नई दिल्ली। देश में 99 फीसदी महिलाओं को गर्भपात कानूनों में किए गए बदलावों के बारे में जानकारी नहीं है। हमारे देश में गर्भपात को लेकर महिलाओं को कानूनी अधिकार नहीं है। लेकिन कुछ शर्तों और निश्चित समय सीमा के अंदर गर्भपात कराया जा सकता है। गर्भ गिराने से मां की सेहत को खतरा हो तो इस पर बहस चल निकलती है। ऐसे अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने के लिए बार-बार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में आती रहती हैं।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार तीन महिलाओं का साक्षात्कार लिया गया, उनमें से एक ने गर्भपात को स्वास्थ्य का अधिकार नहीं माना या इसके बारे में अनिश्चित थीं। गैर-सरकारी संगठन ‘फाउंडेशन फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज इंडिया' (एफआरएचएस इंडिया) द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि 32 प्रतिशत उत्तरदाता गर्भपात के कानूनी अधिकार के बारे में अनभिज्ञ थीं, जबकि 95.5 प्रतिशत महिलाओं को एमटीपी (संशोधन) अधिनियम की जानकारी नहीं थी।
भारत में गर्भपात यानी अनचाहे गर्भ को गिराने के लिए कानून मौजूद है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के तहत भारत में 20 सप्ताह (लगभग - 5 माह) तक के गर्भ को गिराने की इजाजत है। साल 2021 में इस कानून में संशोधन हुआ। इस संशोधन के जरिए कुछ खास परिस्थितियों (बलात्कार, एक ही परिवार के सदस्यों के बीच अवैध संबंध) में गर्भवती महिला को 24 सप्ताह (लगभग 6 माह) तक के अनचाहे गर्भ को गिराने का अधिकार दिया गया। हालांकि, इस अधिकार के साथ ही यह भी तय किया गया कि इसके लिए दो रजिस्टर्ड डॉक्टरों की मंजूरी जरूरी होगी।
हालांकि, भ्रूण में किसी तरह की विकलांगता या अन्य समस्या होने पर गर्भ को गिराने की इजाजत कभी भी मिल सकती है। इसके लिए कोई समय-सीमा तय नहीं है। इस स्थिति में भी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों से स्थापित विशेष डॉक्टरों के मेडिकल बोर्ड द्वारा इसकी अनुमति जरूरी है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट पर नजर डालें तो पता चलता है कि भारत में कुल जितने भी गर्भपात होते हैं। उनमें से लगभग 27% गर्भपात घरों में ही होते हैं। इसका मतलब है कि महिलाएं बिना किसी डॉक्टरी सलाह के घर में ही गर्भपात कर रही हैं। अगर शहरों की बात करें तो 22.1 % महिलाएं गर्भपात घर पर ही करवा लेती हैं. जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में ये आंकड़ा और भी ज्यादा 28.7% है ।
एनएफएचएस -5 के आंकड़ों की मानें तो भारत में गर्भपात की सबसे बड़ी वजह अनचाही प्रेग्नेंसी है। 47.6% गर्भपात इसलिए होते हैं क्योंकि ये अनियोजित हैं और 11.03% गर्भपात स्वास्थ्य से जुड़े कारणों की वजह से होते हैं। वहीं 2.1% अबॉर्शन इस वजह से होता है, क्योंकि गर्भ में लड़की पल रही होती है। आपको बताते चलें भारत में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट गर्भपात कराने की इजाज़त देता है। लेकिन गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जांच करना कानूनन अपराध है।
द मूकनायक से दिल्ली निवासी रीना (बदला हुआ नाम) बताती है "मेरे दो बच्चों के बाद एक बार में गर्भवती हो गई थी। मैं यह बच्चा नहीं चाहती थी। क्योंकि मेरे दोनों ही बच्चे छोटे थे। शारीरिक तौर पर भी मैं मजबूत नहीं थी। पति को बोला तो उन्होंने कहा कि कोई बात नहीं इस बच्चे को रख लेते हैं. लेकिन मैं इसके लिए तैयार नहीं थी। क्योंकि उस बच्चों को भी मैंने ही संभालना था। मैंने अबॉर्शन कराने का फैसला किया। मैंने गर्भ निरोधक भी ली थी। फिर भी मैं गर्भवती हो गई थी। फिर अंत में मैं गर्भपात करा लिया। मुझे आज भी नहीं पता की गर्भपात को लेकर कोई कानून भी है।"
द मूकनायक ने उत्तराखंड के देहरादून निवासी एक और महिला से बात की। वह बताती है कि "पहले बच्चे के बाद में गर्भवती हो गई थी। मेरे पति बच्चों को रखने के लिए बोल रहे थे। पर मेरी बेटी छोटी थी। मैं नहीं चाहती थी कि उसकी परवरिश में कोई कमी आए। मैं गर्भपात कराने सरकारी अस्पताल गई। वहां नर्स और दूसरे स्टाफ का व्यवहार मुझे बहुत अजीब लगा। नर्स बोल रही थी, यह बच्चा क्यों गिरा रही हो। बच्चा तो भगवान की देन होता है। यह पाप है। यह पाप तुम हमसे भी करवा रही हो। गुस्से में वह अंत तक बड़बड़ाती ही रही। यह बात आकर मैंने अपनी सास को भी बताई तो उन्होंने मुझे बहुत डाटा और कहा कि तुमने ऐसा क्यों कहा तुमको वह बच्चा रखना चाहिए था।"
