झारखंड। झारखंड के पलामू जिले से महाराष्ट्र के औरंगाबाद में मजदूरी का काम दिलाने के लिए एक ठेकदार मजदूर को उसके घर से ले गया। आरोप है कि ठेकेदार मजदूर को मनमाड स्टेशन पर छोड़कर फरार हो गया। मजदूर के पास एक भी पैसा नहीं था। इस कारण वह भूखे-प्यासे ही इधर-उधर भटकता रहा। दो दिन बाद मजदूर के परिवार को एक अज्ञात नंबर से फोन गया और मजदूर के स्टेशन पर भटकने की जानकारी दी। फोन करने वाले व्यक्ति ने मदद की बात कही और रूपये ऐंठ लिए। जिसके बाद फोन करने वाले का नंबर बंद हो गया। देर शाम उसी नंबर से दोबारा फोन आया। इस बार ज्यादा रूपये की मांग की। इस पर परिवार को शक हुआ तो एफआईआर दर्ज कराने घर से निकल गए।
इधर मजदूर किसी तरह वह बिहार के सासाराम जिले पहुंचा। सासाराम में कुछ परिचितों ने मजदूर को देखा तो परिवार को इसकी जानकारी दी। हालांकि, परिजन जब मजदूर के पास पहुंचे तो उसकी मौत हो चुकी थी। परिजन मजदूर की लाश को सासाराम से लेकर पलामू पहुंचे और अंतिम संस्कार कर दिया। इस मामले को लेकर परिजनों ने पुलिस से लिखित शिकायत की। परिजनों का आरोप है कि पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।
पूरा मामला झारखंड के पलामू जिले के हरिहरगंज थाना क्षेत्र के कटैया गांव का है। इस गांव में उर्मिला देवी अपने परिवार के साथ रहती हैं। उर्मिला देवी ने द मूकनायक को बताया कि, "बीते 5 मई को महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले का रहने वाला ठेकेदार बालेंदु राम मेरे पति बिसुनदेव राम को ट्रेन से ले गया था। 7 मई की रात मेरे बेटे लवकुश के मोबाइल पर फोन आया। फोन करने वाला कह रहा था कि आपके पिताजी के पास कोई पैसा नहीं है। वह मनमाड स्टेशन पर भूखे-प्यासे हैं। व्यक्ति का कहना था कि वह कटिहार जिले का रहने वाला है और उन्हें लेकर दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन तक आ रहा है। टिकट बनवाने के लिए 820 रूपये की आवश्यकता है। हमने भरोसा करके फोन करने वाले वाले व्यक्ति द्वारा बताये गए एक दूसरे नंबर पर पैसा भेज दिया ताकि वह टिकट बनवा सके।"
बेटा लवकुश बताता है कि, "8 मई को मैं अपनी मां के साथ दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन पहुंच गया। हम लोग स्टेशन पर उन दोनों का इंतजार करते रहे लेकिन कोई नहीं आया। हमने उन दोनों नंबर पर फोन किया, जिस पर पैसे भेजे थे और जिससे फोन आया था लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया। शाम को लगभग छह बजे फोन उठा। उसका कहना था कि मेरे पिता के पास जनरल टिकट था लेकिन वह एसी में बैठे हुए थे और टीटी ने पकड़ लिया है, इसलिए एक हजार पांच सौ रूपये फाईन देना होगा। मुझे इस बार कुछ संदेह हुआ। मैंने पिता से बात कराने के लिए कहा तो उसने फोन काट दिया।"
लवकुश बताते हैं, "थक हार कर मैं और मेरी मां अपने पिता को खोजने के बाद एक गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करवाने महाराष्ट्र के मनमाड रवाना हो गए। हम दोनों भुसावल तक ही पहुंचे थे। कि हमें जानकारी हुई मेरे पिता भूखे-प्यासे किसी तरह बिहार के सासाराम पहुंच गए हैं। मेरे परिचितों ने मोबाइल पर उनकी फोटो भी भेजी। सासाराम में मेरी बुआ का घर है मैंने उन्हें फोन किया। जिसके बाद वह उन्हें अपने साथ ले गई।"
हम किसी तरह कई स्टेशनों पर ट्रेने बदलकर सासाराम जाने के रास्ते में ही थे कि हमें जानकरी मिली कि मेरे पिता की मौत हो गई है। जिसके बाद हम उनके शव को बर्फ में रखकर अपने पैतृक आवास पलामू पहुंचे। और 14 मई को उनका अंतिम संस्कार कर दिया।
बिसुनदेव के मनमाड़ स्टेशन से लापता होने की जानकारी मिलते ही समाजसेवी प्रीतम भाटिया ने बीते 10 मई को ट्विटर पर फोटो सहित अपील करते हुए रेलवे पुलिस के अलावा मुख्यमंत्री, श्रम मंत्री, महाराष्ट्र और झारखंड पुलिस को टैग कर सूचित किया था। इसके बावजूद इस गंभीर मामले पर किसी भी विभाग या व्यक्ति विशेष ने संज्ञान नहीं लिया।
बदनसीबी और भूखमरी ने बिसुनदेव की जान तो ले ही ली, लेकिन उसके परिजनों ने भी काफी कष्ट उठाये। झारखंड से महाराष्ट्र तक भटकते एक परिवार को अंततः लाश ही देखने को मिली। उर्मिला ने इस पूरे मामले में 17 मई को पुलिस को लिखित शिकायत की। आरोप है कि हरिहरगंज थाना में प्राथमिकी दर्ज करने कि जगह पुलिस ने उन्हें सुबह से शाम तक बैठाये रखा। आरोप है कि थाना प्रभारी ने दूसरे राज्य का मामला बताकर पल्ला झाड़ लिया।
द मूकनायक ने इस मामले में आरोपी ठेकेदार से संपर्क करने की कोशिश की। ठेकेदार का मोबाइल स्विच ऑफ़ बता रहा था। वहीं इस मालमे में द मूकनायक ने थाना प्रभारी हरिहरगंज और एसपी पलामू से संपर्क करने की कोशिश की। खबर लिखे जाने तक उनका कोई उत्तर नहीं मिल सका। अधिकारियों का पक्ष आने पर खबर पुनः अपडेट की जायेगी।
रांची से हाईकोर्ट के अधिवक्ता इस मामले में द मूकनायक को बताते हैं कि, "इस मामले में आईटी एक्ट और मानव तस्करी के लिए विभिन्न धाराओं के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए।" उन्होने बताया है कि, बिसुनदेव का मामला धारा 370/420/406/304/379 भादवि और 66 आईटी एक्ट के तहत दर्ज होना चाहिए था जो कि संज्ञेय अपराध के साथ ही गैर-जमानतीय भी है। एक दलित महिला को प्राथमिकी के लिए घंटों थाना में बैठाकर इंकार कर देने पर सम्बंधित पुलिस पदाधिकारी पर भी एसटी एससी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है।
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