भोपाल। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल की एक तकनीक को भारत सरकार का कॉपीराइट मिला है। अब भोपाल एम्स में सस्ते दाम पर कृत्रिम दांतों का इंप्लांट हो सकेगा। इतना ही नहीं, यहां 3 डी प्रिंटिंग और सीबी सीटी स्कैन का उपयोग कर जो कृत्रिम बत्तीसी बनाकर लगाई जाएगी। इसके फेल्यूअर होने या निकलने के चांस न के बराबर होंगे।
इस नई तकनीक के लिए उन्हें भारत सरकार से कॉपीराइट भी मिल चुका है। इस तकनीक को तैयार करने वाले दंत चिकित्सा विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. अंशुल राय ने द मूकनायक से बातचीत में बताया कि दुनियाभर में डेंटल इंप्लांट सबसे कॉस्टली होता है। इसमें 25 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक का खर्च लग सकता हैं। इसलिए हमने इस पा काम किया है, ताकि लोगों को लाभ मिल सके।
सीबी सीटी स्कैन करके थ्री प्रिंटिंग के जरिए डाइकोम इमेज तैयार की जाएगी। यह प्रक्रिया इंप्लांट करने से पहले की जाएगी। इस डाइकोम इमेज को थ्री डी प्रिंटिंग के द्वारा मॉडल मे कन्वर्ट किया जाएगा।
इसके बाद मॉडल पर ये कस्टोमाइज्ड स्टेंट बनाया जाएगा जो कि डेंटल इंप्लांट लगाने में सहायता करेगा। ये स्टेंट इस्तेमाल करने से एक्यूरेसी बहुत अधिक बड़ जाएगी जिससे मरीज को तकलीफ भी कम कम होगी। डॉ. अंशुल राय का 21वां पेटेंट कॉपीराइट है। जो उन्हें भारत सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री से मिला है।
बता दें कि, एम्स भोपाल 2 वर्ष पूर्व तक देश के सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा स्थानों की श्रेणी में किसी भी रैंकिंग में नहीं आता था, लेकिन पिछले दो वर्षों के दौरान संस्थान ने सेवाएं और सुविधाओं में बेहतरीन काम किया।
सरकारी मेडिकल कॉलेज की श्रेणी में एम्स भोपाल ने अपनी समग्र रैंकिंग में जबरदस्त सुधार किया है, जो 2023 में 20वें स्थान से 2024 में 16वें स्थान पर पहुंच गया है। इसके अलावा, एम्स भोपाल ने सर्वश्रेष्ठ उभरते कॉलेजों की सूची में दूसरा स्थान हासिल किया है, जबकि वर्ष 2000 में और उसके बाद स्थापित उच्चतम स्कोरिंग कॉलेजों में तीसरा स्थान प्राप्त करके एक और उपलब्धि हासिल की है।
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