नई दिल्ली के गांधीनगर ब्लॉक के एसडीएम विवेक कुमार नरेश ने गीता कॉलोनी पुलिस की मदद से अभी हाल में इलाके की चार फैक्ट्रियों पर छापा मारकर 23 बच्चों को रेस्क्यू कराया। इन बच्चों की उम्र 10 से 17 साल है। इनमें तीन लड़कियां और 20 लड़के हैं। एसडीएम ने चारों फैक्ट्री को भी सील कर दिया है। इस घटना के संदर्भ में बाल मजदूरी के कुछ तथ्यों के बारे में हमने विचार करने की कोशिश की है।
कोविड-19 महामारी के कारण गरीबी में बढ़ोतरी, सामाजिक सुरक्षा की कमी और घरेलू आय में कमी के कारण गरीब परिवारों के बच्चों को मजबूरी में बालश्रम करना पड़ रहा है। कोरोना महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के कारण गरीब परिवारों की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई है। भारत की जनगणना 2011 के अनुसार, 5-14 वर्ष के आयु वर्ग के 1.01 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी करते थे, जिनमें से 81 लाख ग्रामीण क्षेत्रों के थे जो मुख्य रूप से कृषि (23 प्रतिशत) और खेतिहर मजदूरों (32.9 प्रतिशत) के रूप में कार्यरत थे।
छोटे कारोबारी अपने घाटे को कम करने के लिए सस्ते श्रम की मांग करेंगे। ऐसे में वे अपने यहां वयस्कों की बजाए बाल मजदूरों से काम कराएंगे। बाल मजदूरी की वजह यही है कि वे बहुत सस्ता श्रम होते हैं। अक्सर मालिक मां-बाप को एक मुश्त रकम देकर बच्चे को बंधुआ मजदूर बना लेता है। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले करीब 39 करोड़ मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है।
गरीबी प्रभावित इलाकों में बड़े पैमाने पर बच्चों को खरीदने-बेचने वाले दलाल और ट्रैफिकर सक्रिय हैं। दलाल गांव लौटे और भुखमरी के कगार पर पहुंचे गरीब मजदूरों को चिन्हित कर उनके पास पहुंच रहे हैं। उन्हें अग्रिम राशि देकर उनके बच्चों खासकर बेटियों का सौदा कर रहे हैं। बाद में वे उन्हें शहरों में ले जाकर कारखाना मालिकों, घरेलू नौकरानी के लिए मालिकों और चकलाघर चलाने वालों को बेच देंगे। इससे बच्चों के ट्रैफिकिंग के अवैध कारोबार में और बढोत्तरी होगी।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार देश में केवल छत्तीसगढ़ राज्य ने अपने यहां प्लेसमेंट एजेंसियों के रेगुलेशन के लिए कानून बनाया है। कुछ राज्यों ने थोड़ा-बहुत नियम कानून बनाया है, लेकिन उस पर भी सख्ती से अमल नहीं किया जाता। बीबीए की जनहित याचिका पर हाईकोर्ट के निर्देश के करीब दशक भर बाद भी दिल्ली में प्लेसमेंट एजेंसी के रेगुलेशन के लिए कोई कानून नहीं बना है। एक शासनादेश से यह नियम जरूर बना दिया गया कि प्लेसमेंट एजेंसी संचालक को इसे शॉप एंड कॉमर्शियल इस्टेब्लिसमेंट एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन कराना होगा। एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में करीब 5000 प्लेसमेंट एजेंसियां हैं। जबकि इसमें से एक तिहाई भी कानूनी तौर पर रजिस्टर्ड नहीं हैं।
बाल मजदूरी को रोकना है तो इसके जड़ पर प्रहार करना होगा। चाहे कारखानों में काम कराने के लिए बाल मजदूर लाए जाते हैं या फिर प्लेसमेंट एजेंसियों की आड़ में घरेलू नौकरानी के लिए मासूम लड़कियों को लाया जाता है, ये सब दलालों द्वारा ट्रैफिकिंग के जरिए ही लाए जाते हैं। इसलिए हमें एक मजबूत एंटी ट्रैफिकिंग कानून की जरूरत है। इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण बात जिस पर सरकार को उचित कदम उठाने की जरूरत है। सरकार को घरेलू बाल मजूदूरी को भी खतरनाक कामकाज की श्रेणी में शामिल कर 18 साल से कम उम्र तक के बच्चों को इसके लिए प्रतिबंधित करना चाहिए। मौजूदा कानून के मुताबिक 14 से 18 साल तक के बच्चे खतरनाक उद्योगों को छोड़ कर बाकी जगह सशर्त काम कर सकते हैं। इस खतरनाक उद्योगों की सूची में फिलहाल घरेलू बाल मजदूरी शामिल नहीं है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में बाल श्रमिकों और चाइल्ड ट्रैफिकिंग की संख्या बढ़ रही है। अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन के बाल-श्रम को रोकने के लिए कई कानूनों और यूएनसीआरसी के आर्टिकल 32.1 और दुनिया के कई देशों के राष्ट्रीय बाल-श्रम कानून होने के बावजूद आज पूरी दुनिया में 1.51 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं।
साथ ही संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों की 2021 की एक रिपोर्ट दर्शाती है कि दो दशकों में दुनिया भर में काम पर लगाए जाने वाले बच्चों का आंकड़ा अब 16 करोड़ पहुंच गया है। पिछले चार वर्षों में इस संख्या में 84 लाख की वृद्धि हुई है।
गरीब मासूम बच्चियों के शोषण का पर्याय बन चुकी प्लेसमेंट एंजेसियों पर नकेल कसने के लिए सरकार को फौरन एक रेगुलेशन एक्ट बनाना चाहिए। यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे बाल मजदूर और घरेलू नौकर बनने की बजाए स्कूल जाएं। उनके हाथों में औजार नहीं, बल्कि कलम और किताबे हों।
बाल मजदूरी रोकथाम को लेकर द मूकनायक ने ज्योति आनंद से बात की जो दिल्ली में एक एनजीओ की संस्थापक है और बच्चों और महिलाओं के लिए कार्यरत है। वे ग्राफोलॉजिस्ट, सामाजिक कार्यकर्ता, काउंसलर, मानसिक स्वास्थ्य परामर्श भी देती हैं। ज्योति हमें बताती है कि बाल मजदूरी जो हमारे देश में पूरी तरह से प्रतिबंधित है। फिर भी कितनी जगह ऐसी है, जहां बाल मजदूरी चोरी छुपे बच्चों से करवाई जा रही है।
बाल मजदूरी के बहुत सारे कारण है। कोरोना आने के बाद तो बाल मजदूरी और ज्यादा बढ़ चुकी है। गरीबों के कारण- बच्चे अपने परिवार की रोजमर्रा जिंदगी चलाने के लिए फैक्ट्री और ढाबों आदि में मजदूरी करते हैं। कुछ बच्चे खो जाते हैं, तो उनके पास अपना पेट पालने का कोई और साधन नहीं होता तो वो बच्चे मजदूरी ही करते हैं। और सबसे बड़ा कारण यह है, कि बहुत ही कम पैसों में बच्चों से ज्यादा काम लिया जा सकता हैं। यह बेचारे बच्चे ज्यादातर बिहार, झारखंड आदि जगहों के होते हैं जो किसी कारणवश मजबूर होते हैं, मजदूरी करने के लिए। इस दिशा में गंभीर प्रयास करने की जरूरत है।
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