भोपाल: "हमने 15 साल तक यहाँ लगे ट्यूबवेल (बोरिंग) का पानी पिया, बाद में पता लगा यह पानी तो जहरीला था। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। तबियत खराब रहने लगी थी, सीने में जलन रहती थी। जब डॉक्टर ने जांच कराई तो पता लगा मुझे ब्रेस्ट कैंसर हुआ है। एक वर्ष तक इलाज कराया, अंत में डॉक्टर ने ऑपरेशन कर कैंसर वाले हिस्से को शरीर से अलग कर दिया। अब डॉक्टर कह रहे हैं मेरी किडनी में भी इंफेक्शन है। अभी भी हमारा परिवार कई बीमारियों से जूझ रहा है। हमें पता होता तो यहां कभी नहीं रहते।"
यह पीड़ा भोपाल के भूजल प्रदूषित क्षेत्र नवाब कॉलोनी में 25 वर्षों से रह रहीं 40 वर्षीय शमसाद बी की है। जहरीला पानी पीने के कारण इन्हें स्तन कैंसर हुआ था। कुछ साल पहले ही जिसका ऑपरेशन हुआ है।
वर्ष 1984 में भोपाल गैस त्रासदी की घटना को लोग अभी भी भूल नहीं पाए हैं। उस रात यूनियन कार्बाइड कारखाने से निकली जहरीली हवा ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। लेकिन 39 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड कारखाना परिसर के जमीन में दफन जहरीले कचरे और यूनियन कार्बाइड के समीप बने तालाब से क्षेत्र की 42 कॉलोनियों का भूजल (ग्राउंड वाटर) दूषित हो गया है। इब्राहिमगंज, बाफना कॉलोनी, गौतम नगर, पीजीबीटी कॉलेज, आरिफ नगर, निशातपुरा और राधाकृष्ण नगर सहित कुल 42 कॉलोनियों के भूजल में ऑर्गनोक्लोरीन घुल चुका है। यह पानी पीने योग्य नहीं है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में ही शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। लेकिन तबतक बहुत देर हो चुकी थी। भूजल प्रदूषित इन बस्तियों में एक परिवार भी ऐसा नहीं जो किसी बीमारी की चपेट में न हो। पानी पीड़ित लोगों की समस्याओं को समझने द मूकनायक की टीम इन्हीं बस्तियों में पहुँची। यहाँ कुछ कॉलोनियों में नर्मदा नल-जल योजना अंतर्गत शुद्ध पानी पहुँचा दिया गया है। इसके साथ कुछ कॉलोनियों में अस्थाई टंकियों से पीने का पानी पहुँचा रहे हैं। वहीं एक बस्ती में आजतक पेयजल की व्यवस्था नहीं हो सकी।
द मूकनायक की पड़ताल में भूजल प्रदूषित ब्लूमून कॉलोनी की पाइप लाइन जगह - जगह टूटी पड़ी थी। चेंबर में लीकेज थे। इस कारण नलों से गंदा पानी आता है। यहाँ के 80 वर्षीय निवासी छोटे खान ने कहा पहले जहरीला पानी पीते रहे, और अब नालियों से निकली पानी की लाइन के कारण गंदा पानी पीने को मजबूर हैं।
हम इस बस्ती के अन्नू नगर पहुँचे, यहां 30 वर्षीय शीवा खान रहतीं हैं। ट्यूबेल के पानी के कारण इनका दो वर्षीय बेटा जन्म से ही दिव्यांग हैं। बेटे के दोनों पैर काम नहीं करते। शीबा ने कहा हम तो यही पानी पी रहे थे। बाद में पता लगा कि जमीन का पानी जहरीला है। भूजल प्रदूषित क्षेत्र में ऐसा एक भी घर हमें नहीं मिला, जिनमें लोग बीमार न हों। कुछ घरों में घर के बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी किसी न किसी बीमारी की चपेट में हैं।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एन्ड एक्शन की संचालक रचना ढिंगरा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के 2012 और 2018 के स्पष्ट आदेशों के बाद भी यहाँ के रहवासियों को आज तक जहरीला भूजल पीने को मजबूर हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नगर निगम को घर-घर मुफ्त शुद्ध पेयजल के कनेक्शन देने के आदेश के बावजूद भी निशातपुरा स्थित बृज बिहार कॉलोनी साफ पानी मुहैया नहीं कराया गया है।
कॉलोनी के लोगों ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी यहाँ के रहवासी जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं, 15 परिवार जहरीले पानी की वजह से घर छोड़ कर जा चुके हैं, लगभग हर घर में लोग बीमार हैं। नगर निगम द्वारा यहां के लोगों को नल द्वारा साफ पानी मुहैया ना कराना सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना है।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए बृज बिहार कॉलोनी के रहवासी मयंक पाल ने बताया कि इस मामले 2018 में स्पष्ठ आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नल कनेक्शन देकर शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। लेकिन नगर निगम द्वारा कोर्ट के फैसले का पालन नहीं किया गया। मयंक ने बताया कि कोर्ट के फैसले पर मध्य प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने भी शुद्धपेजल उपलब्ध कराने के आदेश दिए लेकिन निगम ने उसका भी पालन नहीं किया।
