नई दिल्ली: केंद्र सरकार के आधीन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से लेकर लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज तक तथा देश की राजधानी दिल्ली में कई संस्थानों में हजारों कॉन्ट्रेक्ट कर्मचारी कार्यरत हैं, आरोप है कि ये दमनकारी परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा संचालित इन सभी संस्थानों में कई श्रम कानूनों का उल्लंघन बड़े पैमाने पर होता है।
सरकार और प्रशासन की इन मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ मंगलवार को ऑल इंडिया जनरल कामगार यूनियन (ऐक्टू) और कलावती सरन कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी यूनियन (ऐक्टू) ने मिलकर पेमेंट ऑफ बोनस ऐक्ट, 1965 के उल्लंघन और कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों के अंतहीन शोषण के खिलाफ केंद्रीय श्रम आयोग, श्रमेव जयते भवन, द्वारका के समक्ष विरोध प्रदर्शन किया।
पिछले महीने कलावती सरन अस्पताल कॉन्ट्रेक कर्मचारी यूनियन (ऐक्टू) और ऑल इंडिया जनरल कामगार यूनियन (ऐक्टू) द्वारा डेप्युटी चीफ़ लेबर कमिश्नर कार्यालय को लिखित संज्ञान दिया गया था कि दोनों संस्थानों में कार्यरत कॉन्ट्रैक्ट कर्मी सालों से बोनस के अधिकार से वंचित हैं। इसके बावजूद डेप्युटी चीफ़ लेबर कमिश्नर कार्यालय और प्रशासन की ओर से इस संगीन उल्लंघन में कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
आरोप है कि, श्रम कानूनों के सरेआम उल्लंघन से लेकर हाई कोर्ट ऑर्डर की अवहेलना तक - प्रशासन द्वारा मनमाना शोषण किया जाता है।
कलावती सरन अस्पताल कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी यूनियन (ऐक्टू) के लगातार संघर्ष के ही कारण, तीन साल पहले अस्पताल के कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन लागू किया गया था। अस्पताल प्रशासन ने न्यूनतम वेतन की मांग करने वाले सभी कर्मचारियों की गैरकानूनी छटनी कर दी थी। दो साल पहले मिले हाई कोर्ट के ऑर्डर के बावजूद अस्पताल प्रशासन ने कर्मचारियों को काम पर वापस नहीं रखा है। कॉमरेड सूर्य प्रकाश, ऐक्टू दिल्ली सचिव ने कहा कि केंद्र सरकार संचालित अस्पताल प्रशासन सीधे तौर पर यह संदेश दे रहा है कि यदि आप संविधान को ध्यान में रखते हुए, अपने कानूनी अधिकारों की मांग करेंगे तो आपकी जीविका और जीवन हम खतरे में डाल देंगे। लेकिन यूनियन निडर होकर कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों के अधिकारों के संघर्ष को जारी रखे हुए है।
वहीं, जे एन यू जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भी कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन तक का भुगतान नहीं किया जा रहा था। इस को लेकर ऐक्टू के लगातार विरोध प्रदर्शनों और संघर्षों के कारण ही जे एन यू के सभी कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों के लिए प्रशासन को कुछ महीने पहले न्यूनतम वेतन लागू करना पड़ा। इसके अलावा, जे एन यू प्रशासन ने दमन के रूप में यूनियन से जुड़े कई कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों की गैरकानूनी छटनी कर दी गई। ऐक्टू कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों की ऐसी कई गैरकानूनी छटनियों के खिलाफ़ संघर्षरत है। कर्मचारियों का कहना है कि, दमन और शोषण के बावजूद कॉन्ट्रेक्ट कर्मचारियों के अधिकारों का संघर्ष जारी रहेगा।
श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा 2023 के दो अलग-अलग नोटिसों में कहा गया है कि सभी कॉन्ट्रैक्ट और आउटसोर्स कर्मियों को बोनस का भुगतान करना अनिवार्य है। आरोप है कि, इसके बावजूद प्रशासन कॉन्ट्रेक्ट कर्मचारियों को कभी कुछ मामूली राशि या मिठाई या कभी कुछ नहीं देकर बोनस के अधिकार का मजाक उड़ा रहे हैं। दिल्ली श्रम विभाग की 2020 की बोनस एडवाइजरी का भी कहीं पालन नहीं किया जा रहा है। कानून के तहत एक महीने के वेतन के बराबर बोनस की जगह एमसीडी के कॉन्ट्रेक्ट कर्मचारियों को अनियमित तौर से मात्र 1000 रुपए के बोनस का भुगतान होता है। आज के प्रदर्शन में एमसीडी के भी सफाई कर्मचारियों ने भी अपने अधिकृत बोनस की मांग को लेकर भागीदारी की।
विरोध प्रदर्शन में विभिन्न संस्थानों से कॉन्ट्रेक्ट कर्मचारियों ने बड़ी संख्या में हिस्सेदारी की। कॉमरेड सुचेता डे, ऐक्टू, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि, कॉन्ट्रैक्ट कर्मी लालची ठेकेदारों और उदासीन प्रशासन की सांठगांठ के कारण भीषण शोषण का शिकार हैं। मजदूर अपनी नौकरी बचाने के लिए घूस देने के लिए मजबूर किया जाता है। न्यूनतम वेतन, बोनस और कई अन्य प्रावधानों का भुगतान नहीं किया जाता है। भाजपा सरकार की जनविरोधी नीतियों के कारण आई भयंकर महंगाई के दौर में कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों पर और मार बढ़ी है। सरकार द्वारा ही कॉन्ट्रैक्ट कर्मियों का सबसे गंभीर शोषण किया जा रहा है। कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी इस संघर्ष को आने वाले दिनों में और तेज़ करेंगे और प्रशासन को अपने अधिकार देने पर मजबूर कर देंगे।
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