नई दिल्ली। देश में 1 जुलाई 2024 से तीन नए आपराधिक कानून लागू होने जा रहे हैं. भारतीय न्याय संहिता में कुल 358 धाराएं हैं। जिसमें 20 नए अपराधों को परिभाषित किया गया है। 33 अपराधों में सजा बढ़ाई गई है। 83 ऐसे अपराध हैं, जिनमें जुर्माने की रकम बढ़ाई गई है। नए कानून में आतंकवाद को परिभाषित किया गया है। इस बदलाव में आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता, सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य संहिता लागू होगी।
हथकड़ी लगाने के नियम में बदलाव: अपराध प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code 1973) की जगह लाए जा रहे भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNS) की धारा 43 (3) में गिरफ्तारी या अदालत में पेश करते समय कैदी को हथकड़ी लगाने का प्रावधान किया गया है। इस नियम के मुताबिक अगर कोई कैदी आदतन अपराधी है या पहले हिरासत से भाग चुका है या आतंकी गतिविधियों में शामिल रहा है, ड्रग्स से जुड़ा अपराधी हो, हत्या, रेप, एसिड अटैक, मानव तस्करी, बच्चों का यौन शोषण में शामिल रहा हो तो ऐसे कैदी को हथकड़ी लगाकर गिरफ्तार किया जा सकता है।
अब तक कानून में हथकड़ी लगाने पर उसका कारण बताना जरूरी था। इसके लिए मजिस्ट्रेट से इजाजत भी लेनी होती थी। साल 1980 में प्रेम शंकर शुक्ला बनाम दिल्ली सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हथकड़ी के इस्तेमाल को अनुच्छेद 21 के तहत असंवैधानिक करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि अगर हथकड़ी लगाने की जरूरत है तो मजिस्ट्रेट से इसकी इजाजत लेनी होगी।
पुराने कानून के मुताबिक किसी अपराधी या आरोपी पर ट्रायल तभी शुरू होता था, जब वो अदालत में मौजूद होता था। लेकिन नए कानून के मुताबिक अगर कोई अपराधी फरार है तो भी उसके खिलाफ मुकदमा चल सकता है. आरोप तय होने के 90 दिन के बाद भी अगर आरोपी कोर्ट में पेश नहीं होता है तो ट्रायल शुरू हो जाएगा।
पुराने कानून में मौत की सजा पाए दोषी के सामने आखिरी रास्ता दया याचिका होती है। सारे कानूनी रास्ते खत्म होने के बाद दोषी के पास राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करने का अधिकार होता है। दया याचिका दायर करने की कोई समय सीमा नहीं है। लेकिन भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 472(1) के मुताबिक सारे कानूनी विकल्प खत्म होने के बाद दोषी 30 दिन के भीतर राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर करनी होगी। राष्ट्रपति का दया पर जो भी फैसला होगा, उसकी जानकारी 48 घंटे के भीतर केंद्र सरकार को राज्य सरकार के गृह विभाग और जेल सुपरिंटेंडेंट को देनी होगी।
पुराने कानून में आतंकवाद की परिभाषा नहीं थी. लेकिन भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code 1860) की जगह लाए जा रहे भारतीय न्याय संहिता (BNS) में पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया गया है और इसे दंडनीय अपराध बनाय गया है। अगर कोई देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालने, आम जनता या उसके एक वर्ग को डराने या सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने के इरादे से भारत या किसी अन्य देश में कोई कृत्य करता है, तो उसे आतंकवादी कृत्य माना जाएगा।
नए कानून के मुताबिक पीड़ित को 90 दिन के भीतर जांच की प्रोग्रेस रिपोर्ट देनी होगी। पुलिस को 90 दिन के अंदर चार्जशीट दाखिल करनी होगी। कोर्ट हालात को देखते हुए 90 दिन का समय बढ़ा सकता है। किसी भी परिस्थिति में 180 के भीतर जांच पूरी कर ट्रायल शुरू करना होगा। कोर्ट को 60 दिन के भीतर आरोप तय करने होंगे। सुनवाई पूरी होने के 30 दिन के भीतर फैसला देना होगा। इसके साथ ही सजा का ऐलान 7 दिन के भीतर करना होगा।