उन्होंने बताया कि "हमारी कॉलोनी से ही नर्मदा नल लाइन गुजरी है। हमारे आसपास की सभी कॉलोनियों में शुद्ध जल की सप्लाई है। लेकिन निगम के द्वारा हमसे भेदभाव सिर्फ इसलिए किया जा रहा है कि हमारी कॉलोनी निजी है।"
बृज बिहार कॉलोनी में 80 परिवार रहते हैं। इन परिवारों के सभी लोग किसी न किसी छोटी-बड़ी बीमारी से ग्रसित हैं। कॉलोनी के निवासी असित ने बताया कि जहरीले भूजल को पीकर उनके घर के चार सदस्यों की मौत हो चुकी है, और वह भी स्किन प्रॉब्लम से जूझ रहे हैं। कॉलोनी में करीब 15 परिवार अपने घर छोड़ कर जा चुके हैं।
मध्य प्रदेश जिला विधिक प्राधिकरण के संयुक्त सचिव मनोज सिंह ने भोपाल जिला विधिक प्रकरण के चेयरमैन को इस इलाके का निरीक्षण कर, भूजल के सैंपल लेने के लिए आदेशित किया था। समिति के सदस्यो के समक्ष मध्य प्रदेश प्रदूषण नियन्त्र बोर्ड, लोक यांत्रिकी विभाग द्वारा कॉलोनी के 5 स्थानों से सैंपल पूर्व में लिए गए थे। यह पूरी कार्रवाई, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के चेयरमैन के समक्ष की गई थी, जब रिपोर्ट सामने आईं तो पता लगा कि भूजल प्रदूषण लगातार फैल रहा है।
यूनियन कार्बाइड के आसपास जमीन में दफन कचरा लगातार भूजल को प्रदूषित कर रहा है, और यहाँ के रहवासी इसी पानी को पीने के लिए मजबूर हैं, पूर्व में की गई भूजल जांच में यह सामने आया था। यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरे के कारण पानी अधिक मात्रा में रसायन युक्त हो चुका है। इस मामले में एक्सपर्ट का कहना था कि इस पानी को पीने से कैंसर और गुर्दा रोग जैसी गंभीर बीमारी पनप सकती है। पिछले कुछ सालों के आंकड़ो में यहां कैंसर और गुर्दा सम्बंधित रोगियों की संख्या बढ़ी है।
इन इलाकों में पूर्व में पानी की, की गई जांच करने पर पता चला है कि इन कॉलोनियों के भू-जल में ऑर्गनोक्लोरीन नामक रसायन मिला है, इससे कैंसर, जन्मजात विकृति, मस्तिष्क और किडनी के साथ रोग प्रतिरोधक, प्रजनन एवं अन्य मानव अंगों को नुकसान पहुंचता है। यूनियन कार्बाइड कारखाने में सालों से पड़े जहरीले कचरे को नष्ट नहीं करने के कारण ये स्थिति बन रही है। इसकी वजह से दूसरी कॉलोनियां भी इसकी जद में आ रही हैं।
मध्य प्रदेश प्रदूषण मंडल के सदस्य आलोक सक्सेना ने द मूकनायक को बताया कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा बनाई गई समिति को भूजल प्रदूषण की शिकायत मिली थी। हमने कॉलोनी के निरीक्षण के दौरान पांच जगहों से भूजल के सेंपल लिए है। जांच रिपोर्ट आने के बाद ही बता पाएंगे।
दरअसल यूनियन कार्बाइड ने प्लांट के पास तीन छोटे तालाब बनाएं थे। इन तालाबों को कॉन्क्रीट कर पक्का किया था। इसके पहले पॉलीथिन भी बिछाई गई थी। इन्हीं तीन तालाबों में यूनियन कार्बाइड के प्लांट से वेस्टेज पानी को पाइप से छोड़ा जाता था। वर्तमान में तीन में से सिर्फ एक ही तालाब अस्तित्व में है। क्योंकि एक तालाब पर अन्नू नगर की बस्तियां बन चुकी हैं। तो दूसरे पर करोद का पुल बन गया है। बताया जाता है तालाब के नीचे का कॉन्क्रीट फट गया जिसके कारण क्षेत्र का भूजल प्रदूषित हो गया है। इसके अलावा यूनियन कार्बाइड के पास दफन किए रसायन युक्त कचरे से भी भूजल प्रदूषित हुआ है।
वर्ष 1984 की 2 और 3 दिसंबर की रात को भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली गैस हवा में फैल गई थी। इस हादसे में लगभग 45 टन खतरनाक मिथाइल आइसोसाइनेट गैस एक कीटनाशक संयंत्र से लीक हो गई थी, जिससे हजारों लोग मौत की नींद सो गए थे। यह औद्योगिक संयंत्र अमेरिकी फर्म यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन की भारतीय सहायक कंपनी का था। लीक होते ही गैस आसपास की घनी आबादी वाले इलाकों में फैल गई थी और इससे 16000 से अधिक लोग मारे जाने की बात सामने आई थी, हालांकि सरकारी आंकड़ों में केवल 3000 लोगों के मारे जाने की बात कही गई है।
गैस संयंत्र से लीक हुई गैस का असर इतना भयंकर था कि इसके संपर्क में आए करीब पांच लाख लोग जीवित तो बच गए लेकिन सांस की समस्या, आंखों में जलन और यहां तक की अंधापन तक की समस्या हो गई। इस जहरीली गैस के संपर्क में आने के चलते गर्भवती महिलाओं पर भी इसका असर पड़ा और बच्चों में जन्मजात बीमारियां होने लगी। यूनियन कार्बाइड भोपाल गैस त्रासदी के 39 साल बाद भी इसके ज़हरीले कचरे का असर भूजल में घुल रहा है। लेकिन सरकार इसके लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं कर रही।
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