दिल्ली। भारत में घरेलू कामगारों को कम वेतन दिए जाने, उनसे अधिक काम करवाने और नियोक्ताओं द्वारा उनके साथ दुर्व्यवहार, शोषण और हिंसा के कई मामले और रिपोर्ट हर दिन सामने आते रहते हैं। देश में लाखों घरेलू वर्कर्स इन खराब परिस्थितियों में काम करने को मजबूर हैं। उन्हें सबसे बुनियादी श्रम अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। कोविड-19 महामारी के दौरान, कई घरेलू वर्कर्स ने अपनी नौकरियां खो दीं, और कई वर्कर्स महीनों तक अपमानजनक नियोक्ताओं के साथ फंसे रहे। घरेलू वर्कर्स के साथ दुर्व्यवहार के मामले दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर और चेन्नई जैसे महानगरीय शहरों में ज्यादा देखे जाते हैं।
पिछले हफ्ते दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में एक 25 वर्षीय महिला हाउस हेल्प पर 2 लाख रुपये और 5 तोला सोना चोरी करने का आरोप और हिंसा का मामला सामने आया। वह महिला जिस बिल्डिंग में काम करती थीं उसमें कई सीसीटीवी कैमरे भी लगे हुए हैं, लेकिन आरोप लगाने वाले व्यक्ति ने सीसीटीवी फुटेज की जांच करने से मना कर दिया।
आरोप लगाने वाले व्यक्ति यानी नियोक्ता ने पीसीआर वैन को बुलाया और बिना किसी सूचना के तलाशी लेने के लिए वर्कर के घर चला गया। वहीं, नियोक्ता ने महिला को घर में रोजाना 12 घंटे काम करने के लिए रखा गया था। जब भी घरवाले बाहर जाते थे तो उसे अंदर बंद कर बाहर से ताला लगा दिया जाता था।
इस मामले में विस्तार से बताते हुए संग्रामी घरेलू-कामगार संघ की कार्यकर्ता श्रेया ने हमें बताया कि जिस दिन महिला पर चोरी का आरोप लगाया गया, उस दिन वह काम करने के बाद बिना बैग या पर्स के घर से निकल गई थीं। श्रेया कहतीं हैं, बिना किसी बैग या पर्स के इतनी बड़ी मात्रा में नकदी और आभूषण कैसे छिपाए जा सकते हैं?
वह आगे बताती हैं, "नियोक्ता ने जांच के दौरान पानी के डिब्बे तक खाली कर दिए, जूतों के अंदर की जाँच की और चावल और दाल की बोरियाँ भी खंगालीं। ये सब उन्होंने पुलिस के सामने किया। जब कुछ भी बरामद नहीं हुआ तो महिला को पुलिस स्टेशन की जगह पुलिस बूथ ले जाया गया और अपराध स्वीकार करने के लिए डराया-धमकाया गया।"
यह खबर सुनकर घरेलू वर्कर्स पुलिस बूथ के बाहर इकट्ठा हो गए और उन सबूतों को दिखाने की मांग करने लगे जिनके आधार पर पुलिस ने महिला वर्कर को हिरासत में लिया था। वहां जमा हुए घरेलू वर्कर्स के दबाव और सबूतों के अभाव में महिला को जाने दिया गया लेकिन अगले ही दिन पुलिस फिर से महिला के घर आई और महिला व उसके पति दोनों को हिरासत में ले लिया। इस मामले में पुलिस पर भी दंपति को प्रताड़ित करने का आरोप लगाया गया है। कहा जा रहा है कि बिना किसी शिकायत या सबूत के उन्हें पुलिस स्टेशन में पीटा गया।
महिला वर्कर पर इस तरह की कार्रवाई का विरोध करते हुए लगभग सौ घरेलू कर्मचारियों और संग्रामी घरेलू-कामगार संघ ने पुलिस के साथ-साथ RWA (रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन) के सामने एक प्रतिनिधिमंडल पेश किया। इसके बाद RWA अध्यक्ष को कार्यकर्ताओं से मिलना पड़ा और यह स्वीकार करना पड़ा कि कार्यकर्ता पर शारीरिक हमला करना गलत है।
घरेलू वर्कर्स ने इस मामले पर एकता दिखाते हुए अपराधीकरण की इस संस्कृति को समाप्त करने की मांग की। श्रमिक यह कहते हुए एक साथ खड़े हुए कि इस तरह से घरेलू वर्कर्स को परेशान, अपमानित या हिरासत में नहीं लिया जा सकता है। वर्कर्स इस तरह के अपमान को सहन नहीं करेंगे।
हमसे बात करते हुए वसंतकुंज में काम करने वाली परवीना बताती हैं, "एक बार मैं बहुत बीमार थी जिसकी वजह से मैं दो दिन काम पर नहीं जा पाई और जब मैं तीसरे दिन काम पर गई तो हमें भगा दिया। वे कहती हैं, मेहनत के हिसाब से हमें पैसे नहीं देते हैं। अगर घर में कुछ भी हो जाए, खो जाए तो बिना पूछताछ के सीधे हमारे ऊपर इल्जाम लगा देते हैं। वे कहती हैं, अगर हमें चोरी ही करना होता तो फिर इतना मेहनत क्यों करते…चोरी ही कर लेते। हम सुबह से आकर यहां काम करते हैं, मेहनत करते हैं लेकिन इन्हें हमारे ऊपर विश्वास नहीं होता है।"
संग्रामी घरेलू-कामगार संघ की कार्यकर्ता श्रेया 'द मूकनायक' से बात करते हुए कहती हैं, "भारत में घरेलू वर्कर्स को लीगल और सोशल प्रोटेक्शन बहुत कम है। यहां बिना किसी सबूत के उनके ऊपर आरोप लगा दिया जाता है। भारत में डोमेस्टिक वर्कर्स के लिए अलग से कोई कानून नहीं है, न ही उन्हें कोई प्रोटेक्शन मिल रहा है।"
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