नई दिल्ली। घरेलू कामगार महिला यूनियन सदस्यों की गत बुधवार को अंतरराष्ट्रीय घरेलू कामगार महिला दिवस के उपलक्ष्य में एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें कर्नाटक व महाराष्ट्र की तरह दिल्ली में घरेलू महिला कामगारों के लिए कल्याण बोर्ड गठन की मांग की गई। इस संबंध में श्रम आयुक्त को एक ज्ञापन भी सौंपा गया।
यूनियन सचिव रेखा देवी ने बताया कि बैठक में घरों में काम करने वाली महिलाओं की पहचान श्रमिक के रूप में सुनिश्चित करने व महिला घरेलू कामगार कल्याण बोर्ड गठन की मांग पर चर्चा हुई। बैठक के बाद इन सभी मुद्दों को लेकर दिल्ली सरकार के अतिरिक्त श्रमायुक्त एस.सी यादव को घरेलू कामकाजी महिला यूनियन सदस्यों ने ज्ञापन सौंपा। प्रतिनिधि मण्डल में महासचिव रेखा सिंह, कोषाध्यक्ष शर्मिला, नंदन, अनीता यादव, मोनिका, विकास पाठक और दिल्ली श्रम कल्याण बोर्ड के पूर्व सदस्य थानेश्वर आदि शामिल थे।
प्रतिनिधि मंडल की अध्यक्षता कर रही रेखा सिंह ने महिलाओं की समस्याओं को विस्तार से बताते हुए चर्चा की। सिंह ने कर्नाटक और महाराष्ट्र के घरों में काम करने वाली महिलाओं के लिए बने बोर्ड का उदाहरण भी दिया। उन्होंने कहा-"जहां देश के दो राज्यों में इन महिलाओं के लिए बोर्ड का गठन किया गया है तो दिल्ली में तो बहुत बड़ी संख्या में महिला घरों में काम कर रही है तो उनके लिए सरकार-प्रशासन किसी भी प्रकार का कोई बोर्ड, नीति क्यों नहीं बनाती। इन महिलाओं के अधिकारों और हितों के लिए कुछ नहीं करती है।"
दिल्ली के अतिरिक्त श्रमायुक्त एस.सी.यादव ने रेखा का ज्ञापन स्वीकार कर, उनके द्वारा कही बातों पर अपनी सहमति दर्शायी और कहा कि वह इस पर प्रयास करेंगे। आने वाले समय में उम्मीद है कि इस विषय पर सरकार व प्रशासन जरूर कदम उठाएगी।
द मूकनायक कोे यूनियन सचिव रेखा बताती हैं कि दिल्ली के बसंत कुंज, खानपुर, आरके पुरम, बसंत विहार आदि के इलाकों में हम काम करते हैं। हमारे साथ करीब 1500 घरेलू कामगार महिलाएं जुड़ी हुई हैं। यह महिलाएं ज्यादातर पश्चिम बंगाल, बिहार और यूपी से हैं। हमारा काम है कामगार महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ना।
रेखा ने आगे कहा कि यूनियन मांग करती है कि घरेलू महिला कामगार की भी श्रमिक के रूप में पहचान हो। इनका भी बोर्ड होना चाहिए। जहां यह अपनी बात रख सकें। जहां इनका रजिस्ट्रेशन हो सके। इनका सामाजिक सुरक्षा मिले। एक भी छुट्टी इनको देना सबके लिए मुश्किल हो जाता है। महीने में चार छुट्टी उनके लिए होनी चाहिए।
इनका अपना कोई त्योहार नहीं होता। इनको अपने त्योहार पर भी कोई छुट्टी नहीं मिलती। कोविड के समय लोगों को इनकी एहमियत का पता चला। जब घर का सारा काम उनको खुद करना पड़ा। कुछ लोग पहले से अब सुधर भी गए हैं। इनकी एहमियत समझने लगे हैं।
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