भोपाल। प्रदेशभर के शासकीय विभागों और अर्द्धसरकारी संस्थानों में काम कर रहे आउटसोर्स कर्मचारी रविवार को राजधानी भोपाल में अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरे। नीलम पार्क में सैकड़ों की संख्या में प्रदर्शनकारी एकत्रित हुए, जिनमें चौकीदार, भृत्य, पंप ऑपरेटर, सफाईकर्मी, स्कूलों और छात्रावासों के अंशकालीन और अस्थायी कर्मचारी शामिल थे। उनकी मुख्य मांग यह थी कि उन्हें नौकरी में सुरक्षा प्रदान की जाए और न्यूनतम वेतन 21 हजार रुपये सुनिश्चित किया जाए।
आउटसोर्स, अस्थायी और अंशकालीन कर्मचारी लंबे समय से नौकरी में अस्थिरता और वेतन के मुद्दों से जूझ रहे हैं। आंदोलन का नेतृत्व कर रहे आउटसोर्स, अस्थायी, अंशकालीन और ग्राम पंचायत कर्मचारी संयुक्त मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष वासुदेव शर्मा ने बताया, "मध्य प्रदेश के शासकीय विभागों में काम अब ठेकेदारों के माध्यम से करवाया जा रहा है। विभागों का लगभग 80 फीसदी निजीकरण हो चुका है, और सरकारी विभागों में काम करने वाले कर्मचारियों की नौकरी में सुरक्षा पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। साथ ही, इन्हें न्यूनतम वेतन भी नहीं मिल रहा है, जिससे वे अन्याय के शिकार बन रहे हैं।"
वासुदेव शर्मा ने आगे कहा, "कर्मचारियों के वेतन से 18% जीएसटी तक काटा जा रहा है, जो बेहद अनुचित है। उनका आरोप है कि वेतन को संशोधित करके और भी कम कर दिया गया है, जिससे कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति और अधिक कठिन हो गई है।"
प्रदर्शन में प्रदेश के अधिकांश विभागों के आउटसोर्स कर्मचारी शामिल हुए। ग्राम पंचायतों के चौकीदार, भृत्य, पंप ऑपरेटर, सफाईकर्मी, स्कूलों और छात्रावासों के अंशकालीन अस्थायी कर्मचारी, निगम मंडल, नगरीय निकाय, सहकारिता के आउटसोर्स कर्मी, शासकीय विभागों के आउटसोर्स कंप्यूटर ऑपरेटर, अस्पताल और मेडिकल कॉलेजों के वार्ड कर्मचारी, सुरक्षाकर्मी, चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी, मंडियों, राष्ट्रीयकृत और सहकारी बैंकों के कर्मचारी, उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा संस्थानों के कर्मचारी, यूनिवर्सिटी के कर्मचारी, आयुष विभाग के योग प्रशिक्षक, और शिक्षा विभाग के व्यावसायिक प्रशिक्षक भी इस आंदोलन में शामिल हुए।
सभी कर्मचारियों की मांग एक ही थी – नौकरी में स्थायित्व और कम से कम 21,000 रुपये का मासिक वेतन। उनकी शिकायत है कि वर्तमान में उन्हें जो वेतन मिल रहा है, वह न केवल कम है बल्कि उनके वेतन से अवांछित कटौती भी की जा रही है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। प्रदर्शन के दौरान कर्मचारी नारेबाजी करते रहे।
प्रदर्शनकारियों का कहना है, कि सरकारी विभागों में आउटसोर्स कर्मचारियों के साथ लगातार अन्याय किया जा रहा है। वेतन को संशोधित करने की प्रक्रिया में इसे कम कर दिया गया है, और इसके साथ ही अन्य सुविधाएं भी पूरी तरह से नदारद हैं। कर्मचारियों का आरोप है कि ठेकेदारों के माध्यम से काम करवाने की व्यवस्था ने कर्मचारियों को और अधिक असुरक्षित बना दिया है।
आउटसोर्स कर्मचारियों के इस प्रदर्शन को प्रशासन की ओर से शनिवार देर रात अनुमति मिली थी। प्रदर्शनकारी रविवार सुबह से ही भोपाल के नीलम पार्क में जुटना शुरू हो गए थे। उन्होंने अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने के लिए शांतिपूर्ण तरीके से अपना विरोध जताया।
आउटसोर्स कर्मचारियों का यह आंदोलन 'कामगार क्रांति' के तहत किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य कर्मचारियों को उनके अधिकार दिलवाना है। उनका कहना है कि जब तक सरकार उनकी मांगों को पूरा नहीं करती, तब तक वे संघर्ष करते रहेंगे। यह आंदोलन न केवल उनकी आर्थिक सुरक्षा से जुड़ा है, बल्कि उनके भविष्य की स्थिरता के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। आंदोलनकारियों ने सरकार से स्पष्ट रूप से मांग की है कि आउटसोर्स और अस्थायी कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी की जाए और उन्हें स्थायी नौकरी की सुरक्षा प्रदान की जाए।
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