भोपाल। "मैं अनुसूचित जाति वर्ग की महिला हूँ. अप्रैल 2022 में मेरे पति को कुछ लोग धमका रहे थे. मेरे पति शासकीय राशन की दुकान चलाते हैं, उनसे हर महीने पैसे की मांग की जा रही थी. आरोपियों ने हमारे परिवार को धमकाया. पैसे नहीं देंगे तो झूठी शिकायत करेंगे. अवैध वसूली से परेशान होकर हमने थाने में शिकायत की. एसपी को भी पत्र लिखा, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. धमकाने वाले लोग प्रभावशाली थे. हमने महिला आयोग और अनुसूचित जाति आयोग में शिकायत की थी, लेकिन वहां से भी कोई कार्रवाई नही हुई."
शिवपुरी जिले के खनियाधाना तहसील की रहवासी निशा ने द मूकनायक प्रतिनिधि से बताया कि अब उन्हें कार्रवाई का इंतजार है. इधर, एक साल बीत चुका है, पर मध्य प्रदेश सरकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला आयोग अध्यक्ष का मनोनयन नहीं कर सकी है।
राज्य अनुसूचित जाति आयोग, राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग और राज्य महिला आयोग में अध्यक्ष/सदस्यों के पद मार्च 2023 से खाली पड़े हैं। इस बीच तीनों आयोगों में हजारों की संख्या में शिकायती पत्र पहुँचे, लेकिन निराकरण एक का भी नहीं हुआ।
राज्य महिला आयोग के एक कर्मचारी ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि प्रति महीने लगभग तीन सौ शिकायतें आयोग को मिलती हैं। साल भर में करीब तीन हजार शिकायतें प्राप्त होती हैं। कुछ शिकायतें आयोग से संबंधित नहीं होती, उन्हें निरस्त कर दिया जाता है। बाकी आवेदनों पर संबंधित विभागों से जांच प्रतिवेदन मंगाकर फाइल बनाकर रख लिया जाता है। इनमें से कुछ मामलों में जांच प्रतिवेदन उपरांत ही निराकरण हो जाता है। बचे हुए प्रकरणों में अध्यक्ष/सदस्य की नियुक्ति के बाद ही कार्यवाही की जा सकती है। यही स्थिति राज्य अनुसूचित जाति/जनजाति आयोगों की है। इन आयोगों में भी शिकायतों की पेंडेंसी हजारों में है।
प्रशासन की अन्य एजेंसियों से जब शिकायतकर्ता को निष्पक्ष कार्यवाही नजर नहीं आती। तब आयोग में शिकायत की जा सकती है। आयोग की ओर से संबंधित विभाग से जांच प्रतिवेदन मांगा जाता है। विभाग के द्वारा आयोग को प्रेषित जांच से जब शिकायतकर्ता संतुष्ट नहीं होता तब आयोग की पीठ में मामले की सुनवाई होती है। आयोग को सिविल न्यायालय की शक्तियां प्राप्त हैं। सम्बंधित अधिकारियों की पेशी लगाकर सुनवाई करता है। मामले का निराकरण कर शासन को अनुशंसा भेजी जाती है, लेकिन आयोगों में अध्यक्ष/सदस्यों के नहीं होने से प्रकरणों में इस तरह की कार्यवाही नहीं की जा सकती।
हाईकोर्ट में लंबित है मामला
अनुसूचित जाति आयोग में मार्च 2023 में सदस्य प्रदीप अहिरवार का कार्यकाल समाप्त हुआ है। वहीं महिला आयोग में शोभा ओझा को मार्च 2020 में तत्कालीन कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने नियुक्त किया था। इसी के साथ आयोग के सात सदस्य और एससी/एसटी आयोग में अध्यक्ष और दो सदस्यों की नियुक्ति की गई थी। सरकार गिरते ही तत्कालीन शिवराज सरकार ने नियुक्ति के आदेश निरस्त किए थे।
नियुक्त अध्यक्ष और सदस्यों ने सरकार के फैसलों को न्यायालय में चुनौती दी थी। इस मामले में जबलपुर हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले पर स्टे दिया था। स्टे के बाद कुछ सदस्य काम करते रहे तो कुछ हाईकोर्ट के फैसले के आने तक रुके। इस कारण आयोगों के तीन वर्षीय कार्यकाल में भी शिकायतों के खास निराकरण नहीं हुए।
द मूकनायक से राज्य अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व सदस्य प्रदीप अहिरवार ने बताया कि साल 2020 में आयोगों में नियुक्ति के बाद बीजेपी सरकार ने नियुक्ति मामले को कैबिनेट में रखकर निरस्त किया था। यह संवैधानिक नियुक्तियां होती हैं। कोर्ट ने सरकार के फैसले पर तुरन्त स्टे दिया था। फिलहाल सरकार ने नई नियुक्तियां नहीं की है। प्रदीप अहिरवार ने कहा - "सरकार ही जवाब दे एक साल से आयोगों में नियुक्तियां क्यों नहीं की गई?"
