ग्राउंड रिपोर्टः सरकारी स्कूल में संचालित हो रहा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र!

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राजस्थान के ग्रामीण अंचल में बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था, पीएचसी के पास अपना भवन तक नहीं

जयपुर। राजस्थान सरकार शहरों की तर्ज पर गांवो में बेहतर चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने का दावा करती है, लेकिन यह दावा सत्ता के गलियारों व दफ्तरों की फाइलों तक सीमित है। राजधानी जयपुर से 130 किलोमीटर दूर सवाईमाधोपुर जिले के मलारना डूंगर उपखण्ड क्षेत्र में चिकित्सा सेवा की स्थिति बदतर है। यहां के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी है। यहां तक उनके पास खुद का भवन तक नहीं है। खास बात यह है कि चिकित्सकों की प्रतिनियुक्ति पर राज्य सरकार पूर्णतः पाबंदी लगा चुकी है। ऐसे में ग्रामीण अंचल के अस्पतालों में चिकित्सक पर्याप्त नहीं है। द मूकनायक संवाददाता ने ऐसे ही दूर-दराज के एक प्राथमिक चिकित्सालय की व्यवस्थाओं का जाएजा लिया। पेश है रिपोर्ट।

अपना भवन नहीं, चिकित्सकों के पद खाली

द मूकनायक की टीम बुधवार को राजकीय प्राथमिक विद्यालय शेषा पहुंची। यहां सरकारी अस्पताल के पास अपना भवन नहीं है। सरकारी विद्यालय के अनुपयोगी भगवन में अस्पताल चल रहा है। तालाब किनारे बना यह भवन जर्जर है। बारिश का मौसम चल रहा है। बारिश के साथ ही छत से पानी टपकने लगता है। दवाएं भीग जाती हैं। दीवारों में दरारें है। जिस कमरे में बैठ कर चिकित्सक मरीजों को देखता है। उसी कमरे में मुख्यमंत्री निशुल्क दवा वितरण केंद्र भी बना है। यहीं बराबर में कम्प्यूटर ऑपरेटर भी बैठक कर सरकारी काम निपटाता है। इसी में ओपीडी व भर्ती रोगियों का रिकार्ड भी होता है। यहीं लैब भी है। एक कमरा दवा भंडारण के लिए आरक्षित है। एक छोटा कमरा भर्ती रोगियों के लिए है। इसमें दो बेड हैं। तीसरा बेड बरामदे में है। जबकि यहां छह बेड होने चाहिए।

स्टॉफ की कमी, नहीं होता संस्थागत प्रसव

जननी सुरक्षा योजना के तहत यूँ तो राजस्थान सरकार संस्थागत प्रसव पर प्रोत्साहन राशि देती है, लेकिन शेषा के सरकारी अस्पताल में प्रसव के लिए न तो लेबर रूम है। न ही विशेषज्ञ चिकित्सा स्टाफ। स्थानीय निवासी शजरुख खान ने बताया कि प्रसव के लिए या तो मलारना डूंगर या भाड़ौती अस्पताल ले जाते है।

शेषा के स्थानी अस्पताल में सुविधा नहीं है। ऐसे में कई बार प्रसूताओं की जान पर भी बन आती है।
मलारना डूंगर पंचायत समिति के उपप्रधान फजलुद्दीन बताते है कि शेषा गांव में अल्पसंख्यक व आदिवासी समुदाय के लोग ही मूलतः निवास करते हैं। इसलिए भी सरकार व्यवस्थाएं देने में सौतेला व्यवहार करती है। यही वजह है कि यहां चिकित्सा सुविधा के नाम पर रोगियों को साधारण बुखार, खांसी, जुकाम जैसी सामान्य बीमारी के लिए दवा उपलब्ध हो पाती है। किसी भी गंभीर बीमारी के इलाज के लिए शहर जाना मजबूरी है।

प्रतिदिन 80 मरीज आते है उपचार के लिए

पीएचसी प्रभारी डॉ. अजय सोनी ने कहा- "शेषा के प्राथमिक अस्पताल में प्रतिदिन 80 मरीज उपचार के लिए आते है। एक ही चिकित्सक है। 2 मेल नर्स है। एएनएम के दो पद स्वीकृत है। दोनों रिक्त है। एलएचवी भी नहीं है। उप स्वस्थ्य केंद्र भरजा गद्दी में संचालित है। यहां भी स्टाफ के अभाव में ताला लटका रहता है। कई बार चिकित्सा विभाग के आलाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों को अवगत कराया गया, लेकिन इस और किसी का ध्यान नहीं है।"

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