भोपाल। टीबी या ट्यूबरक्लोसिस एक खतरनाक संक्रमण रोग है, जो एक व्यक्ति से दूसरे तक बड़ी आसानी से फैलता है। इसके कारण भारत में हर साल लाखों लोगों की जान चली जाती है। रोग पर काबू पाने के लिए मध्य प्रदेश स्वास्थ्य विभाग टीबी टीकाकरण अभियान चलाने जा रहा है। इसके लिए फरवरी से प्रदेशभर में सर्वे शुरू होगा। नेशनल हेल्थ मिशन (एनएचएम) स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को प्रशिक्षण दे रहा है।
एनएचएम व स्वास्थ्य विभाग ने बीसीजी टीकाकरण, रूटीन इम्यूनाइजेशन को लेकर कार्ययोजना तैयार करने पर योजना बनाई है। स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक फरवरी से सर्वे शुरू होगा। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने अभी करीब दस हजार लोगों को चिह्नित किया है। पहले उन परिवारों को चिंहित किया जाएगा, जिनमें कभी टीबी के मरीज रहे हैं।
बीसीजी का टीकाकरण अभियान चलाने से पहले जिले में सर्वे किया जाएगा। अभी तक के रिकार्ड में करीब दस हजार लोगों को टीकाकरण के लिए चिह्नित किया जा चुका है, जबकि पीड़ित वयस्कों को भी यह टीका लगाया जाएगा।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए भोपाल के सीएमएचओ डॉ. प्रभाकर तिवारी ने बताया कि एनएचएम के निर्देशानुसार अभी हमने प्रशिक्षण शुरू कर दिया है। इसको लेकर गाइडलाइन नहीं आई है। सर्वे फरवरी में शुरू होना है। एक अनुमान है कि जिले की आबादी के 20 प्रतिशत लोग इसमें शामिल हो सकते हैं।
2011 की जनगणना के मुताबिक भोपाल की कुल जनसंख्या 23,68,145 से यदि 20 प्रतिशत लोग टीका अभियान में शामिल किए तो यह संख्या करीब 4.5 लाख लोगों की होगी। मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या 7,26,26,809 में यदि 20 प्रतिशत लिया तो पूरे प्रदेशभर में करीब डेढ़ करोड़ लोगों को टीका लगाया जाएगा। हालांकि अब प्रदेश की जनसंख्या बढ़कर लगभग सवा आठ करोड़ हो चुकी है।
बीसीजी का टीका 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोग, जिन लोगों को पिछले पांच वर्षों में एक बार भी टीबी हुई हो, 60 वर्ष और उससे अधिक के बुजुर्ग, धूम्रपान करने वाले लोग, पिछले तीन साल के टीबी रोगियों के संपर्क में आने वाले लोग, मधुमेह पीड़ित के साथ-साथ 18 किलो प्रति वर्ग मीटर से कम बाडी मास इंडेक्स वाले व्यक्ति भी शामिल हैं। टीकाकरण से पूर्व व्यक्ति से लिखित सहमति ली जाएगी। टीकाकरण स्वेच्छा के आधार पर ही होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बीते साल ’ग्लोबल टीबी रिपोर्ट-2023’ जारी की थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 में पूरी दुनिया में ट्युबरकुलोसिस (टीबी) के 75 लाख मामले आए थे। रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2022 में टीबी के 28.22 लाख मामले दर्ज किए गए। उस वक्त दुनिया में ट्युबरकुलोसिस के कुल मामलों में से 27 फीसदी मामले सिर्फ भारत में थे। इसे समझे तो दुनिया के कुल टीबी मरीजों का हर चौथा मरीज भारत में है और देश में हर 1 लाख की आबादी में से 210 लोग टीबी से संक्रमित हैं।
डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट के अनुसार भारत में टीबी के कारण होने वाली मौत के आंकड़ों में साल 2022 में 3.31 लाख की मौत हुई थी। वहीं साल 2021 में देश में इस बीमारी की चपेट में आकर 4.94 लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। यह आंकड़ा देख कर पता लगता है कि हर साल टीबी के आंकड़ों में सुधार हुआ है, लेकिन फिर भी लाखों लोग टीबी के संक्रमण से जान गंवा रहे हैं।
ट्यूबरक्लोसिस एक संक्रामक बीमारी है जो आमतौर पर फेफड़ों पर हमला करती है। धीरे-धीरे ये दिमाग या रीढ़ सहित शरीर के बाकी हिस्सों में भी फैल सकती है। शरीर में टीबी की बीमारी की शुरुआत माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होती है। शुरुआत में तो शरीर में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं, लेकिन जैसे-जैसे यह संक्रमण बढ़ता जाता है, मरीज की परेशानियां भी बढ़ने लगती हैं। जिन लोगों के शरीर की इम्यूनिटी कमजोर होती है, उन्हें टीबी का खतरा ज्यादा रहता है।
खांसी जो 3 सप्ताह से अधिक समय तक रहती है।
सीने व छाती में दर्द, खूनी खाँसी।
हर समय थकान महसूस होना।
रात में पसीना आना व ठंड लगना।
बुखार, भूख में कमी, वजन घटना।
जब टीबी फेफड़ों के बाहर होती है, तो आपको संक्रमित क्षेत्र के पास दर्द के साथ-साथ ये समान लक्षण भी हो सकते हैं।
किशोरों, बच्चों और शिशुओं में टीबी के लक्षण अलग-अलग दिख सकते हैं। किशोरों के लक्षण वयस्कों के समान होते हैं। 1-12 वर्ष की आयु के बच्चों का वजन कम हो सकता है और बुखार हो सकता है जो दूर नहीं होगा।
अधिकांश मामलों में टीबी एंटीबायोटिक दवाओं से ठीक हो जाती है, लेकिन इसमें काफी समय लगता है। आपको कम से कम 6 से 9 महीने तक दवाएँ लेनी होंगी। पर यह दवाएं डॉक्टर की सलाह पर ही ली जाती है। डॉक्टर भी परीक्षण के बाद इलाज का कोर्स शुरू करते हैं। टीबी कई तरह की हो सकती है, इसलिए समय पर डॉक्टर को दिखाना और परीक्षण कराना आवश्यक हो जाता है।
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