दिल्ली: 12 से 3 बजे के बीच छुट्टी केवल कागजी: जानलेवा तपन में भी काम करने को मजबूर हैं मजदूर

दिल्ली में बढ़ते तापमान को देखते हुए एडवाइजरी जारी की गई है कि मजदूरों के 12 से लेकर 3 तक काम पर रोक रहेगी, जबकि तमाम कारखानों व फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूर अभी भी पूरे घंटे कार्य कर रहे हैं.
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सांकेतिक तस्वीर फोटो साभार- Shutterstock
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नई दिल्ली: देश की राजधानी में गर्मी ने सारे रिकॉर्ड तो डाले हैं। लोग अपने आप को गर्मी से बचने के लिए AC, कूलर का सहारा ले रहे हैं। वहीं दूसरी ओर वह मजदूर वर्ग है जो खुले आसमान के नीचे इस भीषण गर्मी में काम कर रहा है। राम मनोहर लोहिया अस्पताल में दो दिन पहले भर्ती हुए युवक की मौत हो गई है। उसे हीट स्ट्रोक यूनिट से वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया था। लेकिन, बुधवार देर शाम उसकी हालत खराब हो गई और उसको बचाया नहीं जा सका।

कोई हेल्पलाइन नंबर नहीं

मजदूरों के हित करने के लिए कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता थानेश्वर द मूकनायक को बताते हैं कि, गर्मी को लेकर हमने पत्र लिखा था। उसके नतीजे के तौर पर यह एडवाइजरी जारी की गई है। सरकार से हमारे पास भी निर्देश आए हैं। हमने हाल ही में एक पत्र लिखा है। जिसमें हेल्पलाइन नंबर जारी करने की बात लिखी गई है। ताकि किसी भी स्थिति में कोई भी मजदूर इस हेल्पलाइन नंबर से मदद ले सके। हमने अलग-अलग कई टीम बनाई है। हम इस गर्मी में यह देख रहे हैं कि कहां-कहां मजदूरों को पानी मिल रहा है। कहां पर दोपहर में मजदूर काम कर रहे हैं। क्योंकि सरकार ने बोला है कि 12 से लेकर 3 तक काम पर रोक लगी रहेगी। काम चल रहा है या नहीं चल रहा है। यह सब देखने के लिए दिल्ली में हमारी टीम सर्वे करेगी."

"अभी राम लोहिया अस्पताल में जिस मजदूर की मौत हुई है। वह एक फैक्ट्री मजदूर थे. और भी बहुत सारे मजदूर हैं जो अभी अस्पतालों में भर्ती हैं। हमने यह भी मांग की है कि किसी भी मजदूर की मौत के बाद उनको मुआवजा दिया जाए। अगर कोई मजदूर हीट स्ट्रोक से प्रभावित है तो 10 हजार की मदद की जाए, यदि मौत हो जाती है तो 5 लाख का मुवाअजा मिलना चाहिए। लेकिन यह जो एडवाइजरी जारी की गई है उसके बारे में पेपरो में ही है। अब तक जारी कुछ नहीं हुआ," थानेश्वर ने कहा.

आगे वह बताते हैं कि "सरकार ने कोई टीम नहीं बनाई जो इस बात की देखरेख कर सके की 12 से लेकर 3 बजे तक मजदूर काम पर हैं, या नहीं है। तो कैसे आप उनकी सुरक्षा करेंगे। इन्होंने कोई अधिकारी भी नहीं बनाया है जिसको शिकायत की जा सके।"

एक मजदूर संगठन और आंगनबाड़ी से जुड़ी वृषाली बताती है कि, "यह कागजी तौर पर बोल दिया गया है। हकीकत में देखे तो ऐसा ज्यादा नहीं हो पाता। वजीराबाद में फैक्ट्री में स्टील पिघलाया जाता है। वहां पर यह इतना हद तक लागू नहीं हो सकता। यह तो मुश्किल ही है। और पैसे भी मिले ऐसा भी नहीं हो सकता। जमीनी तौर पर ऐसा नहीं हो रहा है।"

