर रहे हैं। फिर हमें कम मानदेय क्यों दिया जा रहा है।"
सवाईमाधोपुर जिले की बात करें तो वर्तमान में यहां 2142 कुक कम हेल्पर स्कूलों में पोषाहार बना रहे हैं। इनमें 83 एससी, 74 एसटी, 402 ओबीसी, 55 अल्पसंख्यक व 46 अन्य पुरुष हैं। जबकि 202 महिला अनुसूचित जाति वर्ग, 2017 अनुसूचित जनजाति, 897 अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), 55 अल्पसंख्यक महिला व 111 अन्य महिलाएं कुक कम हेल्पर का काम कर रही हैं। सरकार ने इन्हें जनवरी से मानदेय का भुगतान नहीं किया है। कुक कम हेल्पर का कहना है कि एक तो सरकारी दर से कम मजदूरी में काम कराया जा रहा है। इसके बावजूद तीन से पांच महीनों में भुगतान होता है। यह सरकारी शोषण नहीं तो क्या है?
इधर, जिला शिक्षा अधिकारी प्रारंभिक एवं मिड-डे-मील प्रभारी सवाई माधोपुर गोविंद प्रसाद दीक्षित ने द मूकनायक से कहा कि वर्तमान में कुक कम हेल्पर का मानदेय 2003 रुपए है। आगामी वित्तीय वर्ष में राज्यांश में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 2143 रुपए मानदेय दिया जाएगा। हालांकि इतने कम मानदेय देने के सवाल पर उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
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