जयपुर। बिना मशीनों के सीवर टैंकों की सफाई कानूनन प्रतिबंधित है। इसके बावजूद प्रदेश में सीवर टैंकों में सफाई कर्मियों को ही सफाई के लिए बुलाया जाता है जिससे कई अकाल मौत हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बिना मशीनों के इंसानों को सीवर टैंको में उतार कर सफाई करवाने पर रोक लगा रखी है, लेकिन राजस्थान में इसकी पालना नहीं हो रही। नतीजतन मौत के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं।
दो दिन पूर्व राजस्थान के उदयपुर जिले में एक होटल के सीवरटैंक की सफाई करते हुए दम घुुटने से दो सफाईकर्मियों की अकाल मौत हो गई। यह समस्या अकेले उदयपुर शहर की नहीं है। राजस्थान के प्रत्येक जिले से आए दिन इस प्रकार की खबरें आती हैं जहां सीवर साफ करते मजदूरों की मौत रिपोर्ट होती हैं।
गंदगी साफ करते मजदूरों की मौत पर मुआवजा देकर मामला दबा दिया जाता है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की कड़ाई से पालना कराने पर कोई ध्यान नहीं देता। यह गंभीर विचारणीय प्रश्न है कि आखिर कब तब लोगों का मल साफ करते हुए सफाई कर्मचारी अपनी जान गंवाते रहेंगे?
हाल ही में उदयपुर में एक होटल में सीवरेज टैंक की सफाई करते हुए दो मजदूरों की मौत को जिला प्रशासन द्वारा गंभीरता से लिया गया। कार्यवाहक जिला कलक्टर ओपी बुनकर ने शनिवार को जारी आदेश में जिले में हाथों से सीवरेज टैंक की सफाई पर कड़ाई से प्रतिबंध लगाते हुए निजी संस्थानों और भवनों में सीवरेज टैंक की सफाई के लिए नगर निकायों के जरिये कार्य करवाने को कहा है। अब मशीनों द्वारा ही सीवरेज टैंक खाली करवाये जा सकेंगे।
आपकों बता दें कि सीवर टेंक में सफाई कर्मियों से सफाई करवाना माननीय उच्चतम न्यायालय एंव कानून प्रतिबंधित है। इसके बावजूद अकेले उदयपुर जिले में पिछले सात वर्षों में हुई पांच घटनाओं में दस से अधिक सफाई कर्मियों की अकाल मृत्यू हो चुकी है। अत: मानव जीवन की क्षति को रोकने हेतु एवं कानून की पालना कड़ाई से करवाने की दिशा में उदयपुर प्रशासन ने सख्ती दिखाई है।
आदेश के अनुसार उदयपुर जिले में कोई भी राजकीय, निजी संस्थान, व्यवसायिक, औद्योगिक प्रतिष्ठान, होटल्स, आवासीय संस्थान आदि में जहां भी सवीरेज टैंक स्थित है। उन सीवरेज टेेंक की सफाई सफाईकर्मी से बिना मशीन के नहीं करवाएंगे। जिन व्यक्तियों को राजकीय, निजी संस्थान, व्यवसायिक, औद्योगिक प्रतिष्ठान, होटल्स, आवासीय संस्थान आदि में सीवरेज टेंक स्थित है खाली करवाना है अथवा सफाई करवाना है। ऐसे संस्थान या व्यक्ति स्थानीय निकाय, नगरनिगम, नगरपालिका से सम्पर्क करेंगे तथा निर्धारित शुल्क चुका कर मशीन से सीवरेज टेंक खाली या साफ करवांएगे।
कलक्टर ने कहा कि सभी आमजन को यह सूचित किया जाता है कि इन निर्देशों की पालना कड़ाई से सुनिश्चित करेंगे। अन्यथा भारतीय दंड संहिता तथा द प्रोहिबिशन ऑफ एम्पलायमेंट एज मैन्यूल स्केवेंजर एण्ड देयर रिहेबिलीटेशन एक्ट २०१३ के प्रावधानों के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी।
उदयपुर शहर में अंबामाता थाना क्षेत्र के होटल में सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हादसे में महेन्द्र छापरवाल निवासी खांजीपीर और विजय कल्याणा निवासी किशनपोल बीड़ा की दर्दनाक मौत हुई थी। जबकि दो साथियों की हालत नाजुक बताई गई है। टैंक साफ करते दो सफाई कर्मियों की मौत के दूसरे दिन शनिवार को वाल्मिकी समाज ने लगभग ६ घंटे तक जिला कलक्टर कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया था।
अखिल भारतीय सफाई मजबूर कांग्रेस नेता बाबूलाल घावरी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार दोनों मृतकों के आश्रितों को दस-दस लाख रुपए देने, आश्रित परिवारों के एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी की प्रक्रिया शुरू करने की मांग पर सहमति के बाद शनिवार शाम को दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया गया।
अक्टूबर 2022 में एक अस्पताल के सीवरेज टैंक की सफाई करते हुए चार लोगों की मौत से अभी भी उदयपुर वासी सिहर उठते हैं।
