भोपाल। मध्य प्रदेश के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल में अब सेंट्रल इंडिया के जरूरतमंद मरीजों का एम्स भोपाल में ही फेफड़े और हृदय प्रत्यारोपण ट्रांसप्लांट हो सकेगा। एम्स के निदेशक डाॅ. अजय सिंह ने सोमवार को इसकी जानकारी दी है। उनके कार्यकाल के दो वर्ष पूरे हो गए। इस मौके पर उन्होंने एम्स की दो वर्षाें की उपलब्धियां भी बताईं।
बता दें कि, मध्य प्रदेश के सरकारी व निजी अस्पतालों में वर्तमान में मुख्य रूप से बोन मैरो, किडनी व लिवर ट्रांसप्लांट ही हो रहे हैं। ब्रेनडेड मरीज के अंगदान के लिए परिवार की अनुमति के बाद फेफड़े और हृदय को दूसरे राज्यों के मरीजों को भेजना पड़ता था। कई बार दूरी ज्यादा होने पर यह अंग उपयोग नहीं होते थे। अब यह समस्या खत्म हो जाएगी, भोपाल एम्स में ही यब दोनों ही अंगों का ट्रांसप्लांट हो सकेगा।
एम्स में बढ़ी सुविधाओं की बजह से यहाँ मरीज़ों की संख्या लगातार बढ़ रही है। एम्स से मिले आंकड़ों के मुताबिक, पिछले एक वर्ष में 10 लाख 50 हजार मरीज ओपीडी में इलाज के लिए आए। साथ ही मरीजों की सहायता के लिए 7773010099 और 9582559721 नम्बर जारी किए गए हैं, जिसपर मरीज परेशानी होने पर काल या वाट्सएप कर सहायता ले सकते हैं।
एम्स निदेशक डॉ. सिंह ने बताया कि वे टीचिंग और ट्रेनिंग, पेशेंट केयर, प्रशासनिक पहल, आउटरीच और सामुदायिक कार्यक्रम तथा महत्वपूर्ण सुधारात्मक कदमों के लिए लगातार काम कर रहे है। उन्होंने कहा एम्स में हम हर तरह की सुविधाएं मरीजों को देना चाहते है। ताकि उन्हें इलाज में आसानी हो।
एम्स भोपाल ई-कंसलटेंसी की मदद से प्रदेश के 50 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर से जुड़ा है, जिसमें मरीज के इलाज के लिए एम्स और संबंधित सेंटर के डाॅक्टर एक-दूसरे से बात कर सकते हैं। यही नहीं टेली आईसीयू के तहत सतना और विदीशा के मेडिकल काॅलेज में भर्ती मरीजों का एम्स के डॉक्टर्स द्वारा इलाज किया जा रहा हैं। एम्स भोपाल 200 वर्चुअल बेड का संचालन कर रहा है। अब उनसे जुड़ने के लिए उत्तर प्रदेश के अस्पताल भी तैयार हैं।
पिछले दो वर्ष में तीन नए विभाग मेडिकल जेनेटिक्स, रुमेटोलाजी और क्लिनिकल इम्यूनोलाजी व क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग स्थापित किए गए। अब चार नए सेंटर, हैप्पीनेस सेंटर, सेंटर ऑफ प्रिसिशन, सेंटर आफ एक्सीलेंस इन रेयर डिसीज, सेंटर ऑफ हीमोग्लोबिनोपैथीज खोले गए हैं। इसके अलावा 13 नए पीजी से संबंधित सुपर स्पेशलिस्ट कोर्स और 34 नई फैलोशिप शुरू की गई। एम्स 50 अन्य ऐसे मेडिकल काॅलेज जहां शिक्षकों की कमी है, वहां विद्यार्थियों के लिए डिजिटल लेक्चर उपलब्ध करवा रहा है। यहां संचालित स्टुडेंट्स वेलनेस सेंटर में एक वर्ष में 714 विद्यार्थियों ने कंसल्ट किया।
हाल ही में एम्स भोपाल में फॉरेंसिक हिस्टोपैथोलॉजी लैब की शुरुआत की गई है, इस लैब में मौत के सही कारण का पता आसानी से लगाया जा सकेगा। इसका लाभ प्रदेश के सभी जिला चिकित्सालय और पुलिस को मिलेगा। एम्स के डॉक्टर्स के मुताबिक इस जांच से मौत के कारणों की सही जानकारी आसानी से मिल जाएगी। प्रदेश के किसी भी जिले की पुलिस को आवश्यकता पड़ने पर इस लैब की मदद मिल सकेगी। इस लैब में नए-नए शोध भी होंगे। उन्नत तकनीक का भी उपयोग किया जाएगा।
एम्स भोपाल में माइक्रोबायोलॉजी पोस्टमार्टम भी शुरू किया गया है। इस तरह की सुविधा बहुत कम देशों में है। माइक्रोबॉयोलाजी पोस्टमार्टम की सुविधा यूरोप के कुछ देशों में है। इस प्रक्रिया के माध्यम से शव के मस्तिष्क से खून निकाला जाता है और इसका बारीकी से अध्ययन किया जाता है। इसकी रिपोर्ट भी अलग से तैयार होती है। उस रिपोर्ट का अध्ययन कर संबंधित व्यक्ति की मौत के कारणों का पता लगाया जा सकता है। संबंधित व्यक्ति की अगर किसी बीमारी से मृत्यु हुई है तो उसकी भी सही जानकारी इस जांच से पता चल जाती है। एम्स के डायरेक्टर डॉ. अजय सिंह ने बताया कि हिस्टोपैथोलॉजी लैब की शुरुआत की गई है।
बहरहाल, एम्स भोपाल 2 वर्ष पूर्व तक देश के सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा स्थानों की श्रेणी में किसी भी रैंकिंग में नहीं आता था, लेकिन पिछले दो वर्षों के दौरान संस्थान ने सेवाएं और सुविधाओं में बेहतरीन काम किया। सरकारी मेडिकल कॉलेज की श्रेणी में एम्स भोपाल ने अपनी समग्र रैंकिंग में जबरदस्त सुधार किया है, जो 2023 में 20वें स्थान से 2024 में 16वें स्थान पर पहुंच गया है। इसके अलावा, एम्स भोपाल ने सर्वश्रेष्ठ उभरते कॉलेजों की सूची में दूसरा स्थान हासिल किया है, जबकि वर्ष 2000 में और उसके बाद स्थापित उच्चतम स्कोरिंग कॉलेजों में तीसरा स्थान प्राप्त करके एक और उपलब्धि हासिल की है।
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