महिला आयोग में इस समय लगभग 27 हजार मामले पेंडिंग पड़े है। राज्य महिला आयोग की पूर्व सदस्य संगीता शर्मा ने बताया कि जब साल 2020 में आयोग गठित हुआ तभी करीब 10 हजार मामले पेंडिंग थे। अब यह मामले और भी बढ़ गए होंगे।
शर्मा ने आगे कहा- "सरकार महिलाओं के अधिकार की बात तो करती है पर उन्हें न्याय मिले इसके लिए गंभीर नहीं है। आयोगों के गठन के बाद शिवराज सरकार ने नियुक्तियां निरस्त कर विवाद बना दिया. जिसका परिणाम यह हुआ कि आयोगों में मामलों की पेंडेंसी बढ़ती रही."
आयोग संवैधानिक संस्थाए हैं, जिनमें राज्यपाल के द्वारा नियुक्तियां की जाती है। आयोग को जब शिकायत मिलती है तो वह सम्बंधित विभाग से प्रतिवेदन मंगा कर कार्रवाई शुरू करता है। अध्यक्ष या सदस्य होंगे तो बैंच लगाकर निराकरण किया जाता है। जब आयोगों का गठन नहीं है तो उन शिकायतों को कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक को अग्रेषित कर दिया जाता है।
आयोगों में प्रकरणों के पेंडेसी बढ़ती जा रही है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार महिला और एससी/एसटी आयोगों में करीब 50 हजार मामले पेंडिंग है। इन प्रकरणों के निराकरण आयोग गठित होने के बाद किए जा सकते है। लेकिन फिलहाल यह तय नहीं है कि आयोगों में नियुक्तियां कब होंगी।
महिला आयोग में ईमेल और पत्राचार के साथ टोल फ्री नम्बर पर भी शिकायत की जा सकती है। इसके लिए आयोग ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर टोल फ्री नम्बर 1800-233-6112 जारी किया है। लेकिन इस नम्बर पर कॉल करने पर यह सेवा में उपलब्ध नहीं होना बताया गया।
मध्य प्रदेश राज्य अनुसूचित जाति आयोग अधिनियम क्रमांक-25 वर्ष-1995 के अन्तर्गत गठित किया गया था। आयोग में एक अध्यक्ष एवं दो अशासकीय सदस्य होते हैं। आयुक्त, अनुसूचित जाति विकास आयोग के पदेन सदस्य हैं। अनुसूचित जाति के सदस्यों को संविधान के अधीन तथा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन दिए गए संरक्षण के लिए हित प्रहरी आयोग के रूप में कार्य करते है।
दिनांक 24 मई, 1995 के राज्यपाल की अनुमति से मध्यप्रदेश राजपत्र दिनांक 29 जून, 1995 को प्रथम बार प्रकाशित अधिसूचना में राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन हुआ। उससे संस्तुति या उसके आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिये अधिनियम भी प्रकाशित किए गए। वहीं मध्यप्रदेश राज्य महिला आयोग का प्रथम गठन राज्य सरकार द्वारा दिनांक 23 मार्च 1998 को मध्यप्रदेश राज्य महिला आयोग अधिनियम 1995 (क्र0 20 सन 1996) की धारा 3 के तहत किया गया था। अधिनियम के अंतर्गत एक अध्यक्ष और सात सदस्यों की नियुक्ति की जा सकती है।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.