महिला अधिकार कार्यकर्ता योगिता बताती है कि "ज्यादातर महिलाओं को पता ही नहीं है कि गर्भपात अधिकार भी होता है। इसमें कमी भी हमारी ही है, क्योंकि हमने इसके लिए जागरूकता अपने देश में नहीं फैलाई है। कितनी महिलाएं हैं जो जागरूकता कमी होने की वजह से गलत तरीकों में फंसकर गर्भपात कर लेती हैं। बहुत दर्द से गुजरती हैं। कितनी बार उनकी हालत नाजुक भी हो जाती है।"
साल 1971 से पहले भारत में भी किसी तरह का गर्भपात भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 के सेक्शन 312 के अनुसार आपराधिक गतिविधि माना जाता था। हालांकि, उस समय भी अगर महिला की जान बचाने के लिए गर्भपात किया जाता था तो उसकी इजाजत थी। एबॉर्शन एक दंडनीय अपराध था और गर्भपात कराने में मदद करने वाले व्यक्ति के लिए तीन साल की सजा और दंड का प्रावधान था, जबकि एबॉर्शन कराने वाली महिला को सात साल तक की सजा और जुर्माना भी भरना पड़ता था।
1960 के दशक में देश में गैरकानूनी तरीके से गर्भपात की घटनाएं लगातार बढ़ रही थीं। इससे स्वास्थ्य मंत्रालय अलर्ट हुआ और भारत सरकार ने इस समस्या के निदान के लिए साल 1964 में शांतिलाल शाह की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर दिया। कमेटी ने भारत में गर्भपात कानून का ड्राफ्ट तैयार किया और 1970 में संसद ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी बिल को पेश किया गया. संसद ने 1971 में इसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के रूप में पास कर दिया।
हाल ही में, दिल्ली के नेहरू प्लेस में गर्भपात के अधिकारों और इसके बारे में बात करने के लिए "वीआईपी फाउंडेशन" ने "फेमिनिज्म इन इंडिया" के सहयोग से "फिलीपींस द नैरेटिव: मीडिया गाइड फॉर अबॉर्शन रिपोर्टिंग, के जरिए पत्रकारों को गर्भपात और इससे जुड़े विषयों की रिपोर्ट करने और कवर करने के तरीकों के लिए एक वर्कशॉप का आयोजन किया था।
वर्कशॉप में यह भी बताया गया कि 'गर्भपात के अधिकारों के बारे में ज्यादातर महिलाओं को पता ही नहीं है। कैसे इस गंभीर विषय पर बात की जानी चाहिए। पत्रकारिता द्वारा कैसे जागरूकता ला सकते हैं। एक जरूरी मामले पर यह भी बताया गया कि कैसे एक यूट्यूब चैनल को देखकर एक महिला ने अपना खुद का गर्भपात करना चाहा और वह अस्पताल पहुंच गई। ऐसे बहुत सारे मामलों पर यहां पर चर्चा हुई और जागरूकता लाने की बात भी कही गई।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार असुरक्षित गर्भपात मामलों को संज्ञान में लेते हुए यूट्यूब ने फैसला किया था कि वो गर्भपात से जुड़े फेक वीडियो को धीरे-धीरे करके हटा देगा जो कि असुरक्षित गर्भपात को बढ़ावा देती हैं या असुरक्षित तरीकों को अपनाने के लिए महिलाओं को प्रेरित करती हैं। अबॉर्शन से जुड़ी कोई भी चिकित्सीय प्रक्रिया जो गलत होगी उस पर यूट्यूब कार्रवाई भी कर सकता है और उसे हटा सकता है। गूगल ने भी ये घोषणा की थी कि वह अबॉर्शन व ऐसी अन्य जानकारियों को ऑटोमैटिक रिफाइन करने के बाद ही दिखाएगा। किसी भी गलत जानकारी कोई गूगल बढ़ावा नहीं देगा।
फ्रांस ने महिलाओं को गर्भपात का संवैधानिक अधिकार दे दिया है, ऐसा करने वाला फ्रांस दुनिया का पहला देश है। फ्रांस की संसद में यह नया इतिहास लिखा गया। जहां सांसदों ने गर्भपात के लिए महिलाओं की स्वतंत्रता और उनका अधिकार सुनिश्चित करने के लिए 1958 के संविधान को संशोधित किया। फ्रांस के संविधान में यह 25वां संशोधन है। सबसे खास बात ये है कि देश के संविधान में 2008 के बाद किया गया यह पहला संशोधन है। फ्रांस में पिछले कई दिनों से महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दिए जाने की मांग की जा रही थी। इसे लेकर कई सर्वे भी कराए गए थे, जिनमें 85% लोगों ने इसका समर्थन किया था।
पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका: यहां गर्भवती महिला की जिंदगी पर कोई खतरा होने की स्थिति में ही गर्भपात कराया जा सकता है।
बांग्लादेश और बहरीन: यहां गर्भपात पर वैसे तो पूरी तरह से पाबंदी है, लेकिन गर्भवती महिला की जान को खतरा होने पर गर्भपात कराया जा सकता है।
चीन और कनाडा: इन देशों में महिलाओं को गर्भपात कराने की पूरी छूट है।
ईराक, लेबनान और लीबिया: इन देशों में गर्भवती महिला की जान को खतरा होने पर गर्भपात कराया जा सकता है।
अबखाजिया, मेडागास्कर और मालटा: गर्भपात कराने पर पूरी तरह से पाबंदी है।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.