खबर का असर: सिलिकोसिस से पीड़ित आदिवासी के घर पहुँचे सांसद के PA, आचार सहिंता समाप्त होते ही मिलेगी सरकारी मदद

पत्थर खदानों में काम करने वाले मजदूर 35 से 40 साल में ही वृद्ध दिखने लगते हैं। 45 से 50 साल की आयु में अधिकांश की मौत हो जाती है।
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खबर का असर.ग्राफिक- द मूकनायक
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भोपाल। पन्ना जिले के बडोर गांव के 45 वर्षीय लच्छू लाल आदिवासी सिलिकोसिस बीमारी से संघर्ष कर रहे हैं। द मूकनायक ने लच्छू लाल और आदिवासी खनन श्रमिकों की समस्याओं की खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। जिसके बाद भाजपा प्रदेशाध्यक्ष एवं सांसद बीड़ी शर्मा के पीए तारेंद्र सतेंद्र पाठक बीते शुक्रवार को बड़ोर गांव में लच्छू लाल आदिवासी के घर पहुँचें। उन्होंने फिलहाल पीड़ित की इलाज के लिए आर्थिक रूप से मदद की है। साथ ही उन्होंने लच्छू लाल को यह भी आश्वासन दिया कि वह चुनाव के बाद सांसद से बात कर उन्हें इलाज के लिए सरकारी मदद दिलाएंगे।

द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए सांसद के पीए तारेंद्र सतेंद्र पाठक ने बताया कि उन्होंने द मूकनायक में प्रकशित समाचार को पढ़ा था। जिसके बाद वह सिलिकोसिस बीमारी से जूझ रहे लच्छू लाल आदिवासी के घर पहुँचे थे। उन्होंने कहा कि सांसद को भी इससे अवगत कराया गया है। चुनाव के बाद इस बीमारी की चपेट में आए श्रमिकों को सरकारी मदद मिले इसके लिए कुछ रास्ता निकाला जाएगा।

द मूकनायक ने 15 मई 2024 को समाचार प्रकाशित किया था। मौके पर पहुँची द मूकनायक टीम को इलाज के कागजात दिखातें हुए लच्छू लाल आदिवासी ने कहा था, "मैं खदानों में पिछले 17 वर्षों से पत्थर तोड़ने का काम करता रहा हूँ, तीन साल पहले सांस लेने में परेशानी हुईं, खांसी भी आती थी। धीरे-धीरे तकलीफ बढ़ रही थी. कुछ दिनों बाद सांस फूलने लगी। मेरी पत्नी और मैं पन्ना के सरकारी अस्पताल गए, डॉक्टर ने कहा तुम्हें टीबी हुई है। उन्होंने दवाई शुरू कर दी। एक महीने बाद भी कोई आराम नहीं मिला, समस्या और बढ़ गई। हम फिर अस्पताल गए डॉक्टर ने कहा सीटी स्कैन करना पड़ेगा। जब जांच हुई तो पता लगा कि मुझे सिलिकोसिस बीमारी हो गई है, डॉक्टर कहते हैं कि अच्छे इलाज की जरूरत है, भोपाल जाओ. लेकिन हमारे पास पैसे नहीं हैं। अधिकारियों से बात की तो उन्होंने कहा, मुआवजा मरने के बाद मिलता है। अब मरने का इंतजार कर रहा हूँ।"

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पन्ना जिले के बडोर गाँव के एक कोने में लच्छू लाल आदिवासी का घर है। मिट्टी की कच्ची दीवारें और लकड़ी के टपरे में इनका परिवार रहता है। लच्छू के दो बेटे और दो बेटियां हैं। आंखों में आंसूभर लच्छू लाल आदिवासी ने कहा, "हमारे पास तीन एकड़ खेती की जमीन है। सोचा कि थोड़ी सी जमीन बेच देंगे। कलेक्टर की जनसुनवाई में एक एकड़ जमीन बेचने के लिए अनुमति मांगी। कलेक्टर ने यह कह कर आवेदन खारिज कर दिया कि आदिवासी जमीन नहीं बेच सकते, न तो सरकार इलाज के लिए मदद कर रही है और न ही जमीन बेचने दे रही।"

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