बवाना की एक फैक्ट्री में मजदूर नूर मोहम्मद जो अपने परिवार के साथ बवाना में रहते हैं, द मूकनायक से बताते हैं कि, "मेरे परिवार में दो बच्चे हैं- एक लड़का, एक लड़की... और पत्नी मजदूरी करती हैं। हम दोनों मिलकर अपने घर का खर्च चलाते हैं। लेकिन वेतन इतना नहीं होता जिसमें घर का खर्च अच्छे से चल सके। वह भी उस समय जब महंगाई इतनी ऊपरी दौर में है। मैं पंखे के डिजाइन बनाने वाली फैक्ट्री में काम करता हूं। गर्मी की वजह से कुछ घंटे की छुट्टी के बारे में मुझे पता तो है। लेकिन हमें यह छुट्टी नहीं मिलती। क्योंकि मालिक हमें यह छुट्टी दे ही नहीं सकते। मेरे साथ 60 मजदूर हैं। और कोई भी आवाज नहीं उठाता। बोलते हैं तो कोई सुनता ही नहीं है। गर्मी इतनी होती है कि पसीने में बुरी हालत हो जाती है। मैं खुद इस गर्मी में बीमार हो चुका हूं। चार दिन से तबीयत खराब है, और मैं घर पर हूं। हमारे बारे में कोई नहीं सोचता।"

भवन निर्माण व राजगीर का काम करने वाले रामजी अपन दो बच्चों के सतग रहते हैं। पत्नी का कुछ साल पहले देहांत हो चुका है। उन्होंने अपनी मां के साथ अपने बच्चों को पाला है। 2 साल पहले उनकी मां का भी देहांत हो गया है। अब वह अकेले ही बच्चों को संभालते हैं। वह बताते हैं कि, "जब बच्चे छोटे थे तो थोड़ी परेशानी होती थी। लेकिन अब बच्चे बड़े हो गए हैं। बेटा काम भी करता है।"

आगे वह बताते हैं कि, "दिल्ली में कितनी गर्मी है, सभी जानते हैं। हमारे मालिक भी इस बात को जानते हैं। लेकिन वह हमें कोई छुट्टी नहीं देते, क्योंकि उनके लिए काम जरूरी है। मजदूरों का शोषण तो होता ही है। हमारे लिए पानी भी नहीं है। हम खुद ही अपना पानी लेकर आते हैं। हमें धूप में ही काम करना पड़ता है। हम लोग भी कुछ नहीं बोल पाते, क्योंकि हमें भी अपनी नौकरी से निकाले जाने का डर रहता है।"

नहीं है मजदूर कानून

क्रांतिकारी मजदूर पार्टी, दिल्ली से जुड़े भारत द मूकनायक को बताते हैं कि, "मजदूरों के लिए जो यह फरमान आया है, यह लागू नहीं है। आगे भी नहीं होने वाला है। क्योंकि मालिकों को इन चीजों से फर्क नहीं पड़ता। वह लोग काम करवाते हैं, और करवाते ही रहेंगे। एडवाइजरी लागू नहीं हो रही है। यह बहुत छोटी बात‌ है। यहां पर मजदूरों को सैलरी तक नहीं मिल पाती जो की 6 हजार और 8 हजार है। इसके साथ भी कोई 'मजदूर कानून' नहीं है। सरकार ने ये भी नहीं बोला कि अगर कोई एडवाइजरी नहीं मानेगा, तो उस पर कार्रवाई होगी। तो कोई क्यों इन मजदूरों के बारे में सोचेगा। यह सलाह के तौर पर है। जब तक नियम के तौर पर नहीं आएगा। तब तक कुछ नहीं होगा। इस इलाके में 5 से 6 लाख मजदूर है। मैं कुछ इलाकों में भी गया हूं। किसी भी मजदूर ने ये नहीं कहा कि मलिक ने हमें 12 से 3 बजे तक की छुट्टी दी है। वजीरपुर में फैक्ट्री का तापमान 60 डिग्री तक रहता है। क्योंकि वहां की मशीन बहुत पुरानी है। बस आधे घंटे का लंच ब्रेक होता है। उनके लिए ठंडा पानी भी उपलब्ध नहीं होता है।"

राजस्थान हाई कोर्ट ने लू से मौत पर मुआवजा देने की बात कही

भीषण गर्मी को देखते हुए राजस्थान हाई कोर्ट ने गुरुवार (30 मई 2024) को एक बड़ा निर्देश दिया। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह गर्मी के कारण मरने वाले लोगों के आश्रितों को मुआवजा दे। साथ ही यह भी कहा कि गर्मी और शीतलहर को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की आवश्यकता है।

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