इसी तरह अप्रैल 2017 में उदयपुर की हीराबाग कॉलोनी में एक घर में बने करीब छह फीट गहरे सेप्टिक टैंक की सफाई करने उतरे चार लोगों की दम घुटने से मौत हो हुई थी। मृतकों में मकान मालिक का बेटा भी शामिल था। जानकारी के अनुसार इस दिन हीराबाग कॉलोनी में रहने वाले श्यामलाल चित्तौड़ा के घर में सेप्टिक टैंक को खाली कराकर सफाई करने के लिए चार मजदूरों को बुलाया था। एक मजूदर सेप्टिक टैंक के अंदर उतरा, उसके कुछ देर बाद उसका दम घुटने लगा तो उसने बचाने के लिए टैंक के बाहर बैठे अन्य मजदूरों को अंदर बुलाया। जैसे ही एक और मजदूर टैंक में उतरा वह भी बेहोश होने लगा। ऐसे में एक—एक करके तीन मजदूर टैंक के अंदर चले गए। टैंक में से आवाजें सुनकर श्यामलाल का बेटा विपिन भी दौड़ा और एक होमगार्ड मोहम्मद हुसैन के साथ मजदूरों को बचाने के लिए टैंक में उतर गया, लेकिन वह भी बेहोश गया।
मई 2023 में राजस्थान के ही पाली शहर में एक मैरिज गार्डन के सीवर टैंक की सफाई के दौरान जहरीली गैस की चपेट में आने से तीन युवकों की मौत हो गई थी। इनमें विशाल वाल्मिकी, भरत वाल्मिकी, करण वाल्मिकी की मौके पर ही मौत हो गई थी। मार्च २०२२ में बीकानेर जिले में एक कारखाने के सेप्टिक टैंक में सफाई के लिए उतरे लालचंद, चारूलाल नायक, कालूराम वाल्मिकी और किशन बिहारी की मौत हो गई थी।
पिछले महिने जून में कोटा शहर में बिना उपकरण के 25 फिट गहरे सीवर चैम्बर सफाई करने उतरे चार मजदूरों की मौत ने भी सरकारी सिस्टम की पाल खोल कर रखदी थी, लेकिन सुरक्षा को लेकर अभी तक कोई कड़े कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
समतामार्ग.इन लिखता है कि सीवर सफाई के दौरान सफाईकर्मी के पास ऑक्सीजन सिलेंडर व बॉडी प्रोटेक्टर होने चाहिए। बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर में उतरना मौत को बुलावा देना है। सफाई कर्मी को बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवरेज टैंक में उतारने वाला ही उनकी मौत (हत्या) का जिम्मेदार होता है। एमएस (मैनुअल स्कवेंजर) एक्ट 2013 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी को सीवर में घुसने के लिए बाध्य करता है, तो उसके लिए जेल और जुर्माने दोनों का प्रावधान है। यह दुख:द है कि प्रशासन के ढुलमुल रवैये के कारण इन हत्याओं के जिम्मेदार व्यक्ति को सजा नहीं मिलती। पुलिस लापरवाही की धारा 304ए के तहत केस दर्ज करती है। बाद में मामला रफा-दफा कर दिया जाता है। इस तरह की मौतों के प्रति सरकार खुद लापरवाह है। सरकार को पता है कि एमएस एक्ट 2013 और सुप्रीम कोर्ट के 27 मार्च 2014 के आदेश के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में नहीं उतारा जा सकता। इमरजेंसी हालात में भी बिना सुरक्षा उपकरण के किसी को सीवर में उतारना दंडनीय अपराध है। जहां तक संभव हो सीवर के अंदर किसी भी कार्य के लिए मशीनों की सहायता ली जानी चाहिए। जब तक प्रशासन इन मौतों को गंभीरता से नहीं लेगा, दोषी लोगों को कड़ी सजा नहीं देगा तब तक भविष्य में भी इस तरह की वारदात होती रहेंगी। अतीत में भी इस तरह की घटनांए हुई हैं।
देश में स्वच्छता मिशन का शोर है, लेकिन इसका उद्देश्य केवल शौचालय निर्माण करने तक ही सीमित होकर रह गया है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय निर्माण पर हजारों करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए, लेकिन सीवरकर्मियों की सुरक्षा पर फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं हुई। 17 सितंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मैला ढोने और बिना किसी यंत्र के सीवेज चैंबर की सफाई के मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि दुनिया में ऐसा कोई दूसरा देश नहीं है, जो लोगों को मरने के लिए गैस चैंबर में भेजता हो।
कोर्ट ने कहा था कि आजादी के 70 वर्ष बाद भी जातीय शोषण व्यवस्था कायम है। आखिर सफाईकर्मियों को मास्क और ऑक्सीजन सिलैंडर जैसे सुरक्षा यंत्र क्यों नहीं दिए जा रहे? यही नहीं, देश में 6 दिसंबर, 2013 से हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम लागू होने के बाद हाथ से सीवर और सैप्टिक टैंक की सफाई प्रतिबंधित है। कानून कहता है कि सभी स्थानीय प्राधिकरणों को हाथ से मैला उठाने की व्यवस्था खत्म करने के लिए सीवर और सैप्टिक टैंकों की सफाई हेतु आधुनिक तकनीकें अपनानी होंगी। लेकिन दुर्भाग्य कहा जाएगा कि कानून बनने के बाद कई राज्यों में मैनुअल स्कैवेंजर्स की संख्या बढ़ गयी है।
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