भोपाल। बीते दिनों भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर्स के सामूहिक सुसाइड कर लेने की चिठ्ठी के सामने आने के बाद से ही मेडिकल कॉलेज प्रशासन की नींद उड़ी हुई है। इधर, बीते सोमवार को भोपाल चिरायु मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस प्रथम वर्ष की आदिवासी छात्रा ने अपने हॉस्टल के कमरे में सुसाइड कर लिया। इसके बाद से डॉक्टर्स का मामला फिर से चर्चा में आ गया।
जीएमसी डीन ने डॉक्टर्स एसोसिएशन से मीटिंग कर परेशानियों को समझा था, लेकिन यह चिट्ठी लिखने वाले 5 रेजिडेंट डॉक्टर्स का अबतक कोई सुराग नहीं लगा है। अब कॉलेज प्रबंधन इस चिट्ठी को फर्जी मान रहा है। डॉक्टर्स के मुताबिक हमीदिया अस्पताल के सभी विभागों में डॉक्टर्स की ड्यूटी शॉर्ट की जा रही है। लेकिन अभी भी रेसिडेंट और जूनियर डॉक्टर्स उनके साथ की जा रही प्रताड़ना को भूल नही पा रहे है।
द मूकनायक को नाम नहीं बताने की शर्त पर एक रेजिडेंट डॉक्टर्स ने कहा- "यह सच है डॉक्टर्स से 36 घंटे से ज्यादा काम लिया जा रहा है। सीनियर मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं। यदि ड्यूटी करते समय कोई बीमार हो जाए तो उसे कमजोर कहते हैं। सीनियर हम लोगों को अभद्र भाषा बोलकर अपमान करते हैं। यदि कोई पीजी छात्र इसकी शिकायत भी करता है तो उसे बाद में बहुत प्रताड़ित किया जाता है। इस डर से कोई शिकायत नहीं करता बस चुपचाप सहता रहता है। मेडिकल कॉलेज में इतना काम लिया जा रहा है, कभी तो लगता है यहाँ से भाग जाओ, लेकिन मजबूरी है हमारे भविष्य का सवाल है।"
दरअसल, गांधी मेडिकल कॉलेज के माहौल को लेकर बीते दिनों एक चिट्ठी सामने आई थी। इसमें मेडिकल कॉलेज के माहौल को टॉक्सिक बताते हुए 31 मई 2024 को ग्रुप सुसाइड की बात कही गई थी। चिट्ठी में एड्रेस की जगह 'द 5 रेजिडेंस ऑफ टॉक्सिसिटी हब,' गांधी मेडिकल कॉलेज, हमीदिया हॉस्पिटल लिखा था। यह चिट्ठी फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन नई दिल्ली के अध्यक्ष को संबोधित करते हुए लिखी गई थी। हालांकि इसमें किसी भी रेजिडेंस डॉक्टर के नाम का जिक्र नहीं था। इसके चलते अब इस चिट्ठी को फर्जी बताया जा रहा है।
लेकिन डॉक्टर्स बताते है कि भले ही चिट्ठी लिखने वाले डॉक्टर्स सामने नहीं आए पर उन्होंने जो कुछ भी लिखा वह सब सही ही था। अधिकारियों का इतना प्रेशर होता है कि कोई भी खुलकर सामने नहीं आ सकता। सबको अपनी डिग्री कंप्लीट करनी है। कोई भी यहाँ शिकायत जैसे झमेलों में पड़ना नहीं चाहता है।
'जिस किसी को चिट्ठी मिली, उसे विषैला नमस्कार। गांधी मेडिकल कॉलेज (हमीदिया अस्पताल) में दिन-रात, हर पल, हम जहरीली सांस ले रहे हैं। हम लंबे समय से इस जहरीली संस्कृति का हिस्सा हैं। हमने सोचा था कि डॉक्टरों की शहादत के बाद कुछ बदल जाएगा, लेकिन चीजें अभी भी वैसी ही हैं।
अस्पताल में बिना सोए 24 घंटे से ज्यादा समय तक (कभी-कभी 36 घंटे से ज्यादा) लगातार काम करना पड़ता है। बिना छुट्टी लिए काम के बावजूद गलतियां नहीं होने पर भी सीनियर्स और एडवाइजर्स मौखिक दुर्व्यवहार करते हैं। कुछ कहते हैं, तो धमकाते हैं। कहते हैं- "चुप रहो, नहीं तो परीक्षा में पास नहीं होंगे" और "डिग्री डिप्लोमा नहीं दिया जाएगा।'
