भोपाल। मध्य प्रदेश के इंदौर हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में इंदौर नगर निगम के सहायक सफाई दरोगा की कोविड-19 ड्यूटी के दौरान हुई मौत के मामले में उनकी पत्नी को 50 लाख रुपए का मुआवजा ब्याज सहित देने का आदेश दिया है। मृतक जगदीश करोसिया के परिवार को मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना का लाभ नहीं दिया गया था, लेकिन हाईकोर्ट के इस फैसले ने उन सभी परिवारों के लिए उम्मीद की एक किरण जगाई है, जिन्हें इस योजना के तहत लाभ नहीं मिला था।
जगदीश करोसिया इंदौर नगर निगम में सहायक दरोगा के पद पर कार्यरत थे। उनकी ड्यूटी कोविड-19 संक्रमण के दौरान संक्रमित मरीजों के घरों में जाकर सफाई और अन्य कार्यों की निगरानी करना था। अगस्त 2020 में वे इस दौरान ही संक्रमित हो गए और 29 अगस्त को उनकी मौत हो गई। कोविड ड्यूटी पर रहते हुए उनकी मृत्यु होने के बावजूद उनके परिवार को मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना के तहत 50 लाख रुपए का मुआवजा नहीं दिया गया। अधिकारियों ने उनके आवेदन को अपात्र बताते हुए खारिज कर दिया था।
जगदीश करोसिया की पत्नी, अलका करोसिया, और उनके बच्चों ने निगम और सरकार के कई अधिकारियों से मुआवजे के लिए अपील की। उन्होंने कई आवेदन दिए लेकिन सभी को नजरअंदाज किया गया। आखिरकार, अक्टूबर 2023 में अलका करोसिया ने इंदौर हाईकोर्ट में याचिका दायर की और न्याय की मांग की। उनका तर्क था कि उनके पति की मौत कोविड ड्यूटी के दौरान हुई थी, इसलिए मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना के तहत उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए।
मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना उन सरकारी कर्मचारियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए बनाई गई थी जो कोविड-19 की ड्यूटी के दौरान संक्रमित हुए और उनकी मृत्यु हो गई। योजना के तहत मृतक के परिवार को 50 लाख रुपए की राशि देने का प्रावधान था। लेकिन, इस योजना के तहत किन कर्मचारियों को लाभ मिलेगा, इसे लेकर अधिकारियों के बीच स्पष्टता नहीं थी।
मृतक के परिवार का दावा था कि जगदीश करोसिया को योजना का लाभ मिलना चाहिए क्योंकि उनकी मौत कोविड ड्यूटी के दौरान हुई थी। नगर निगम ने भी इस बात का समर्थन किया और इंदौर के तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह ने भी मृतक का नाम योजना के लिए आगे बढ़ाया था। बावजूद इसके, भोपाल के रिलीफ कमिश्नर ने आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मृतक इस योजना के तहत कवर नहीं होते।
अलका करोसिया द्वारा याचिका दायर करने के बाद हाईकोर्ट ने इंदौर नगर निगम और भोपाल के रिलीफ कमिश्नर से जवाब मांगा। नगर निगम ने मृतक को योजना का पात्र बताते हुए अपना समर्थन दिया। नगर निगम ने अदालत में बताया कि जगदीश करोसिया की ड्यूटी संक्रमित मरीजों के घरों में थी, जिसके कारण वह संक्रमित हुए और उनकी मौत हुई। लेकिन, रिलीफ कमिश्नर भोपाल ने इस तर्क का विरोध किया और समय-समय पर जवाब देने के लिए और वक्त मांगा। आखिरकार, जुलाई 2024 में रिलीफ कमिश्नर ने अपना पक्ष रखते हुए अदालत में कहा कि मृतक इस योजना के तहत कवर नहीं होते हैं, जिससे उनके आवेदन को पहले खारिज किया गया था।
मामले की विस्तृत सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने मृतक के परिवार के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने आदेश दिया कि जगदीश करोसिया की मृत्यु कोविड ड्यूटी के दौरान हुई थी, इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना के तहत मुआवजा मिलना चाहिए। कोर्ट ने रिलीफ कमिश्नर को निर्देश दिया कि 50 लाख रुपए का मुआवजा बैंक ब्याज सहित एक महीने के भीतर परिवार को दिया जाए।
याचिकाकर्ता के वकील आयुष अग्रवाल ने कहा, "इस फैसले से उन सभी परिवारों को न्याय मिलेगा। जिन्होंने अपने परिजनों को कोविड ड्यूटी के दौरान खोया और जिन्हें योजना का लाभ नहीं मिला था। कोर्ट ने टाइम लिमिट तय करते हुए यह आदेश दिया है कि 1 महीने के भीतर मुआवजा दिया जाए।"
जगदीश करोसिया के परिवार में उनकी पत्नी अलका और दो बच्चे हैं—एक 23 साल का बेटा और एक बेटी। पिछले चार सालों से उनका जीवन संघर्षपूर्ण रहा है। मुआवजा नहीं मिलने से उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अब उन्हें न्याय मिल सका है।
हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल अलका करोसिया के परिवार के लिए, बल्कि उन सैकड़ों परिवारों के लिए एक मिसाल बन सकता है, जिन्होंने कोविड योद्धाओं को खोया है और जिनके आवेदन खारिज कर दिए गए हैं। यह आदेश सुनिश्चित करेगा कि कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना के तहत लाभ लेने में किसी भी तरह की लापरवाही न बरती जाए और पीड़ित परिवारों को समय पर न्याय मिले।
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