नए कानून के मुताबिक गैंगरेप के मामले में दोषी साबित होने पर 20 साल की सजा या आजीवन जेल की सजा का प्रावधान है। अगर पीड़िता नाबालिग है तो आजीवन जेल/मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। स्नैचिंग के मामले में गंभीर चोट लगने या स्थाई विकलांगता की स्थिति में कठोर सजा दी जाएगी. बच्चों को अपराध में शामिल करने पर कम से कम 7-10 साल की सजा होगी। हिट एंड रन मामले में मौत होने पर अपराधी घटना का खुलासा करने के लिए पुलिस/मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं होता है तो जुर्माने के अलावा 10 साल तक की जेल की सजा हो सकती है।
दिसंबर में जब से इन कानून की घोषणा की गई है। तब से उनके लिए विरोध भी हो रहा है ऐसे में द मूकनायक ने इन कानून के बारे में और जानने के लिए कुछ वकीलों से बात की। दिल्ली बार एसोसिएशन के पूर्व जनरल सेक्रेट्री एडवोकेट राजेश सिंघवी बाताते है कि "इन कानून की कोई जरूरत नहीं थी। समय-समय पर बदलाव होते रहते हैं। सेशन पर जब ज्यादा जरूरत लगती है, तो उसमें बदलाव कर लिए जाते हैं। लेकिन अभी जो सरकार है वह देश के लिए जरूरी चीजों पर बस अपना ठप्पा लगाना चाहती है। अंदर से चीजों में ज्यादातर बदलाव नहीं हुए हैं। वह पहले जैसे ही है। बस बाहर वह अपना नाम चलाना चाहती है। इसी तर्ज पर उन्होंने यह सब किया है।"
द मूकनायक ने एडवोकेट अरुण व्यास से बात की। अरुण व्यास, 1989 से उदयपुर में अधिवक्ता हैं, विश्वविद्यालय विधि महाविद्यालय में अध्यापन भी करते हैं, सिविल, आपराधिक और श्रम/सेवा न्यायशास्त्र में मामलों का संचालन करते हैं। वह बताते हैं कि "30 जून तक के सभी मामले पुराने कानून द्वारा ही चलेंगे। रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं है। यह पुराने कानून और नए कानून अगले 20 से 25 साल तक भुगतने पड़ेंगे। इसका असर विनाशकारी ही है। जितनी भी कॉलेज की लाइब्रेरी है। वह बेकार हो गई है। नई चीजों के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में मुकदमों की इतनी बाढ़ आ जाएगी। जो पहले कभी नहीं आई थी।"
द मूकनायक ने दिल्ली की वकील दीक्षा से बात की। वह बताती है कि "नए आपराधिक विधेयकों का संशोधित नाम गलत बयानी का कारण बनता है। क्योंकि इसका शीर्षक इस बात की स्पष्ट करता कि कानून किस बारे में है। आपराधिक कानूनों में सुधार के लिए केवल शीर्षक बदलने से कहीं अधिक की आवश्यकता होती है। इसमें न्याय प्रणाली को समग्र रूप से बेहतर बनाने के लिए रूपरेखा और नीतियों को संशोधित करना शामिल है। क्योंकि यह एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें आपराधिक अपराधों को फिर से परिभाषित करने/शुरू करने, कुछ प्रावधानों में संशोधन करने और परीक्षणों की निष्पक्षता में सुधार करने सहित कई तरह के बदलाव शामिल हैं। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि समग्र आपराधिक प्रणाली कुशल और सामाजिक मानदंडों के अनुरूप हो।"
ईटीवी भारत में प्रकशित रिपोर्ट के अनुसार 1 जुलाई से नए कानूनों के लागू होने से ठीक पहले जनहित याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वह इस पर तुरंत एक विशेषज्ञ समिति गठित करने के लिए निर्देश जारी करे। यह समिति देश के आपराधिक कानूनों में सुधार करने और भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को समाप्त करने के उद्देश्य से नए संशोधित आपराधिक कानूनों की व्यवहार्यता का आकलन और पहचान करे। याचिका के अनुसार प्रस्तावित विधेयकों में कई खामियां और विसंगतियां हैं.
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