भोपाल। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में एक पुलिस अधिकारी ने पहले फर्जी जाति प्रमाण-पत्र बनवाया फिर उसी के जरिए पुलिस की नौकरी भी हासिल की। जब फर्जी प्रमाण-पत्र की शिकायत की गई तब जांच में मामले का खुलासा हो गया। विदिशा (Vidisha) जिले के आनंदपुर पुलिस थाने में फर्जी जाति प्रमाण-पत्र बनवाने के मामले में ग्वालियर के एडिशनल एसपी (Gwalior additional Supretendent of police) अमृतलाल मीणा के खिलाफ धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज किया गया है।
अमृतलाल मीणा ने विदिशा जिले की लटेरी तहसील से 2003 के बाद एसटी का प्रमाण-पत्र बनवाकर नौकरी हासिल की थी, जबकि मीणा जाति ओबीसी के अंतर्गत आती है। 2003 से पहले मीणा जाति को सिरोंज, लटेरी तहसील क्षेत्र में एसटी का दर्जा प्राप्त था। इसी का फायदा उठाकर उन्होंने जालसाजी कर अनुसूचित जन जाति का प्रमाण-पत्र बनवा लिया।
मीणा के द्वारा शासकीय सेवा में दिए गए दस्तावेजों में फर्जी जाति प्रमाण-पत्र लगाया गया था, जिसकी शिकायत के बाद राज्य छानबीन समिति ने पूरे मामले की पड़ताल की और अमृतलाल के सर्टिफिकेट को फर्जी पाया। विदिशा के एएसपी समीर यादव ने बताया कि हाल ही में हाईकोर्ट जबलपुर ने इस मामले में अमृतलाल को दिए गए स्टे आर्डर को निरस्त कर दिया था।
इसके बाद लटेरी तहसील के आनंदपुर थाने में उनके खिलाफ 7 दिसंबर 2023 को धोखाधड़ी करने एवं दस्तावेजों को छिपाने का मामला दर्ज किया। अमृतलाल मूलतः चाचौड़ा जिला गुना के निवासी हैं, उन्होंने 2003 के बाद लटेरी तहसील कार्यालय के कर्मचारियों की मिलीभगत से अनुसूचित जनजाति वर्ग का फर्जी सर्टिफिकेट बनवा लिया था।
पुलिस ने मीणा के खिलाफ फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाने और उसका उपयोग करने का मामला दर्ज किया है। विदिशा के एएसपी ने बताया कि आनंदपुर थाने में एडिशनल एसपी अमृतलाल मीणा पर धारा 420, 467, 468, 471 आईपीसी के तहत अमला दर्ज किया गया है। फिलहाल उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई है।
शासकीय सेवा के लिए फर्जी जाति प्रमाण-पत्र का उपयोग एवं नौकरी हासिल करने वाले शासकीय सेवकों के लिए राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 27 अगस्त 2007 को नियम-निर्देशों के संबंध में प्रदेश के समस्त कलेक्टरों को पत्र भेजे गए थे।
सामान्य प्रशासन के नियमानुसार जाति प्रमाण पत्र की शिकायतों पर राज्य छानबीन समिति द्वारा जांच की जाती है। जांच समिति या प्राधिकृत अधिकारी द्वारा जांच में यह पाया जाता है कि जाति प्रमाण पत्र आवेदक द्वारा गलत तथ्यों के आधार पर प्राप्त किया गया है तो आवेदक को जाति प्रमाण-पत्र के आधार पर ली गई सुविधाओं से तो वंचित होना पड़ेगा। इसके साथ ही उसके द्वारा जो लाभ प्राप्त किया गया है उसकी भरपाई भी करना पड़ेगी।
यदि उसने शैक्षणिक संस्थाओं, मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि में प्रवेश लिया है तो उसका प्रवेश रद्द किया जाएगा। शासन द्वारा उस पर किए गए खर्च की क्षतिपूर्ति भी उसे करनी होगी तथा संबंधित के विरूद्ध दण्डात्मक कार्यवाही की जाएगी। जांचकर्ता अधिकारी द्वारा असावधानीपूर्वक गलत जाति प्रमाण-पत्र जारी किया गया है तो उस प्राधिकृत अधिकारी के विरूद्ध अनुशासनात्मक एवं विभिन्न कानूनों के अन्तर्गत दण्डात्मक कार्यवाही की जाएगी।
सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश परिपत्र दिनांक 1 अगस्त, 1996 द्वारा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्ग के जाति प्रमाण-पत्रों के मामलों की छानबीन करने के लिये राज्य स्तर पर एक उच्च स्तरीय छानबीन समिति गठित करने का प्रावधान किया गया था, साथ ही ये भी निर्देश प्रसारित किए गए थे कि छानबीन समिति द्वारा जाति प्रमाण-पत्र फर्जी एवं गलत पाए गए हैं तो ऐसी स्थिति में संबंधित व्यक्ति के विरूद्ध विभागाध्यक्ष, संभागीय आयुक्त, कलेक्टर द्वारा आपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाएगा तथा उसके विरूद्ध अनुशासनात्मक एवं विभिन्न अधिनियमों के तहत दण्डात्मक कार्यवाही की जाएगी।
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