राजस्थान: सरकारी एम्बुलेंस 108 और 104 को लगा 'ब्रेक', मरीजों की बढ़ी परेशानी

संविदा सेवा नियम 2022 में शामिल करने की मांग को लेकर सरकारी एम्बुलेंसकर्मी गत 12 दिनों से हड़ताल पर है।
108 एम्बुलेंस कर्मियों का धरना
108 एम्बुलेंस कर्मियों का धरना
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जयपुर। दुर्घटना में गंभीर घायलों के लिए लाइफ लाइन साबित हुई राजस्थान की 108 एम्बुलेंस सेवा ठप है। जननी सुरक्षा योजना के तहत शुरू की गई 104 एम्बुलेंस वाहन के भी पहिए थम गए हैं। आपातकालीन सेवा ठप होने से प्रदेश भर में दुर्घटनाओं में गंभीर घायलों को समय पर उपचार नहीं मिल रहा है। वहीं दूर दराज के इलाकों से आने वाली गर्भवती महिलाओं को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

बता दें कि राजस्थान में लंबे समय से 108 व 104 एम्बुलेंस सेवा में नर्सिंगकर्मी व वाहन चालक अल्प मानदेय पर काम कर रहे हैं। बीते दिनों राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सरकारी विभागों में ठेका प्रथा समाप्त करने की घोषणा के साथ ही संविदा सेवा नियम 2022 बनाया था। सीएम की इस घोषणा के बाद एम्बुलेंसकर्मियों को भी उम्मीद जागी थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एम्बुलेंस जैसी आपातकालीन सेवा में तैनात नर्सिंगकर्मी व वाहन चालकों को नए संविदा सेवा नियम में शामिल नहीं किया गया। इस सम्बंध में एम्बुलेंसकर्मी संघ ने ज्ञापन, धरना प्रर्दशन के माध्यम से सरकार को अपनी पीड़ा भी बताई, लेकिन घायलों की पीड़ा हरने वाले एम्बुलेंसकर्मियों की पीड़ा तक सरकार ने नहीं सुनी।

सीएम के वादे के मुताबिक ठेकाप्रथा से निजात दिलाकर संविदा सेवा नियम 2022 में शामिल करने की मांग को लेकर प्रदेश भर के 6 हजार एम्बुलेंसकर्मी एक सितम्बर से हड़ताल पर है। यह लोग जयपुर शहर में शहीद स्मार्क पर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही। हजारों घायल हर दिन परेशान हो रहे हैं।

एक सितम्बर से शुरू हुई 108 व 104 एम्बुलेंसकर्मियों की हड़ताल शुक्रवार को 8वें दिन भी जारी है। 108 व 104 आपात कालीन सेवा ठप होने के बाद मेडिकल हेल्थ डिपार्टमेंट ने सख्ती दिखाते हुए 108 एम्बुलेंस का संचालन कर रही जीवीके कंपनी के प्रबंधन को चेतावनी जारी की है। इस चेतावनी में जल्द से जल्द सेवाएं सुचारू करने के लिए कहा है। सेवा शुरू नहीं होने पर टेंडर शर्तों के मुताबिक कार्यवाही की जाएगी।

मेडिकल हेल्थ डिपार्टमेंट की अतिरिक्त मुख्य सचिव शुभ्रा सिंह ने बताया कि 108 और 104 एंबुलेंस सेवा को सरकार ने रेस्मा एक्ट के तहत अति आवश्यक सेवाएं घोषित कर रखी है। जरूरत पड़ने पर हमने सभी सीएमएचओ और डिप्टी सीएमएचओ को 104 जननी एक्सप्रेस एम्बुलेंस सेवाओं को 108 एम्बुलेंस सेवाओं के रूप में इस्तेमाल करने के भी निर्देश दिए हैं। इसके साथ 108 की सर्विस देने वाली कंपनी जीवीके को पाबंद किया है कि वह टेंडर के प्रावधानों के अनुरूप सेवाओं का संचालन सुचारू रखे। हालांकि प्रदेश भर में 108 व 104 एम्बुलेंस सेवा अभी भी ठप है।

नहीं बन रही बात

इधर, आंदोलन कर रहे करीब 6 हजार कर्मचारियों और सरकार के बीच मांगों को लेकर सहमति नहीं बन रही है। राजस्थान एम्बुलेंस कर्मचारी संघ प्रदेशाध्यक्ष सुजाराम सारण ने बताया कि सरकार से हम केवल हमारे कर्मचारियों को संविदा कर्मचारी घोषित करने की मांग कर रहे हैं। सरकार हमारी सुनवाई नहीं कर रही। इस कारण हमें मजबूरन आंदोलन करना पड़ रहा है। इसके चलते मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। सारण ने कहा कि मुख्यमंत्री ने बहुत सारी कर्मचारी हितों की घोषणाएं की थीं। इनमें ठेका प्रथा समाप्ती की महत्वपूर्ण घोषणा भी शामिल थी, लेकिन मुख्यमंत्री खुद अपने वादे से मुकर गए।

आंदोलन में शामिल सवाईमाधोपुर के एम्बुलेंसकर्मी जिशान खान ने बताया कि हमने नियमित करने की मांग नहीं की है। हम लंबे समय से बुहत कम वेतन में आपात सेवा कर रहे हैं। हमें संविदा में शामिल करने में सरकार को क्या एतराज है यह समझ से परे है। खान ने कहा कि इस मांग के साथ एम्बुलेंसकर्मी 2021 से लगातार ज्ञापन, धरना, प्रदर्शन व सांकेतिक प्रदर्शनों के माध्यम से सरकार तक अपनी मांग पहुंचाते आ रहे हैं। सरकार एम्बुलेंसकर्मियों की मांगों पर कोई सुनवाई नहीं कर रही है।

जैसलमेर के 108 एम्बुलेंसकर्मी शिवपाल गर्ग ने बताया कि उन्हें एम्बुलेंस सेवा कंपनी 10 हजार रुपए से भी कम मानदेय देती है, जबकि यूटीबी में लगे लोगों की सैलरी सरकार ने बढ़ाकर 37 हजार कर दी है। ऐसे में जब हमारा काम समान है तो मानदेय समान क्यों नहीं दिया जा रहा है। एम्बुलेंस स्टाफ को भी यूटीबी की तर्ज पर मानदेय दिया जाए। एम्बुलेंसकर्मियों ने बताया कि प्रदेश भर में लगभग 6 हजार नर्सिंग स्टाफ व चालक एम्बुलेंस सेवा में है।

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