जब यह पत्र फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (फाइमा) को मिला था तो उन्होंने तत्काल सात सदस्यीय कमेटी गठित कर दी थी। कमेटी में फाइमा के नेशनल चेयरमैन डॉक्टर रोहन कृष्णन, कंसल्टेंट चेयरमैन डॉक्टर अपराजिता सिंह, नेशनल वाइस प्रेसिडेंट डॉक्टर संदीप डगर, नेशनल सेक्रेटरी डॉक्टर ऋषि राज सिन्हा, स्टेट चेयरमैन डॉक्टर आकाश सोनी, जॉइंट सेक्रेटरी डॉक्टर प्राची बंसल और स्टेट प्रेसिडेंट डॉक्टर हरीश पाठक शामिल किया गया था। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी चिट्ठी लिखने वाले डॉक्टर्स सामने नहीं आए। इसलिए अब इस चिट्ठी को फर्जी माना जा रहा है।
द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए, जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन (जूड़ा) भोपाल के प्रवक्ता कुलदीप गुप्ता ने बताया चिट्ठी सामने आने के बाद हमने सभी मेडीकल छात्रों से बात की थी, लेकिन कोई सामने नहीं आया हम इसे फर्जी ही मान रहे हैं। कॉलेज प्रबंधन ने सभी विभागों में ड्यूटी रोस्टर बनाया है। ड्यूटी टाइमिंग कम की गई गई है।
7 महीने पहले जूनियर डॉक्टर आकांक्षा माहेश्वरी (24) ने हॉस्टल में सुसाइड कर लिया था। वे गांधी मेडिकल कॉलेज से पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट में पीजी कर रही थीं। पुलिस को मौके से इंजेक्शन और सीरिंज मिली थी। पुलिस ने मौके से एक पेज का सुसाइड नोट भी बरामद किया है, जिसमें आकांक्षा ने लिखा- मैं इतनी मजबूत नहीं हूं, इतना स्ट्रेस नहीं झेल पा रही हूं..। मम्मी-पापा सॉरी, दोस्तों को भी सॉरी। प्यार देने के लिए धन्यवाद। मैं स्ट्रॉन्ग नही हूं। मैं व्यक्तिगत कारणों से यह कदम उठा रही हूं।
01 अगस्त 2023 को जीएमसी पीजी थर्ड ईयर की छात्र डॉ. बाला सरस्वती ने घर में एनेस्थीसिया के इंजेक्शन लगाकर खुदकुशी कर ली थी। सुबह पति उसे अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था। मृतका के मोबाइल से सुसाइट नोट मिला था। इसमे लिखा था कि "थीसिस मैं कभी पूरी नहीं कर पाऊंगी और ये लोग मुझे कभी भी दोबारा नहीं जी पाएंगे, चाहे कुछ भी हो जाए यदि मैं अपना खून और आत्मा लगा दूं और अपना सब कुछ दे दूं तो यह उनके लिए कभी भी पर्याप्त नहीं होगा। मैंने आपकी मर्जी के विरुद्ध इस कालेज में प्रवेश करना चुना। मुझे माफ़ कर देना।"
बीते सोमवार भोपाल चिरायु मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस प्रथम वर्ष की आदिवासी छात्रा अपने छात्रावास के कमरे में लटकी हुई पाई गई थी। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक कमरे की तलाशी के दौरान कोई सुसाइड नोट नहीं मिला। फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) की टीम ने भी कमरे की जांच की है. उसका लैपटॉप और मोबाइल फोन जब्त कर लिया गया है. पुलिस मोबाइल से कॉल डिटेल निकाल रही है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि उसने आखिरी बार किस व्यक्ति से बात की थी। एक पुलिस अधिकारी के अनुसार पीड़िता की पहचान देवी सिंह मोरे की बेटी रानी मोरे (22) के रूप में हुई, जो मूल रूप से खरगोन जिले की झिरन्या तहसील के धसल गांव की रहने वाली है। वह भोपाल के चिरायु मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही थी।
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